"विष्णु" के अवतरणों में अंतर

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*सर्वव्यापक परमात्मा ही भगवान श्री विष्णु हैं। यह सम्पूर्ण विश्व भगवान विष्णु की शक्ति से ही संचालित है। वे निर्गुण भी हैं और सगुण भी।  
 
*सर्वव्यापक परमात्मा ही भगवान श्री विष्णु हैं। यह सम्पूर्ण विश्व भगवान विष्णु की शक्ति से ही संचालित है। वे निर्गुण भी हैं और सगुण भी।  
 
*वे अपने चार हाथों में क्रमश: शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण करते हैं।  
 
*वे अपने चार हाथों में क्रमश: शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण करते हैं।  
*जो किरीट और कुण्डलों से विभूषित, पीताम्बरधारी, वनमाला तथा कौस्तुभमणि को धारण करने वाले, सुन्दर कमलों के समान नेत्रवाले भगवान श्री विष्णु का ध्यान करता है वह भव-बन्धन से मुक्त हो जाता है।  
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*जो किरीट और कुण्डलों से विभूषित, पीताम्बरधारी, वनमाला तथा कौस्तुभमणि को धारण करने वाले, सुन्दर कमलों के समान नेत्र वाले भगवान श्री विष्णु का ध्यान करता है वह भव-बन्धन से मुक्त हो जाता है।  
*[[पद्म पुराण]] के उत्तरखण्ड में वर्णन है कि भगवान श्री विष्णु ही परमार्थ तत्व हैं। वे ही [[ब्रह्मा]] और [[शिव]] सहित समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं।  
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*[[पद्म पुराण]] के उत्तरखण्ड में वर्णन है कि भगवान श्री विष्णु ही परमार्थ तत्व हैं। वे ही [[ब्रह्मा]] और [[शिव]] सहित समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं। जहाँ ब्रह्मा को विश्व का सृजन करने वाला माना जाता है वहीं शिव को संहारक माना गया है। विष्णु की सहचारिणी [[लक्ष्मी]] है ।
*वे ही नारायण, वासुदेव, परमात्मा, अच्युत, कृष्ण, शाश्वत, शिव, ईश्वर तथा हिरण्यगर्भ आदि अनेक नामों से पुकारे जाते हैं। नर अर्थात जीवों के समुदाय को नार कहते हैं।  
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*वे ही नारायण, वासुदेव, परमात्मा, अच्युत, [[कृष्ण]], शाश्वत, [[शिव]], ईश्वर तथा हिरण्यगर्भ आदि अनेक नामों से पुकारे जाते हैं। नर अर्थात जीवों के समुदाय को नार कहते हैं।  
 
*सम्पूर्ण जीवों के आश्रय होने के कारण भगवान श्री विष्णु ही नारायण कहे जाते हैं।  
 
*सम्पूर्ण जीवों के आश्रय होने के कारण भगवान श्री विष्णु ही नारायण कहे जाते हैं।  
*कल्प के प्रारम्भ में एकमात्र सर्वव्यापी भगवान नारायण ही थे। वे ही सम्पूर्ण जगत की सृष्टि करके सबका पालन करते हैं और अन्त में सबका संहार करते हैं। इसलिये भगवान श्री विष्णु का नाम हरि है। [[मत्स्य]], [[कूर्म]], [[वाराह]], [[वामन]], [[हयग्रीव]] तथा श्री[[राम]]-[[कृष्ण]] आदि भगवान श्री विष्णु के ही अवतार हैं।  
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*कल्प के प्रारम्भ में एकमात्र सर्वव्यापी भगवान नारायण ही थे। वे ही सम्पूर्ण जगत की सृष्टि करके सबका पालन करते हैं और अन्त में सबका संहार करते हैं। इसलिये भगवान श्री विष्णु का नाम हरि है। [[मत्स्य अवतार|मत्स्य]], [[कूर्म अवतार|कूर्म]], [[वाराह अवतार|वाराह]], [[वामन अवतार|वामन]], [[हयग्रीव]] तथा श्री[[राम]]-[[कृष्ण]] आदि भगवान श्री विष्णु के ही अवतार हैं।  
 
