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१५:१०, २ मई २०१० का अवतरण
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परिचय |
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मथुरा का परिचय (पौराणिक) / Introduction of Mathura
मथुरा, भगवान कृष्ण की जन्मस्थली और भारत की परम प्राचीन तथा जगद्-विख्यात नगरी है।
शूरसेन देश की यहाँ राजधानी थी। पौराणिक साहित्य में मथुरा को अनेक नामों से संबोधित किया गया है जैसे- शूरसेन नगरी, मधुपुरी, मधुनगरी, मधुरा आदि। भारतवर्ष का वह भाग जो हिमालय और विंध्याचल के बीच में पड़ता है, प्राचीनकाल में आर्यावर्त कहलाता था। यहां पर पनपी हुई भारतीय संस्कृति को जिन धाराओं ने सींचा वे गंगा और यमुना की धाराएं थीं। इन्हीं दोनों नदियों के किनारे भारतीय संस्कृति के कई केन्द्र बने और विकसित हुए।
वाराणसी, प्रयाग, कौशाम्बी, हस्तिनापुर,कन्नौज आदि कितने ही ऐसे स्थान हैं, परन्तु यह तालिका तब तक पूर्ण नहीं हो सकती जब तक इसमें मथुरा का समावेश न किया जाय। यह आगरा और दिल्ली से क्रमश: 58 कि.मी उत्तर-पश्चिम एवं 145 कि. मी दक्षिण-पश्चिम में यमुना के किनारे राष्ट्रीय राजमार्ग 2 पर स्थित है।
वाल्मीकि रामायण में मथुरा को मधुपुर या मधुदानव का नगर कहा गया है तथा यहाँ लवणासुर की राजधानी बताई गई है-[१] इस नगरी को इस प्रसंग में मधुदैत्य द्वारा बसाई, बताया गया है। लवणासुर, जिसको शत्रुघ्न ने युद्ध में हराकर मारा था इसी मधुदानव का पुत्र था।<balloon title="`तं पुत्रं दुर्विनीतं तु दृष्ट्वा कोधसमन्वित:, मधु: स शोकमापेदे न चैनं किंचिदब्रवीत्`-उत्तर. 61,18।" style="color:blue">*</balloon> इससे मधुपुरी या मथुरा का रामायण-काल में बसाया जाना सूचित होता है। रामायण में इस नगरी की समृद्धि का वर्णन है।<balloon title="`अर्ध चंद्रप्रतीकाशा यमुनातीरशोभिता, शोभिता गृह-मुख्यैश्च चत्वरापणवीथिकै:, चातुर्वर्ण्य समायुक्ता नानावाणिज्यशोभिता` उत्तर. 70,11।" style="color:blue">*</balloon> इस नगरी को लवणासुर ने भी सजाया संवारा था । [२] (दानव, दैत्य, राक्षस आदि जैसे संबोधन विभिन्न काल में अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुए हैं, कभी जाति या क़बीले के लिए, कभी आर्य अनार्य संदर्भ में तो कभी दुष्ट प्रकृति के व्यक्तियों के लिए)। प्राचीनकाल से अब तक इस नगर का अस्तित्व अखण्डित रूप से चला आ रहा है।
शूरसेन जनपद
चित्र वीथिका
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शूरसेन जनपद के नामकरण के संबंध में विद्वानों के अनेक मत हैं किन्तु कोई भी सर्वमान्य नहीं है। शत्रुघ्न के पुत्र का नाम शूरसेन था। जब सीताहरण के बाद सुग्रीव ने वानरों को सीता की खोज में उत्तर दिशा में भेजा तो शतबलि और वानरों से कहा- 'उत्तर में म्लेच्छ' पुलिन्द, शूरसेन, प्रस्थल , भरत (इन्द्रप्रस्थ और हस्तिनापुर के आसपास के प्रान्त), कुरु (कुरुदेश) (दक्षिण कुरु- कुरुक्षेत्र के आसपास की