राधारानी जी का मन्दिर

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राधारानी जी

बरसाना मथुरा से 42 कि0मी0, कोसी से 21 कि0मी0, छाता तहसील का एक छोटा सा गाँव है । बसंत पंचमी से बरसाना होली के रंग में सरोबार हो जाता है । टेसू के फूल तोड़कर और उन्हें सुखा कर रंग और गुलाल तैयार किया जाता है । गोस्वामी समाज के लोग गाते हुए कहते हैं - "नन्दगाँव को पांडे बरसाने आयो रे । शाम को 7 बजे चौपाई निकाली जाती है जो लाड़ली मन्दिर होते हुए सुदामा चौक रंगीली गली होते हुए वापस मन्दिर आ जाती है । सुबह 7बजे बाहर से आने वाले कीर्तन मंडल कीर्तन करते हुए गहवर वन की परिक्रमा करते हैं । बारहसिंघा की खाल से बनी ढ़ाल को लिए पीली पोखर पहुंचते हैं । बरसानावासी उन्हें रूपये और नारियल भेंट करते हैं, फिर नन्दगाँव के हुरियारे भांग-ठंडाई छानकर मदमस्त होकर पहुंचते हैं । राधा कृष्ण की झांकी के सामने समाज गायन करते हैं ।

ब्रह्मगिरी पर्वत स्थित ठाकुर लाडिलीजी महाराज मन्दिर के प्रांगण में जब नंदगाँव से होली का न्योता देकर महाराज वृषभानजी का पुरोहित लौटता है तो यहां के ब्रजवासी ही नहीं देशभर से आये श्रृध्दालु खुशी से झूम उठते हैं । पांडे का स्वागत करने के लिए लोगों में होड़ लग जाती है । स्वागत देखकर पांडा खुशी से नाचने लगता है । राधा कृष्ण की भक्ति में सब अपनी सुधबुध खो बैठते हैं । लोगों द्वारा लाये गये लड्डूओं को नन्दगाँव के हुरियारे फगुआ के रूप में बरसाना के गोस्वामी समाज को होली खेलने के लिए बुलाते हैं । कान्हा के घर नन्दगाँव से चलकर उनके सखा स्वरूपों ने आकर अपने कदम बढ़ा दिया । बरसानावासी राधा पक्ष वालों ने समाज गायन में भक्तिरस के साथ चुनौती पूर्ण पंक्तियां प्रस्तुत करके विपक्ष को मुकाबले के लिए ललकारते हैं और मुकाबला रोचक हो जाता है । लट्ठामार होली से पूर्व नन्दगाँव व बरसाना के गोस्वामी समाज के बीच जोरदार मुकाबला होता है । नन्दगाँव के हुरियारे सर्वप्रथम पीली पोखर पर जाते हैं ।यहाँ स्थानीय गोस्वामी समाज अगवानी करता है । मेहमाननवाजी के बाद मन्दिर परिसर में दोनों पक्षों द्वारा समाज गायन का मुकाबला होता है । गायन के बाद रंगीली गली में हुरियारे लट्ठ झेलते हैं । यहां सुघड़ हुरियाने अपने लठ लिए स्वागत को खड़ी मिलेती हैं । दोंनों तरफ कतारों में खड़ी हंसी ठिठोली करती हुई हुरियानों को जी भर कर छेडते हैं । ऐसा लगता है जैसे असल में इनकी सुसराल यहां है । इसी अवसर पर जो भूतकाल में हुआ उसे जिया जाता है । यह परम्परा सदियों से चली आ रही है ।

निश्छ्ल प्रेम भरी गालियां और लाठियां इतिहास को दोबारा दोहराते हुए नज़र आते हैं । बरसाना और नन्दगाँव में इस स्तर की होली होने के बाद भी आज तक कोई एक दूसरे के यहां वास्तव में कोई आपसी रिश्ता नहीं हुआ । आजकल भी यहां टेसू के फूलों से होली खेली जाती है, रसायनों से पवित्रता के कारण बाजारू रंगों से परहेज़ किया जाता है । अगले दिन नन्दबाबा के गाँव में छ्टा होती है । बरसाना के लोह हर्ष से भरकर मुकाबला जीतने नन्दगाँव आयेगें । यहां गायन का एकबार फिर कड़ा मुकाबला होगा । यशोदा कुण्ड फिर से स्वागत का गवाह बनेगा, भूरा थोक में फिर होगी लट्ठामार होली ।