*भगवान श्री विष्णु अत्यन्त दयालु हैं। वे अकारण ही जीवों पर करूणा-वृष्टि करते हैं। उनकी शरण में जाने पर परम कल्याण हो जाता है।  
 
*भगवान श्री विष्णु अत्यन्त दयालु हैं। वे अकारण ही जीवों पर करूणा-वृष्टि करते हैं। उनकी शरण में जाने पर परम कल्याण हो जाता है।  
*जो भक्त भगवान श्रीविष्णु के नामों का कीर्तन, स्मरण, उनके अर्चाविग्रह का दर्शन, वन्दन, गुणों का श्रवण और उनका पूजन करता है, उसके सभी पाप-ताप विनष्ट हो जाते हैं।  
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*जो भक्त भगवान श्री विष्णु के नामों का कीर्तन, स्मरण, उनके अर्चाविग्रह का दर्शन, वन्दन, गुणों का श्रवण और उनका पूजन करता है, उसके सभी पाप-ताप विनष्ट हो जाते हैं।  
*यद्यपि भगवान विष्णु के अनन्त गुण हैं, तथापि उनमें भक्तवत्सलता का गुण सर्वोपरि है। चारों प्रकार के भक्त जिस भावना से उनकी उपासना करते हैं, वे उनकी उस भावना को परिपूर्ण करते हैं। *[[ध्रुव]], [[प्रह्लाद]], [[अजामिल]], [[द्रौपदी]], गणिका आदि अनेक भक्तों का उनकी कृपा से उद्धार हुआ।  
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*यद्यपि भगवान विष्णु के अनन्त गुण हैं, तथापि उनमें भक्त वत्सलता का गुण सर्वोपरि है। चारों प्रकार के भक्त जिस भावना से उनकी उपासना करते हैं, वे उनकी उस भावना को परिपूर्ण करते हैं।  
*भक्तवत्सल भगवान को भक्तों का कल्याण करनें में यदि विलम्ब हो जाय तो भगवान उसे अपनी भूल मानते हैं और उसके लिये क्षमा-याचना करते हैं। धन्य है उनकी भक्तवत्सलता।
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*[[ध्रुव]], [[प्रह्लाद]], [[अजामिल]], [[द्रौपदी]], गणिका आदि अनेक भक्तों का उनकी कृपा से उद्धार हुआ।  
*मत्स्य, कूर्म, वाराह, श्रीराम, श्रीकृष्ण आदि अवतारों की कथाओं में भगवान श्रीविष्णु की भक्त वत्सलता के अनेक आख्यान आये हैं। ये जीवों के कल्याण के लिये अनेक रूप धारण करते हैं।  
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*भक्त वत्सल भगवान को भक्तों का कल्याण करनें में यदि विलम्ब हो जाय तो भगवान उसे अपनी भूल मानते हैं और उसके लिये क्षमा-याचना करते हैं। धन्य है उनकी भक्त वत्सलता।
*वेदों में इन्हीं भगवान श्रीविष्णु की अनन्त महिमा का गान किया गया है।  
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*मत्स्य, कूर्म, वाराह, श्री राम, श्री कृष्ण आदि अवतारों की कथाओं में भगवान श्री विष्णु की भक्त वत्सलता के अनेक आख्यान आये हैं। ये जीवों के कल्याण के लिये अनेक रूप धारण करते हैं।  
*विष्णुधर्मोत्तरपुराण में वर्णन मिलता है कि लवण समुद्र के मध्य में विष्णु लोक अपने ही प्रकाश से प्रकाशित है। उसमें भगवान श्री विष्णु वर्षाऋतु के चार मासों में लक्ष्मी द्वारा सेवित होकर शेषशय्या पर शयन करते हैं।  