भूमि), मद्र, कम्बोज, यवन, शकों के देशों एवं नगरों में भली भाँति अनुसन्धान करके दरद देश में और हिमालय पर्वत पर ढूँढ़ो। [३] इससे स्पष्ट है कि शत्रुघ्न के पुत्र से पहले ही 'शूरसेन' जनपद नाम अस्तित्व में था। हैहयवंशी कार्तवीर्य अर्जुन के सौ पुत्रों में से एक का नाम शूरसेन था और उसके नाम पर यह शूरसेन राज्य का नामकरण होने की संम्भावना भी है, किन्तु हैहयवंशी कार्तवीर्य अर्जुन का मथुरा से कोई सीधा संबंध होना स्पष्ट नहीं है। महाभारत के समय में मथुरा शूरसेन देश की प्रख्यात नगरी थी। लवणासुर के वधोपरांत शत्रुघ्न ने इस नगरी को पुन: बसाया था। उन्होंने मधुवन के जंगलों को कटवा कर उसके स्थान पर नई नगरी बसाई थी। यहीं कृष्ण का जन्म(श्री कृष्ण जन्मस्थान), यहां के अधिपति कंस के कारागार में हुआ तथा उन्होंने बचपन ही में अत्याचारी कंस का वध करके देश को उसके अभिशाप से छुटकारा दिलवाया। कंस की मृत्यु के बाद श्री कृष्ण मथुरा ही में बस गए किंतु जरासंध के आक्रमणों से बचने के लिए उन्होंने मथुरा छोड़ कर द्वारका पुरी बसाई [४] दशम सर्ग, 58 में मथुरा पर कालयवन के आक्रमण का वृतांत है। इसने तीन करोड़ म्लेच्छों को लेकर मथुरा को घेर लिया था। <balloon title="`रूरोध मथुरामेत्य तिस भिम्र्लेच्छकोटिभि:" style="color:blue">*</balloon>
प्राचीन साहित्य में मथुरा
हरिवंश पुराण <balloon title="हरिवंश पुराण, 1,54" style=color:blue>*</balloon> में भी मथुरा के विलास-वैभव का मनोहर चित्र है।[५]विष्णु पुराण में भी मथुरा का उल्लेख है,<balloon title="`संप्राप्तश्र्चापि सायाह्ने सोऽक्रूरो मथुरां पुरीम` 5,19,9 " style="color:blue">*</balloon> विष्णु-पुराण<balloon title="विष्णु-पुराण, 4,5,101" style=color:blue>*</balloon> में शत्रुघ्न द्वारा पुरानी मथुरा के स्थान पर ही नई नगरी के बसाए जाने का उल्लेख है ।<balloon title="`शत्रुघ्नेनाप्यमितबलपराक्रमो मधुपुत्रो लवणो नाम राक्षसोभिहतो मथुरा च निवेशिता` " style="color:blue">*</balloon> इस समय तक मधुरा नाम का रूपांतर मथुरा प्रचलित हो गया था। कालिदास ने रघुवंश<balloon title="रघुवंश, 6,48" style=color:blue>*</balloon> में इंदुमती के स्वंयवर के प्रसंग में शूरसेनाधिपति सुषेण की राजधानी मथुरा में वर्णित की है।<balloon title="'यस्यावरोधस्तनचंदनानां प्रक्षालनाद्वारिविहारकाले, कलिंदकन्या मथुरां गतापि गंगोर्मिसंसक्तजलेव भाति` " style="color:blue">*</balloon> इसके साथ ही गोवर्धन का भी उल्लेख है। मल्लिनाथ ने 'मथुरा` की टीका करते हुए लिखा है`-'कालिंदीतीरे मथुरा लवणासुरवधकाले शत्रुघ्नेन निर्मास्यतेति वक्ष्यति` ।
