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− | *विद्वान लोग 'वायु पुराण' को स्वतन्त्र पुराण न मानकर '[[शिव पुराण]]' और '[[ब्रह्माण्ड पुराण]]' का ही अंग मानते हैं। परन्तु '[[नारद पुराण]]' में जिन अठारह पुराणों की सूची दी गई हैं, उनमें 'वायु पुराण' को स्वतन्त्र पुराण माना गया है। | + | *विद्वान लोग 'वायु पुराण' को स्वतन्त्र पुराण न मानकर '[[शिव पुराण]]' और '[[ब्रह्माण्ड पुराण]]' का ही अंग मानते हैं। परन्तु '[[नारद पुराण]]' में जिन अठारह पुराणों की सूची दी गई हैं, उनमें 'वायु पुराण' को स्वतन्त्र [[पुराण]] माना गया है। |
*चतुर्युग के वर्णन में 'वायु पुराण' मानवीय सभ्यता के विकास में [[सत युग]] को आदिम युग मानता है। वर्णाश्रम व्यवस्था का प्रारम्भ [[त्रेता युग]] से कहा गया है। त्रेता युग में ही श्रम विभाजन का सिद्धान्त मानव ने अपनाया और कृषि कर्म सीखा। | *चतुर्युग के वर्णन में 'वायु पुराण' मानवीय सभ्यता के विकास में [[सत युग]] को आदिम युग मानता है। वर्णाश्रम व्यवस्था का प्रारम्भ [[त्रेता युग]] से कहा गया है। त्रेता युग में ही श्रम विभाजन का सिद्धान्त मानव ने अपनाया और कृषि कर्म सीखा। | ||
− | *'वायु पुराण' का कथानक दूसरे पुराणों से भिन्न है। यह साम्प्रदायिकता के दोष से पूर्णत: युक्त है। इसमें [[सूर्य]], [[चन्द्र]], ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष, आयुर्वेद आदि का वर्णन है, परन्तु सर्वथा नए रूप में है। [[विष्णु]] और [[शिव]]-दोनों को सम्मानजनक रूप से उपासना के योग्य माना गया है। | + | *'वायु पुराण' का कथानक दूसरे पुराणों से भिन्न है। यह साम्प्रदायिकता के दोष से पूर्णत: युक्त है। इसमें [[सूर्य]], [[चन्द्र]], [[ग्रह]]-[[नक्षत्र]], ज्योतिष, [[आयुर्वेद]] आदि का वर्णन है, परन्तु सर्वथा नए रूप में है। [[विष्णु]] और [[शिव]]-दोनों को सम्मानजनक रूप से उपासना के योग्य माना गया है। |
− | *'वायु पुराण' के कथानक अत्यन्त सरल और आडम्बर विहीन हैं। इसमें सृष्टि रचना, मानव सभ्यता का विकास, मन्वन्तर वर्णन, राजवंशों का वर्णन, योग मार्ग, सदाचार, प्रायश्चित विधि, मृत्युकाल के लक्षण, युग धर्म वर्णन, स्वर, ओंकार, वेदों का आविर्भाव, ज्योतिष प्रचार, लिंगोद्भव, ऋषि लक्षण, तीर्थ, गन्धर्व और अलंकार शास्त्र आदि का वर्णन प्राप्त होता है। | + | *'वायु पुराण' के कथानक अत्यन्त सरल और आडम्बर विहीन हैं। इसमें सृष्टि रचना, मानव सभ्यता का विकास, [[मन्वन्तर]] वर्णन, राजवंशों का वर्णन, योग मार्ग, सदाचार, प्रायश्चित विधि, मृत्युकाल के लक्षण, युग धर्म वर्णन, स्वर, ओंकार, [[वेद|वेदों]] का आविर्भाव, ज्योतिष प्रचार, लिंगोद्भव, ऋषि लक्षण, तीर्थ, गन्धर्व और अलंकार शास्त्र आदि का वर्णन प्राप्त होता है। |
०६:५७, २७ नवम्बर २००९ का अवतरण
वायु पुराण / Vayu Puran
- विद्वान लोग 'वायु पुराण' को स्वतन्त्र पुराण न मानकर 'शिव पुराण' और 'ब्रह्माण्ड पुराण' का ही अंग मानते हैं। परन्तु 'नारद पुराण' में जिन अठारह पुराणों की सूची दी गई हैं, उनमें 'वायु पुराण' को स्वतन्त्र पुराण माना गया है।
- चतुर्युग के वर्णन में 'वायु पुराण' मानवीय सभ्यता के विकास में सत युग को आदिम युग मानता है। वर्णाश्रम व्यवस्था का प्रारम्भ त्रेता युग से कहा गया है। त्रेता युग में ही श्रम विभाजन का सिद्धान्त मानव ने अपनाया और कृषि कर्म सीखा।
- 'वायु पुराण' का कथानक दूसरे पुराणों से भिन्न है। यह साम्प्रदायिकता के दोष से पूर्णत: युक्त है। इसमें सूर्य, चन्द्र, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष, आयुर्वेद आदि का वर्णन है, परन्तु सर्वथा नए रूप में है। विष्णु और शिव-दोनों को सम्मानजनक रूप से उपासना के योग्य माना गया है।
- 'वायु पुराण' के कथानक अत्यन्त सरल और आडम्बर विहीन हैं। इसमें सृष्टि रचना, मानव सभ्यता का विकास, मन्वन्तर वर्णन, राजवंशों का वर्णन, योग मार्ग, सदाचार, प्रायश्चित विधि, मृत्युकाल के लक्षण, युग धर्म वर्णन, स्वर, ओंकार, वेदों का आविर्भाव, ज्योतिष प्रचार, लिंगोद्भव, ऋषि लक्षण, तीर्थ, गन्धर्व और अलंकार शास्त्र आदि का वर्णन प्राप्त होता है।