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[[मथुरा]] का यह विशाल संग्रहालय डेम्पीयर नगर, मथुरा में स्थित है। ये राजकीय संग्रहालय देश के अनेक संग्रहालयों में बंट चुका है। यहाँ की सामग्री [[लखनऊ]] के राज्य संग्रहालय में, कलकत्ते के भारतीय संग्रहालय में, [[बम्बई]] और [[वाराणसी]] के संग्रहालयों में तथा विदेशों में मुख्यत: अमेरिका के बोस्टन संग्रहालय में, पेरिस व जुरिख के संग्रहालयों व लन्दन के ब्रिटिश संग्रहालय में प्रदर्शित है। परन्तु इसका सबसे बड़ा भाग मथुरा संग्रहालय में सुरक्षित है। इसके अतिरिक्त कतिपय व्यक्तिगत संग्रहों मे भी मथुरा की कलाकृतियां हैं। मथुरा का यह संग्रहालय यहाँ के तत्कालीन ज़िलाधीश श्री ऍफ़ एस ग्राउज द्वारा सन् 1874 में स्थापित किया गया था।  

०९:४५, ९ फ़रवरी २०१४ का अवतरण

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राजकीय संग्रहालय, मथुरा
Govt. Museum, Mathura

मथुरा का यह विशाल संग्रहालय डेम्पीयर नगर, मथुरा में स्थित है। ये राजकीय संग्रहालय देश के अनेक संग्रहालयों में बंट चुका है। यहाँ की सामग्री लखनऊ के राज्य संग्रहालय में, कलकत्ते के भारतीय संग्रहालय में, बम्बई और वाराणसी के संग्रहालयों में तथा विदेशों में मुख्यत: अमेरिका के बोस्टन संग्रहालय में, पेरिस व जुरिख के संग्रहालयों व लन्दन के ब्रिटिश संग्रहालय में प्रदर्शित है। परन्तु इसका सबसे बड़ा भाग मथुरा संग्रहालय में सुरक्षित है। इसके अतिरिक्त कतिपय व्यक्तिगत संग्रहों मे भी मथुरा की कलाकृतियां हैं। मथुरा का यह संग्रहालय यहाँ के तत्कालीन ज़िलाधीश श्री ऍफ़ एस ग्राउज द्वारा सन् 1874 में स्थापित किया गया था।


भारतीय कला को मथुरा की यह विशेष देन है। भारतीय कला के इतिहास में यहीं पर सर्वप्रथम हमें शासकों की लेखों से अंकित मानवीय आकारों में बनी प्रतिमाएं दिखलाई पड़ती हैं।[१] कुषाण सम्राट वेमकटफिश, कनिष्क एवं पूर्ववर्ती शासक चष्टन की मूर्तियां माँट नामक स्थान से पहले ही मिल चुकी हैं। एक और मूर्ति जो संभवत: हुविष्क की हो सकती है, इस समय गोकर्णेश्वर के नाम से मथुरा मे पूजी जाती है। ऐसा लगता है कि कुषाण राजाओं को अपने और पूर्वजों के प्रतिमा-मन्दिर या देवकुल बनवाने की विशेष रूचि थी। इस प्रकार का एक देवकुल तो माँट में था और दूसरा संभवत: गोकर्णेश्वर में। इन स्थानों से उपरोक्त लेखांकित मूर्तियों के अतिरिक्त अन्य राजपुरुषों की मूर्तियां भी मिली हैं, पर उन पर लेख नहीं है [२]। इस सुंदर्भ में यह बतलाना आवश्यक है कि कुषाणों का एक और देवकुल, जिसे वहां बागोलांगो (bagolango) कहा गया है, अफ़ग़ानिस्तान के सुर्ख कोतल नामक स्थान पर था। हाल में ही यहाँ की खुदाई से इस देवकुल की सारी रूपरेखा स्पष्ट हुयी है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. व्यक्ति प्रतिमाओं के विशेष अध्ययन के लिए देखिये: टी.जी.अर्वमुनाथन् , Portrait Sculpture in South India ,लंदन, 1931
  2. सी.एम.कीफर, Kushana Art and the Historical Effigies of Mat and Surkh Kotal, मार्ग, खण्ड 15,संख्या 2,मार्च 1962, पृ.43-48

वीथिका

सम्बंधित लिंक

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