प्राचीन ग्रंथों-हिंदू, बौद्ध, जैन एवं यूनानी साहित्य में इस जनपद का शूरसेन नाम अनेक स्थानों पर मिलता है। प्राचीन ग्रंथों में मथुरा का मेथोरा<balloon title="विष्णु पुराण, 1/12/43 मेक्रिण्डिल, ऐंश्येंटइंडिया एज डिस्क्राइब्ड बाई टालेमी (कलकत्ता, 1927), पृ 98" style="color:blue">*</balloon>, मदुरा<balloon title="`मदुरा य सूरसेणा' देखें-इंडियन एण्टिक्वेरी, संख्या 20, पृ 375" style="color:blue">*</balloon>, मत-औ-लौ<balloon title="जेम्स लेग्गे, दि टे्रवेल्स आफ फ़ाह्यान , द्वितीय संस्करण, 1972), पृ 42" style="color:blue">*</balloon>, मो-तु-लो<balloon title="थामस वाट्र्स, आन युवॉन् च्वाग्स टे्रवेल्स इन इंडिया, दिल्ली, प्रथम संस्करण, 1961 ई) भाग 1, पृ 301" style="color:blue">*</balloon> तथा सौरीपुर<balloon title=" हरमन जैकोबी, सेक्रेड बुक्स ऑफ दि ईस्ट, भाग 45, पृ 112" style="color:blue">*</balloon> (सौर्यपुर) नामों का भी उल्लेख मिलता है। इन उदाहरणों से ऐसा प्रतीत होता है कि शूरसेन जनपद की संज्ञा ईसवी सन् के आरम्भ तक जारी रही <balloon title="मनुस्मृति, भाग 2, श्लोक 18 और 20" style="color:blue">*</balloon> और शक-कुषाणों के प्रभुत्व के साथ ही इस जनपद की संज्ञा राजधानी के नाम पर `मथुरा' हो गई। इस परिवर्तन का मुख्य कारण था कि यह नगर शक-कुषाणकालीन समय में इतनी प्रसिद्धि को प्राप्त हो चुका था कि लोग जनपद के नाम को भी मथुरा नाम से पुकारने लगे और कालांतर में जनपद का शूरसेन नाम जनसाधारण के स्मृतिपटल से विस्मृत हो गया।
शूरसेन जनपद की सीमा
प्राचीन शूरसेन जनपद का विस्तार दक्षिण में चंबल नदी से लेकर उत्तर में वर्तमान मथुरा नगर से 75 कि. मी. उत्तर में स्थित कुरु(कुरुदेश) राज्य की सीमा तक था। उसकी सीमा पश्चिम में मत्स्य और पूर्व में पांचाल जनपद से मिलती थी। मथुरा नगर को महाकाव्यों एवं पुराणों में 'मथुरा' एवं `मधुपुरी' नामों से संबोधित किया गया है।<balloon title="रामायण, उत्तरकांड, सर्ग 62, पंक्ति 17" style="color:blue">*</balloon> विद्वानों ने `मधुपुरी' की पहचान मथुरा के 6 मील पश्चिम में स्थित वर्तमान 'महोली' से की है।<balloon title="कृष्णदत्त वाजपेयी, मथुरा, पृ 2" style="color:blue">*</balloon> प्राचीन काल में यमुना नदी मथुरा के पास से गुजरती थी, आज भी इसकी स्थिति यही है। प्लिनी [६] ने यमुना को जोमेनस कहा है, जो मेथोरा और क्लीसोबोरा [७] के मध्य बहती थी।
पुराणों में मथुरा
पुराणों में मथुरा के गौरवमय इतिहास का विषद विवरण मिलता है। अनेक धर्मों से संबंधित होने के कारण मथुरा में बसने और रहने का महत्त्व क्रमश: बढ़ता रहा। ऐसी मान्यता थी कि यहाँ रहने से पाप रहित हो जाते हैं तथा इसमें रहने करने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। [८] वराह पुराण में कहा गया है कि इस नगरी में जो लोग शुध्द विचार से निवास करते हैं, वे मानव के रूप में साक्षात देवता हैं।<balloon title="मथुरायां महापुर्या ये वसंति शुचिव्रता:। बलिभिक्षाप्रदातारो देवास्ते नरविग्रहा:।। तत्रैव, श्लोक 22" style="color:blue">*</balloon> श्राद्ध कर्म का विशेष फल मथुरा में प्राप्त होता है। मथुरा में श्राद्ध करने वालों के पूर्वजों को आध्यात्मिक मुक्ति मिलती है।