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*[[वेद|वेदों में इन्हीं भगवान श्री विष्णु की अनन्त महिमा का गान किया गया है।  
*पद्मपुराण के उत्तरखण्ड के 228वें अध्याय में भगवान विष्णु के निवास का वर्णन है।  
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*विष्णुधर्मोत्तर पुराण में वर्णन मिलता है कि लवण समुद्र के मध्य में विष्णु लोक अपने ही प्रकाश से प्रकाशित है। उसमें भगवान श्री विष्णु वर्षा ऋतु के चार मासों में [[लक्ष्मी]] द्वारा सेवित होकर शेषशय्या पर शयन करते हैं।  
*वैकुण्ठ धाम के अन्तर्गत अयोध्यापुरी में एक दिव्य मण्डप है। मण्डप के मध्य भाग में रमणीय सिंहासन है। वेदमय धर्मादि देवता उस सिंहासन को नित्य घेरे रहते हैं। धर्म, ज्ञान, ऐश्वर्य, वैराग्य सभी वहाँ उपस्थित रहते हैं। मण्डप के मध्यभाग में अग्नि, सूर्य और चन्द्रमा रहते है। कूर्म, नागराज तथा सम्पूर्ण वेद वहाँ पीठ रूप धारण करके उपस्थित रहते हैं। सिंहासन के मध्य में अष्ट दल कमल है; जिस पर देवताओं के स्वामी परम पुरूष भगवान श्रीविष्णु लक्ष्मी के साथ विराजमान रहते हैं।
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*[[पद्म पुराण]] के उत्तरखण्ड के 228वें अध्याय में भगवान विष्णु के निवास का वर्णन है।  
*भक्तवत्सल भगवान श्रीविष्णु की प्रसन्नता के लिये जप का प्रमुख मन्त्र- 'ॐ नमो नारायणाय' तथा 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' है।  
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*वैकुण्ठ धाम के अन्तर्गत [[अयोध्या|अयोध्यापुरी]] में एक दिव्य मण्डप है। मण्डप के मध्य भाग में रमणीय सिंहासन है। वेदमय धर्मादि देवता उस सिंहासन को नित्य घेरे रहते हैं। धर्म, ज्ञान, ऐश्वर्य, वैराग्य सभी वहाँ उपस्थित रहते हैं। मण्डप के मध्यभाग में [[अग्नि]], [[सूर्य]] और [[चन्द्रमा]] रहते है। कूर्म, नागराज तथा सम्पूर्ण [[वेद]] वहाँ पीठ रूप धारण करके उपस्थित रहते हैं। सिंहासन के मध्य में अष्टदल कमल है; जिस पर देवताओं के स्वामी परम पुरूष भगवान श्री विष्णु लक्ष्मी के साथ विराजमान रहते हैं।
विष्णु ईश्वर का एक रूप हैं। [[पुराणों]] के त्रिमूर्ति विष्णु को विश्व का पालनहार माना जाता है। त्रिमूर्ति के अन्य दो भगवान [[शिव]] और [[ब्रह्मा]] को माना जाता है। जहाँ ब्रह्मा को विश्व का सृजन करने वाला माना जाता है वहीं शिव को संहारक माना गया है। विष्णु की सहचारिणी [[लक्ष्मी]] है ।
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*भक्त वत्सल भगवान श्री विष्णु की प्रसन्नता के लिये जप का प्रमुख मन्त्र- '''ॐ नमो नारायणाय''' तथा '''ॐ नमो भगवते वासुदेवाय''' है।
 
