"रसखान" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
पंक्ति १: पंक्ति १:
 
{{menu}}
 
{{menu}}
 
{{रसखान}}
 
{{रसखान}}
[[चित्र:raskhan-1.jpg|रसखान की समाधि [[महावन]], [[मथुरा]]|thumb|250px]]
+
[[चित्र:raskhan-1.jpg|रसखान की समाधि [[महावन]], [[मथुरा]]<br /> Raskhan's Grave, Mahavan, Mathura|thumb|250px]]
 
==रसखान / [[:en:Ras khan|Raskhan]]==
 
==रसखान / [[:en:Ras khan|Raskhan]]==
  
 
हिन्दी साहित्य में [[कृष्ण]] भक्त तथा रीतिकालीन कवियों में रसखान का महत्वपूर्ण स्थान है। 'रसखान' को रस की ख़ान कहा जाता है। इनके काव्य में भक्ति, श्रृगांर रस दोनों प्रधानता से मिलते हैं। रसखान कृष्ण भक्त हैं और प्रभु के सगुण और निर्गुण निराकार रूप के प्रति श्रृध्दालु हैं। रसखान के सगुण कृष्ण लीलाएं करते हैं। यथा- बाललीला, रासलीला, फागलीला, कुंजलीला आदि। उन्होंने अपने काव्य की सीमित परिधी में इन असीमित लीलाओं का बहुत सूक्ष्म वर्णन किया है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने जिन मुस्लिम हरिभक्तों के लिये कहा था, "इन मुसलमान हरिजनन पर कोटिन हिन्दू वारिए" उनमें "रसखान" का नाम सर्वोपरि है। सैय्यद इब्राहीम "रसखान" का जन्म उपलब्ध स्रोतों के अनुसार सन् 1533 से 1558 के बीच कभी हुआ होगा। [[अकबर]] का राज्यकाल 1556-1605 है, ये लगभग अकबर के समकालीन हैं। जन्मस्थान 'पिहानी' कुछ लोगों के मतानुसार [[दिल्ली]] के समीप है। कुछ और लोगों के मतानुसार यह 'पिहानी' [[उत्तर प्रदेश|उत्तरप्रदेश]] के हरदोई ज़िले में है। मृत्यु के बारे में कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं मिलते हैं। रसखान ने भागवत का अनुवाद फारसी में भी किया।
 
हिन्दी साहित्य में [[कृष्ण]] भक्त तथा रीतिकालीन कवियों में रसखान का महत्वपूर्ण स्थान है। 'रसखान' को रस की ख़ान कहा जाता है। इनके काव्य में भक्ति, श्रृगांर रस दोनों प्रधानता से मिलते हैं। रसखान कृष्ण भक्त हैं और प्रभु के सगुण और निर्गुण निराकार रूप के प्रति श्रृध्दालु हैं। रसखान के सगुण कृष्ण लीलाएं करते हैं। यथा- बाललीला, रासलीला, फागलीला, कुंजलीला आदि। उन्होंने अपने काव्य की सीमित परिधी में इन असीमित लीलाओं का बहुत सूक्ष्म वर्णन किया है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने जिन मुस्लिम हरिभक्तों के लिये कहा था, "इन मुसलमान हरिजनन पर कोटिन हिन्दू वारिए" उनमें "रसखान" का नाम सर्वोपरि है। सैय्यद इब्राहीम "रसखान" का जन्म उपलब्ध स्रोतों के अनुसार सन् 1533 से 1558 के बीच कभी हुआ होगा। [[अकबर]] का राज्यकाल 1556-1605 है, ये लगभग अकबर के समकालीन हैं। जन्मस्थान 'पिहानी' कुछ लोगों के मतानुसार [[दिल्ली]] के समीप है। कुछ और लोगों के मतानुसार यह 'पिहानी' [[उत्तर प्रदेश|उत्तरप्रदेश]] के हरदोई ज़िले में है। मृत्यु के बारे में कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं मिलते हैं। रसखान ने भागवत का अनुवाद फारसी में भी किया।
[[चित्र:raskhan-2.jpg|रसखान के दोहे [[महावन]], [[मथुरा]]|thumb|300px|left]]
+
[[चित्र:raskhan-2.jpg|रसखान के दोहे [[महावन]], [[मथुरा]]<br /> Raskhan Couplets, Mahavan, Mathura|thumb|300px|left]]
 
