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==महाविद्या मन्दिर / [[:en:Mahavidya Devi|Mahavidya Temple]]==
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'''महाविद्या मन्दिर'''(अंग्रेज़ी: ''Mahavidya Devi'' or ''Mahavidya Temple'') [[मथुरा]], उत्तर प्रदेश की पश्चिम दिशा में रामलीला मैदान के निकट एक पहाड़ीनुमा ऊँचे टीले पर स्थित भव्य मन्दिर है, जो शक्तिपीठों में से एक है और जिसकी बहुत मान्यता है। [[विजय दशमी]] के दिन [[राम]]–[[लक्ष्मण]] के स्वरूप यहाँ पूजा–अर्चना के पश्चात [[रावण]] वध लीला के लिए जाते हैं। [[पुराण|पुराणों]] उल्लेखानुसार [[द्वापर युग]] में भी शक्ति उपासना का प्रचलन था और यह देवी [[नन्द|नन्दबाबा]] की कुल देवी थी। कहा जाता है कि [[पाण्डव|पाण्डवों]] ने यहाँ शक्ति प्रतिमा स्थापना के उपरान्त पूजा–अर्चना की थी। इस समय जो मन्दिर है, उसकी स्थापना मराठों के महाराष्द्रीय उपासकों द्वारा कराई गई बताई जाती है, जिसका पुन:उद्धार तांत्रिक विद्वान शीलचन्द्र द्वारा [[संवत]] 1907 में देवी की वर्तमान प्रतिमा प्रतिष्ठित करके कराया गया था। इस स्थल का बहुत प्राचीन महत्व है।
[[मथुरा]] की पश्चिम दिशा में [[रामलीला]] मैदान के निकट एक पहाड़ीनुमा ऊँचे टीले पर स्थित यह भव्य मन्दिर शक्तिपीठों में एक हैं, जिसकी बहुत मान्यता है। [[विजय दशमी]] के दिन [[राम]]–[[लक्ष्मण]] के स्वरूप यहाँ पूजा–अर्चना के पश्चात [[रावण]] वध लीला के लिए जाते हैं। [[पुराण|पुराणों]] के उल्लेख के अनुसार [[द्वापर युग]] में भी शक्ति उपासना का प्रचलन था और यह देवी [[नन्द]] बाबा की कुल देवी थी। कहा जाता है कि [[पाण्डव|पाण्डवों]] ने यहाँ शक्ति प्रतिमा स्थापना के उपरान्त पूजा–अर्चना की। इस समय जो मन्दिर है, उसकी स्थापना मराठों के महाराष्द्रीय उपासकों द्वारा कराई बताई जाती है, जिसका पुनउद्धार तांत्रिक विद्वान शीलचन्द्र द्वारा [[संवत]] 1907 में देवी की वर्तमान प्रतिमा प्रतिष्ठित करके कराया। इस स्थल का बहुत प्राचीन महत्व है।
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==महाविद्या देवी==
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महाविद्या देवी को अम्बिका देवी भी कहा जाता है। एक समय महाराज नन्द, [[कृष्ण]], [[बलराम|बलदेव]], [[यशोदा]] और अन्यान्य गोपों के साथ देवयात्रा के उपलक्ष्य में यहीं अम्बिका वन में उपस्थित हुए। वहाँ सब के साथ पवित्र सरस्वती के जल में स्नान कर पशुपति गोकर्ण महादेव की पूजा अर्चना की। रात्रि में सबके साथ वहीं निवास किया। उसी रात को एक विशाल अजगर ने नन्दबाबा को पकड़ लिया और क्रमश: उनको निगलने लगा तो सभी ने उन्हें बचाने की चेष्टा की; किन्तु सभी असफल हो गये। उस समय नन्दबाबा ने बड़े आर्त्त होकर कृष्ण को पुकारा। बड़े आश्चर्य की बात हुई। ज्यों हि कृष्ण ने अपने पैरों से उस अजगर को स्पर्श किया, वह अजगर अपना विशाल सर्प शरीर त्यागकर सुन्दर विद्याधर के रूप में खड़ा हो गया और श्रीकृष्ण को प्रणाम किया। श्रीकृष्ण के द्वारा पूछे जाने पर उसने अपना परिचय बतलाया कि पहले मैं सुदर्शन नाम का विद्याधर था। मैंने कभी विमान से विचरण करते समय अंगीरस नामक कुरूप ऋषियों को देखकर उनका उपहास किया था, जिससे उन्होंने मुझे सर्प योनि ग्रहण करने का अभिशाप दिया। आज वहीं अभिशाप मेरे लिए वरदान सिद्ध हुआ। मैं आपके चरण कमलों के स्पर्श से शापमुक्त ही नहीं, वरन परम कृतार्थ हो गया। वही स्थान आज महाविद्या देवी के रूप में प्रसिद्ध है।
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स्थानीय सूचना
महाविद्या मन्दिर

