मौर्य से गुप्तकालीन मथुरा

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पौराणिक मथुरा मौर्य से गुप्तकालीन मथुरा गुप्तकालीन से मुग़ल कालीन मथुरा

मथुरा के विषय में बौद्ध साहित्य में अनेक उल्लेख हैं । 600 ई० पू० में मथुरा में अवंतिपुत्र (अवंतिपुत्तो) नाम के राजा का राज्य था । बौद्ध अनुश्रुति (अंगुत्तरनिकाय) के अनुसार उसके शासन काल में स्वयं गौतम बुद्ध मथुरा आए थे । बुद्ध उस समय इस नगरी के लिए अधिक आकर्षित नहीं हुए क्‍योंकि उस समय यहां वैदिक मत सुदृढ़ रूप से स्थापित था (दे० श्री कृष्ण दत्त वाजपेयी-मथुरा परिचय, प ० 46) । चंद्रगुप्त मौर्य के काल में मथुरा मौर्य-शासन के अंतर्गत था । मेगेस्थनीज (जो कि एक ग्रीक राजदूत था) ने सूरसेनाई- मथोरा और क्लीसोबोरा नामक नगरियों का वर्णन किया है और इन नगरों को कृष्ण की उपासना का मुख्य केन्द्र वर्णित किया है । मथुरा में बौद्धधर्म का प्रचार अशोक के समय में अधिक हुआ । मथुरा और बौद्ध धर्म का घनिष्ठ संबंध था । जो बुद्ध के जीवन-काल से कुषाण-काल तक अक्षु्ण रहा । 'अंगुत्तरनिकाय' के अनुसार भगवान बुद्ध एक बार मथुरा आये थे और यहाँ उपदेश भी दिया था । [१] 'वेरंजक-ब्राह्मण-सुत्त' में भगवान् बुद्ध के द्वारा मथुरा से वेरंजा तक यात्रा किए जाने का वर्णन मिलता है । [२] पालि विवरण से यह ज्ञात होता है कि बुद्धत्व प्राप्ति के बारहवें वर्ष में ही बुद्ध ने मथुरा नगर की यात्रा की थी । [३] मथुरा से लौटकर बुद्ध वेरंजा आये फिर उन्होंने श्रावस्ती की यात्रा की ।[४] भगवान बुद्ध के शिष्य महाकाच्यायन मथुरा में बौद्ध धर्म का प्रचार करने आए थे । इस नगर में अशोक के गुरु उपगुप्त [५], ध्रुव (स्कंद पुराण, काशी खंड, अध्याय 20), एवं प्रख्यात गणिका वासवदत्ता [६] भी निवास करती थी । मथुरा राज्य का देश के दूसरे भागों से व्यापारिक संबंध था । मथुरा उत्तरापथ और दक्षिणापथ दोनों भागों से जुड़ा हुआ था । [७] राजगृह से तक्षशिला जाने वाले उस समय के व्यापारिक मार्ग में यह नगर स्थित था । [८] मथुरा से एक मार्ग वेरंजा, सोरेय्य, कणकुंज होते हुए पयागतिथ्थ जाता था वहाँ से वह गंगा पार कर बनारस पहुँच जाता था । [९] श्रावस्ती और मथुरा सड़क मार्ग द्वारा संबद्ध थे (अंगुत्तरनिकाय, भाग 2, पृ 57) । मथुरा का व्यापार पाटलीपुत्र द्वारा जलमार्ग से होता था । वे वस्तुओं का आदान-प्रदान करते थे । उस समय ऐसा लगता था जैसे दोनों पुरियों के बीच नावों का पुल बना हो । [१०] भारत के अन्य प्रमुख व्यापारिक नगरों, इंद्रप्रस्थ, कौशांबी, श्रावस्ती तथा वैशाली आदि से भी यहाँ के व्यापारियों के वाणिज्यक संबंध थे । [११] बौद्ध ग्रंथों में शूरसेन के शासक अवंतिपुत्र की चर्चा है, जो उज्जयिनी के राजवंश से संबंधित था । इस शासक ने बुद्ध के एक शिष्य महाकाच्यायन से ब्राह्मण धर्म पर वाद-विवाद भी किया था ।[संदर्भ देखें] भगवान् बुद्ध शूरसेन जनपद में एक बार मथुरा गए थे, जहाँ आनंद ने उन्हें उरुमुंड पर्वत पर स्थित गहरे नीले रंग का एक हरा-भरा वन दिखलाया था (दिव्यावदान, पृ 348-349) । मिलिंदपन्हों (मिलिंदपन्हो (ट्रेंकनर संस्करण), पृ 331) में इसका वर्णन भारत के प्रसिद्ध स्थानों में हुआ है । इसी ग्रंथ में प्रसिद्ध नगरों एवम् उनके निवासियों के नाम के एक प्रसंग में माधुरका (मथुरा के निवासी का भी उल्लेख मिलता है, (मिलिंदपन्हों (ट्रेंकनर संस्करण), पृ 324) जिससे ज्ञात होता है कि राजा मिलिंद (मिनांडर) के समय (150 ई0 पू0) मथुरा नगर पालि परंपरा में एक प्रतिष्ठित नगर के रूप में विख्यात हो चुका था ।


टीका-टिप्पणी

  1. अंगुत्तनिकाय, भाग 2, पृ 57; तत्रैव, भाग 3,पृ 257
  2. भरत सिंह उपापध्याय, बुद्धकालीन भारतीय भूगोल, पृ 109
  3. `दिव्यावदान, पृ 348 में उल्लिखित है कि भगवान बुद्ध ने अपने परिनिर्वाण काल से कुछ पहले ही मथुरा की यात्रा की थी-"भगवान्......परिनिर्वाणकालसमये..........मथुरामनुप्राप्त:। पालि परंपरा से इसका मेल बैठाना कठिन है।
  4. उल्लेखनीय है कि वेरंजा उत्तरापथ मार्ग पर पड़ने वाला बुद्धकाल में एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव था, जो मथुरा और सोरेय्य के मध्य स्थित था।
  5. वी ए स्मिथ, अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया (चतुर्थ संस्करण), पृ 199
  6. `मथुरायां वासवदत्ता नाम गणिकां।' दिव्यावदान (कावेल एवं नीलवाला संस्करण), पृ 352
  7. आर सी शर्मा, बुद्धिस्ट् आर्ट आफ मथुरा, पृ 5
  8. भरत सिंह उपाध्याय, बुद्धिकालीन भारतीय भूगोल, पृ 440
  9. मोती चंद्र, सार्थवाह, (बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, 1953) 16
  10. यावच्च मथुरां यावच्च पाटलिपुत्रं अंतराय नौसङ् कमोवस्थापित:'।
  11. जी पी मललसेकर, डिक्शनरी ऑफ् पालि प्रापर नेम्स, भाग 2, पृ 930