 
 
[[en:Vishnu]]
 
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[[category:कोश]]   
 
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[[श्रेणी:भगवान-अवतार ]]
 
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१०:५१, २५ नवम्बर २००९ का अवतरण

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भगवान विष्णु / God Vishnu

  • सर्वव्यापक परमात्मा ही भगवान श्री विष्णु हैं। यह सम्पूर्ण विश्व भगवान विष्णु की शक्ति से ही संचालित है। वे निर्गुण भी हैं और सगुण भी।
  • वे अपने चार हाथों में क्रमश: शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण करते हैं।
  • जो किरीट और कुण्डलों से विभूषित, पीताम्बरधारी, वनमाला तथा कौस्तुभमणि को धारण करने वाले, सुन्दर कमलों के समान नेत्र वाले भगवान श्री विष्णु का ध्यान करता है वह भव-बन्धन से मुक्त हो जाता है।
  • पद्म पुराण के उत्तरखण्ड में वर्णन है कि भगवान श्री विष्णु ही परमार्थ तत्व हैं। वे ही ब्रह्मा और शिव सहित समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं। जहाँ ब्रह्मा को विश्व का सृजन करने वाला माना जाता है वहीं शिव को संहारक माना गया है। विष्णु की सहचारिणी लक्ष्मी है ।
  • वे ही नारायण, वासुदेव, परमात्मा, अच्युत, कृष्ण, शाश्वत, शिव, ईश्वर तथा हिरण्यगर्भ आदि अनेक नामों से पुकारे जाते हैं। नर अर्थात जीवों के समुदाय को नार कहते हैं।
  • सम्पूर्ण जीवों के आश्रय होने के कारण भगवान श्री विष्णु ही नारायण कहे जाते हैं।
  • कल्प के प्रारम्भ में एकमात्र सर्वव्यापी भगवान नारायण ही थे। वे ही सम्पूर्ण जगत की सृष्टि करके सबका पालन करते हैं और अन्त में सबका संहार करते हैं। इसलिये भगवान श्री विष्णु का नाम हरि है। मत्स्य, कूर्म, वाराह, वामन, हयग्रीव तथा श्रीराम-कृष्ण आदि भगवान श्री विष्णु के ही अवतार हैं।
  • भगवान श्री विष्णु अत्यन्त दयालु हैं। वे अकारण ही जीवों पर करूणा-वृष्टि करते हैं। उनकी शरण में जाने पर परम कल्याण हो जाता है।
  • जो भक्त भगवान श्री विष्णु के नामों का कीर्तन, स्मरण, उनके अर्चाविग्रह का दर्शन, वन्दन, गुणों का श्रवण और उनका पूजन करता है, उसके सभी पाप-ताप विनष्ट हो जाते हैं।
  • यद्यपि भगवान विष्णु के अनन्त गुण हैं, तथापि उनमें भक्त वत्सलता का गुण सर्वोपरि है। चारों प्रकार के भक्त जिस भावना से उनकी उपासना करते हैं, वे उनकी उस भावना को परिपूर्ण करते हैं।
  • ध्रुव, प्रह्लाद, अजामिल, द्रौपदी, गणिका आदि अनेक भक्तों का उनकी कृपा से उद्धार हुआ।
  • भक्त वत्सल भगवान को भक्तों का कल्याण करनें में यदि विलम्ब हो जाय तो भगवान उसे अपनी भूल मानते हैं और उसके लिये क्षमा-याचना करते हैं। धन्य है उनकी भक्त वत्सलता।
  • मत्स्य, कूर्म, वाराह, श्री राम, श्री कृष्ण आदि अवतारों की कथाओं में भगवान श्री विष्णु की भक्त वत्सलता के अनेक आख्यान आये हैं। ये जीवों के कल्याण के लिये अनेक रूप धारण करते हैं।
  • [[वेद|वेदों में इन्हीं भगवान श्री विष्णु की अनन्त महिमा का गान किया गया है।
  • विष्णुधर्मोत्तर पुराण में वर्णन मिलता है कि लवण समुद्र के मध्य में विष्णु लोक अपने ही प्रकाश से प्रकाशित है। उसमें भगवान श्री विष्णु वर्षा ऋतु के चार मासों में लक्ष्मी द्वारा सेवित होकर शेषशय्या पर शयन करते हैं।
  • पद्म पुराण के उत्तरखण्ड के 228वें अध्याय में भगवान विष्णु के निवास का वर्णन है।
  • वैकुण्ठ धाम के अन्तर्गत अयोध्यापुरी में एक दिव्य मण्डप है। मण्डप के मध्य भाग में रमणीय सिंहासन है। वेदमय धर्मादि देवता उस सिंहासन को नित्य घेरे रहते हैं। धर्म, ज्ञान, ऐश्वर्य, वैराग्य सभी वहाँ उपस्थित रहते हैं। मण्डप के मध्यभाग में अग्नि, सूर्य और चन्द्रमा रहते है। कूर्म, नागराज तथा सम्पूर्ण वेद वहाँ पीठ रूप धारण करके उपस्थित रहते हैं। सिंहासन के मध्य में अष्टदल कमल है; जिस पर देवताओं के स्वामी परम पुरूष भगवान श्री विष्णु लक्ष्मी के साथ विराजमान रहते हैं।
  • भक्त वत्सल भगवान श्री विष्णु की प्रसन्नता के लिये जप का प्रमुख मन्त्र- ॐ नमो नारायणाय तथा ॐ नमो भगवते वासुदेवाय है।