<balloon title="मथुराममंडमम् प्राप्य श्राद्धं कृत्वा यथाविधि। तृप्ति प्रयांति पितरो यावस्थित्यग्रजन्मन:।। तत्रैव, श्लोक 19" style="color:blue">*</balloon> उत्तनिपाद के पुत्र ध्रुव ने मथुरा में तपस्या कर के नक्षत्रों में स्थान प्राप्त किया था।<balloon title="पद्मपुराण, पृ 600, श्लोक 53" style="color:blue">*</balloon> पुराणों में मथुरा की महिमा का वर्णन है। पृथ्वी के यह पूछने पर कि मथुरा जैसे तीर्थ की महिमा क्या है? महावराह ने कहा था- "मुझे इस वसुंधरा में पाताल अथवा अंतरिक्ष से भी मथुरा अधिक प्रिय है।<balloon title="वराह पुराण, अध्याय 152" style="color:blue">*</balloon> वराह पुराण में भी मथुरा के संदर्भ में उल्लेख मिलता है, यहाँ की भौगोलिक स्थिति का वर्णन मिलता है।<balloon title="गोवर्द्धनो गिरिवरो यमुना च महानदी। तयोर्मध्ये पुरोरम्या मथुरा लोकविश्रुता।। वाराहपुराण, अध्याय 165, श्लोक 23" style="color:blue">*</balloon> यहाँ मथुरा की माप बीस योजन बतायी गयी है।<balloon title="`शितिर्योजनानातं मथुरां मत्र मंडलम्।' तत्रैव, अध्याय 158, श्लोक1" style="color:blue">*</balloon> इस मंडल में मथुरा, गोकुल, वृन्दावन, गोवर्धन आदि नगर, ग्राम एवं मंदिर, तड़ाग, कुण्ड, वन एवं अनगणित तीर्थों के होने का विवरण मिलता है। इनका विस्तृत वर्णन पुराणों में मिलता है। गंगा के समान ही यमुना के गौरवमय महत्त्व का भी विशद विवरण किया गया है। पुराणों में वर्णित राजाओं के शासन एवं उनके वंशों का भी वर्णन प्राप्त होता है।
ब्रह्मपुराण में वृष्णियों एवं अंधकों के स्थान मथुरा पर, राक्षसों के आक्रमण का भी विवरण मिलता है।<balloon title="ब्रह्म पुराण, अध्याय 14 श्लोक 54" style=color:blue>*</balloon> वृष्णियों एवं अंधकों ने डर कर मथुरा को छोड़ दिया था और उन्होंने अपनी राजधानी द्वारावती (द्वारिका) में प्रतिष्ठित की थी।<balloon title="हरिवंश पुराण, अध्याय 37" style=color:blue>*</balloon> मगध नरेश जरासंध ने 23 अक्षौहिणी सेना से इस नगरी को घेर लिया था।<balloon title="हरिवंश पुराण, अध्याय 195, श्लोक 3" style="color:blue">*</balloon> अपने महाप्रस्थान के समय युधिष्ठर ने मथुरा के सिंहासन पर वज्रनाभ को आसीन किया।<balloon title="स्कन्द पुराण, विष्णु खंड, भागवत माहात्म्य, अध्याय 1" style=color:blue>*</balloon> सात नाग-नरेश गुप्तवंश के उत्कर्ष के पूर्व यहाँ पर राज्य कर रहे थे।<balloon title="वायुपुराण, अध्याय 99; विमलचरण लाहा, इंडोलाजिकल स्टडीज, भाग 2, पृ 32" style="color:blue">*</balloon>