{|
 
{|
 
|मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं गोकुल गाँव के ग्वालन।  
 
|मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं गोकुल गाँव के ग्वालन।  
पंक्ति २५: पंक्ति २५:
 
|काग के भाग कहा कहिए हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी।।
 
|काग के भाग कहा कहिए हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी।।
 
|}
 
|}
[[चित्र:raskhan-3.jpg|रसखान की समाधि [[महावन]], [[मथुरा]]|thumb|250px]]
+
[[चित्र:raskhan-3.jpg|रसखान की समाधि [[महावन]], [[मथुरा]]Raskhan's Grave, Mahavan, Mathura|thumb|250px]]
  
 
[[en:Ras khan]]
 
[[en:Ras khan]]

११:१९, ३ फ़रवरी २०१० का अवतरण

<sidebar>

  • सुस्वागतम्
    • mainpage|मुखपृष्ठ
    • ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
      विशेष:Contact|संपर्क
    • समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
  • SEARCH
  • LANGUAGES

__NORICHEDITOR__

  • रसखान सम्बंधित लेख
    • रसखान|रसखान
    • रसखान व्यक्तित्व और कृतित्व|व्यक्तित्व और कृतित्व
    • रसखान का भाव-पक्ष|भाव-पक्ष
    • रसखान का कला-पक्ष|कला-पक्ष
    • रसखान का प्रकृति वर्णन|प्रकृति वर्णन
    • रसखान का रस संयोजन|रस संयोजन
    • रसखान की भाषा|भाषा
    • रसखान की भक्ति-भावना|भक्ति-भावना
    • रसखान का दर्शन|दर्शन

</sidebar>

रसखान की समाधि महावन, मथुरा
Raskhan's Grave, Mahavan, Mathura

रसखान / Raskhan

हिन्दी साहित्य में कृष्ण भक्त तथा रीतिकालीन कवियों में रसखान का महत्वपूर्ण स्थान है। 'रसखान' को रस की ख़ान कहा जाता है। इनके काव्य में भक्ति, श्रृगांर रस दोनों प्रधानता से मिलते हैं। रसखान कृष्ण भक्त हैं और प्रभु के सगुण और निर्गुण निराकार रूप के प्रति श्रृध्दालु हैं। रसखान के सगुण कृष्ण लीलाएं करते हैं। यथा- बाललीला, रासलीला, फागलीला, कुंजलीला आदि। उन्होंने अपने काव्य की सीमित परिधी में इन असीमित लीलाओं का बहुत सूक्ष्म वर्णन किया है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने जिन मुस्लिम हरिभक्तों के लिये कहा था, "इन मुसलमान हरिजनन पर कोटिन हिन्दू वारिए" उनमें "रसखान" का नाम सर्वोपरि है। सैय्यद इब्राहीम "रसखान" का जन्म उपलब्ध स्रोतों के अनुसार सन् 1533 से 1558 के बीच कभी हुआ होगा। अकबर का राज्यकाल 1556-1605 है, ये लगभग अकबर के समकालीन हैं। जन्मस्थान 'पिहानी' कुछ लोगों के मतानुसार दिल्ली के समीप है। कुछ और लोगों के मतानुसार यह 'पिहानी' उत्तरप्रदेश के हरदोई ज़िले में है। मृत्यु के बारे में कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं मिलते हैं। रसखान ने भागवत का अनुवाद फारसी में भी किया।

रसखान के दोहे महावन, मथुरा
Raskhan Couplets, Mahavan, Mathura
मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं गोकुल गाँव के ग्वालन।
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मंझारन।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर धारन।
जो खग हौं बसेरो करौं मिल कालिन्दी-कूल-कदम्ब की डारन।।

बाल्य वर्णन

धूरि भरे अति शोभित श्याम जू, तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी।
खेलत खात फिरैं अँगना, पग पैंजनिया कटि पीरी कछौटी।।
वा छवि को रसखान विलोकत, वारत काम कलानिधि कोटी।
काग के भाग कहा कहिए हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी।।
रसखान की समाधि महावन, मथुराRaskhan's Grave, Mahavan, Mathura