Mahavidya-Temple-1.jpg
मार्ग स्थिति: यह मन्दिर महाविद्या कालोनी, मथुरा में स्थित है।
आस-पास: कृष्ण जन्मभूमि, ईदगाह, गर्तेश्वर महादेव, भूतेश्वर महादेव मन्दिर, कटरा केशवदेव मन्दिर, पोतरा कुण्ड
पुरातत्व: निर्माणकाल- अठारहवीं सदी के अंत में
वास्तु: यह मन्दिर छोटे से टीले पर स्थित है जहां पैंतीस कदम की सीढ़ियाँ पहुँचती हैं। यह चतुर्भुज आकार का साधारण शिखर है।
स्वामित्व:
प्रबन्धन:
स्त्रोत: इंटैक
अन्य लिंक:
अन्य:
सावधानियाँ:
मानचित्र:
अद्यतन: 2009

महाविद्या मन्दिर(अंग्रेज़ी: Mahavidya Devi or Mahavidya Temple) मथुरा, उत्तर प्रदेश की पश्चिम दिशा में रामलीला मैदान के निकट एक पहाड़ीनुमा ऊँचे टीले पर स्थित भव्य मन्दिर है, जो शक्तिपीठों में से एक है और जिसकी बहुत मान्यता है। विजय दशमी के दिन राम–लक्ष्मण के स्वरूप यहाँ पूजा–अर्चना के पश्चात रावण वध लीला के लिए जाते हैं। पुराणों उल्लेखानुसार द्वापर युग में भी शक्ति उपासना का प्रचलन था और यह देवी नन्दबाबा की कुल देवी थी। कहा जाता है कि पाण्डवों ने यहाँ शक्ति प्रतिमा स्थापना के उपरान्त पूजा–अर्चना की थी। इस समय जो मन्दिर है, उसकी स्थापना मराठों के महाराष्द्रीय उपासकों द्वारा कराई गई बताई जाती है, जिसका पुन:उद्धार तांत्रिक विद्वान शीलचन्द्र द्वारा संवत 1907 में देवी की वर्तमान प्रतिमा प्रतिष्ठित करके कराया गया था। इस स्थल का बहुत प्राचीन महत्व है।

देवी

महाविद्या देवी को अम्बिका देवी भी कहा जाता है। एक समय महाराज नन्द, कृष्ण, बलदेव, यशोदा और अन्यान्य गोपों के साथ देवयात्रा के उपलक्ष्य में यहीं अम्बिका वन में उपस्थित हुए। वहाँ सब के साथ पवित्र सरस्वती के जल में स्नान कर पशुपति गोकर्ण महादेव की पूजा अर्चना की। रात्रि में सबके साथ वहीं निवास किया। उसी रात को एक विशाल अजगर ने नन्दबाबा को पकड़ लिया और क्रमश: उनको निगलने लगा तो सभी ने उन्हें बचाने की चेष्टा की; किन्तु सभी असफल हो गये। उस समय नन्दबाबा ने बड़े आर्त्त होकर कृष्ण को पुकारा। बड़े आश्चर्य की बात हुई। ज्यों हि कृष्ण ने अपने पैरों से उस अजगर को स्पर्श किया, वह अजगर अपना विशाल सर्प शरीर त्यागकर सुन्दर विद्याधर के रूप में खड़ा हो गया और श्रीकृष्ण को प्रणाम किया। श्रीकृष्ण के द्वारा पूछे जाने पर उसने अपना परिचय बतलाया कि पहले मैं सुदर्शन नाम का विद्याधर था। मैंने कभी विमान से विचरण करते समय अंगीरस नामक कुरूप ऋषियों को देखकर उनका उपहास किया था, जिससे उन्होंने मुझे सर्प योनि ग्रहण करने का अभिशाप दिया। आज वहीं अभिशाप मेरे लिए वरदान सिद्ध हुआ। मैं आपके चरण कमलों के स्पर्श से शापमुक्त ही नहीं, वरन परम कृतार्थ हो गया। वही स्थान आज महाविद्या देवी के रूप में प्रसिद्ध है।

वीथिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लिंक

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