उग्रसेन और कंस मथुरा के शासक थे जिस पर अंधकों के उत्तराधिकारी राज्य करते थे।<balloon title="एफ इ पार्जिटर, ऐंश्येंट इंडियन हिस्टारिकल टे्रडिशन पृ 171" style="color:blue">*</balloon> कालान्तर में शत्रुघ्न के पुत्रों को मथुरा से सात्वत भीम ने निकाला तथा उसने तथा उसके पुत्रों ने यहाँ पर राज्य किया।<balloon title="एफ इ पार्जिटर, ऐंश्येंट इंडियन हिस्टारिकल टे्रडिशन, पृ2.11" style="color:blue">*</balloon> शूरसेन ने जो शत्रुघ्न का पुत्र था, उसने यमुना के पश्चिम में बसे हुए सात्वत यादवों पर आक्रमण किया और वहाँ के शासक माधव<balloon title="माधव अर्थात मधु का वंशज जो कृष्ण को भी कहा जाता है, कृष्ण मधुसूदन भी हैं किन्तु वह मधुकैटव राक्षस से अर्थ है।" style=color:blue>*</balloon> लवण का वध करके मथुरा नगरी को अपनी राजधानी घोषित किया।<balloon title="विमलचरण लाहा, प्राचीन भारत का ऐतिहासिक भूगोल, (उत्तर प्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी, लखनऊ, प्रथम संस्करण, 1972 ई.) पृ 183" style=color:blue>*</balloon> मथुरा की स्थापना श्रावण महीने में होने के कारण ही संभवत: इस माह में उत्सव आदि करने की परंपरा है। पुरातन काल में ही यह नगरी इतनी वैभवशाली थी कि मथुरा नगरी को देवनिर्मिता कहा जाने लगा था। [९] मथुरा के महाभारत काल के राजवंश को यदु अथवा यदुवंशीय कहा जाता है। यादव वंश में मुख्यत: दो वंश हैं। जिन्हें-वीतिहोत्र एवं सात्वत के नाम से जाना जाता है। सात्वत वर्ग भी कई शाखाओं में बँटा हुआ था। जिनमें वृष्णि, अंधक, देवावृद्ध तथा महाभोज प्रमुख थे।<balloon title="एफ ई पार्जिटर, ऐंश्येंटइंडियन हिस्टारिकल ट्रेडिशन, तुलनीय, हेमचंद्र राय चौधरी, प्राचीन भारत का राजनैतिक इतिहास , पृ 107" style="color:blue">*</balloon> यदु और यदु वंश का प्रमाण ॠग्वेद में भी मिलता है। इस वंश का संबंध तुर्वश, द्रुह, अनु एवं पुरु से था।<balloon title="(ऋग्वेद, 1/108/8)। ऋग्वेद (तत्रैव, 1/36; 18;5/45/1)" style="color:blue">*</balloon> से ज्ञात होता है कि यदु तुर्वश किसी दूरस्थ प्रदेश से यहाँ आए थे। वैदिक साहित्य में सात्वतों का भी नाम आता है।<balloon title="शतानीक: सामंतासु मेध्यम् सत्राजिता हयम् ,आदत्त यज्ञंकाशीनम् भरत: सत्वतामिव।। -शतपथ ब्राह्मण, 13/5/4/21" style="color:blue">*</balloon> शतपथ ब्राह्मण में आता है कि एक बार भरतवंशी शासकों ने सात्वतों से उनके यज्ञ का घोड़ा छीन लिया था। भरतवंशी शासकों द्वारा सरस्वती, यमुना और गंगा के तट पर यज्ञ किए जाने के वर्णन से राज्य की भौगोलिक स्थिति का ज्ञान हो जाता है।<balloon title="शतपथ ब्राह्मण, अध्याय 13/5/4/11; तुल हेमचंद्र राय चौधरी, प्राचीन भारत का राजनैतिक इतिहास, पृ 108" style="color:blue">*</balloon> सात्वतों का राज्य भी समीपवर्ती क्षेत्रों में ही रहा होगा। इस प्रकार महाभारत एवं पुराणों में वर्णित सात्वतों का मथुरा से संबंध स्पष्टतया ज्ञात हो जाता है।
वीथिका
कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा
Krishna's Janm Bhumi, Mathuraमहाराज्ञी कम्बोजिका
Kambojikaगोविन्द देव जी का मंदिर, वृन्दावन
Govind Dev Temple, Vrindavanकुसुम सरोवर, गोवर्धन
Kusum Sarovar, Govardhanद्वारिकाधीश मन्दिर, मथुरा
Dwarikadish Temple, Mathuraबांके बिहारी मन्दिर, वृन्दावन
Banke Bihari Temple, Vrindavanयमुना स्नान, विश्राम घाट, मथुरा
Yamuna Snan, Vishram Ghat, Mathuraहोली दरवाज़ा, मथुरा
Holi Gate, Mathuraबुद्ध प्रतिमा
Buddha Imageराजकीय जैन संग्रहालय, मथुरा
Govt. Jain Museum, Mathuraराधा-कृष्ण, कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा
Radha - Krishna, Krishna's Birth Place, Mathuraमदन मोहन जी का मंदिर, वृन्दावन
Madan Mohan temple, Vrindavanकनिष्क
Kanishkaरंग नाथ जी का मन्दिर, वृन्दावन
Rang Nath Ji Temple, Vrindavanगोपी नाथ जी मन्दिर, वृन्दावन
Gopi Nath Ji Temple, Vrindavanविम तक्षम
Vima Taktuहोली, दाऊजी मन्दिर, बलदेव
Holi, Dauji Temple, Baldevदानघाटी मंदिर, गोवर्धन
Danghati Temple, Govardhanयमुना के घाट, मथुरा
Ghats of Yamuna, Mathura
टीका-टिप्पणी
- ↑ `एवं भवतु काकुत्स्थ क्रियतां मम शासनम्, राज्ये त्वामभिषेक्ष्यामि मधोस्तु नगरे शुभे। नगरं यमुनाजुष्टं तथा जनपदाञ्शुभान् यो हि वंश समुत्पाद्य पार्थिवस्य निवेशने` उत्तर. 62,16-18 ।
- ↑ यच्चतेनपुरा शुभ्रं लवणेन कृतं महत्, तच्छोभयति शुत्रध्नो नानावर्णोपशोभिताम्। आरामैश्व विहारैश्च शोभमानं समन्तत: शोभितां शोभनीयैश्च तथान्यैर्दैवमानुषै:` उत्तर. 70-12-13। उत्तर0 70,5 (`इयं मधुपुरी रम्या मधुरा देव-निर्मिता) में इस नगरी को मथुरा नाम से अभिहित किया गया है।
- ↑ बाल्मीकि रामायाण,किष्किन्धाकाण्ड़,त्रिचत्वारिंशः सर्गः। तत्र म्लेच्छान् पुलिन्दांश्र्च शूरसेनां स्तथैव च । प्रस्थलान् भरतांश्र्चैव कुरुंश्र्च सह मद्रकैः॥ 11 काम्बोजयवनांश्र्चैव शकानां पत्तनानि च। अन्वीक्ष्य दरदांश्चैव हिमवन्तं विचिन्वथ ॥ 12
- ↑ `वयं चैव महाराज, जरासंधभयात् तदा, मथुरां संपरित्यज्य यता द्वारावतीं पुरीम्` महा. सभा. 14,67। श्रीमद्भागवत 10,41,20-21-22-23 में कंस के समय की मथुरा का सुंदर वर्णन है।
- ↑ `सा पुरी परमोदारा साट्टप्रकारतोरणा स्फीता राष्ट्रसमाकीर्णा समृद्धबलवाहना। उद्यानवन संपन्ना सुसीमासुप्रतिष्ठिता, प्रांशुप्राकारवसना परिखाकुल मेखला` ।
- ↑ प्लिनी, नेचुरल हिस्ट्री, भाग 6, पृ 19; तुलनीय ए, कनिंघम, दि ऐंश्येंटज्योग्राफी आफ इंडिया, (इंडोलाजिकल बुक हाउस, वाराणसी, 1963), पृ 315
- ↑ `कनिंघम ने क्लीसोबेरा की पहचान केशवुर या कटरा केशवदेव के मुहल्ले से की है। यूनानी लेखकों के समय में यमुना की मुख्य धारा या उसकी बड़ी शाखा वर्तमान कटरा या केशव देव के पूर्वी दीवार के समीप से बहती रही होगी ओर उसके दूसरी तरफ मथुरा नगर रहा होगा। देखें, ए, कनिंघम, दि ऐंश्येंटज्योग्राफी ऑफ इंडिया, इंडोलाजिकल बुक हाउस, वाराणसी, 1963 ई , पृ 315 ।
- ↑ ये वसंति महाभागे मथुरायामितरे जना:। तेऽपि यांति परमां सिद्धिं मत्प्रसादन्न संशय: वाराह पुराण, पृ 852, श्लोक 20
- ↑ इयम् मधुपुरी रम्या मधुरा देवनिर्मिता<balloon title="देवताओं द्वारा बनाई गई" style=color:blue>*</balloon> निवेशं प्राप्नयाच्छीध्रमेश मे स्तु वर: पर:।। वाल्मीकि रामायण, उत्तराकांड, सर्ग 70, पंक्ति 5-6