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गलेऽव-लम्ब्य-लम्बितां-भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्<br />
 
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डमड्डमड्डमड्डम-न्निनादव-ड्डमर्वयं<br />
 
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चकार-चण्ड्ताण्डवं-तनोतु-नः शिवः शिवम् .. ..
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जटा-कटा-हसं-भ्रम भ्रमन्नि-लिम्प-निर्झरी-<br />
 
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रस-प्रवाह-माधुरी विजृंभणा-मधुव्रतम्<br />
 
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स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं<br />
 
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गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्तकान्तकं भजे .. १०..
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जयत्व-दभ्र-विभ्र-म-भ्रमद्भुजङ्ग-मश्वस-<br />
 
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द्विनिर्गमत्क्रम-स्फुरत्कराल-भाल-हव्यवाट्<br />
 
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धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्ग-तुङ्ग-मङ्गल<br />
 
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ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः .. ११..
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दृष-द्विचित्र-तल्पयोर्भुजङ्ग-मौक्ति-कस्रजोर्<br />
 
दृष-द्विचित्र-तल्पयोर्भुजङ्ग-मौक्ति-कस्रजोर्<br />
 
-गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्वि-पक्षपक्षयोः<br />
 
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तृष्णार-विन्द-चक्षुषोः प्रजा-मही-महेन्द्रयोः<br />
 
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समप्रवृतिकः कदा सदाशिवं भजे .. १२..
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कदा निलिम्प-निर्झरीनिकुञ्ज-कोटरे वसन्<br />
 
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विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मञ्जलिं वहन् .<br />
 
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विमुक्त-लोल-लोचनो ललाम-भाललग्नकः<br />
 
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शिवेति मन्त्र-मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् .. १३..
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इदम् हि नित्य-मेव-मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं<br />
 
इदम् हि नित्य-मेव-मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं<br />
 
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धि-मेति-संततम्<br />
 
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धि-मेति-संततम्<br />
 
हरे गुरौ सुभक्ति-माशु याति नान्यथा गतिं<br />
 
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विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् .. १४..
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पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः<br />
 
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शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे<br />
 
शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे<br />
 
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां<br />
 
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लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः .. १५..
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०८:५४, ७ अप्रैल २०१० का अवतरण

शिवताण्डवस्तोत्रम् / Shivtandavstrotam

रावण द्वारा भगवान शिव की स्तुति

  • कथा है की अहंकार वश रावण ने अपने आराध्य देव शिव के निवास स्थान कैलास पर्वत को अपने हाथों पर उठा लिया था|
  • क्रोधित हो शिव ने रावण के हाथों को पर्वत के नीचे दबा दिया|
  • रावण ने शिव की स्तुति में निम्न स्त्रोत कहा तो शिव ने प्रसन्न हो कर रावण को क्षमा कर दिया|


जटाटवी-गलज्जल-प्रवाह-पावित-स्थले
गलेऽव-लम्ब्य-लम्बितां-भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्
डमड्डमड्डमड्डम-न्निनादव-ड्डमर्वयं
चकार-चण्ड्ताण्डवं-तनोतु-नः शिवः शिवम् .. 1..

जटा-कटा-हसं-भ्रम भ्रमन्नि-लिम्प-निर्झरी-
-विलोलवी-चिवल्लरी-विराजमान-मूर्धनि
धगद्धगद्धग-ज्ज्वल-ल्ललाट-पट्ट-पावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम .. २..

धरा-धरेन्द्र-नंदिनी विलास-बन्धु-बन्धुर
स्फुर-द्दिगन्त-सन्तति प्रमोद-मान-मानसे
कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धरापदि
क्वचि-द्दिगम्बरे-मनो विनोदमेतु वस्तुनि .. ३..

जटा-भुजङ्ग-पिङ्गल-स्फुरत्फणा-मणि प्रभा
कदम्ब-कुङ्कुम-द्रव प्रलिप्त-दिग्व-धूमुखे
मदान्ध-सिन्धुर-स्फुरत्त्व-गुत्तरी-यमे-दुरे
मनो विनोदमद्भुतं-बिभर्तु-भूतभर्तरि .. ४..

सहस्र लोचन प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर
प्रसून-धूलि-धोरणी-विधू-सराङ्घ्रि-पीठभूः
भुजङ्गराज-मालया-निबद्ध-जाटजूटक:
श्रियै-चिराय-जायतां चकोर-बन्धु-शेखरः .. ५..

ललाट-चत्वर-ज्वलद्धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा-
निपीत-पञ्च-सायकं-नमन्नि-लिम्प-नायकम्
सुधा-मयूख-लेखया-विराजमान-शेखरं
महाकपालि-सम्पदे-शिरो-जटाल-मस्तुनः .. ६..

कराल-भाल-पट्टिका-धगद्धगद्धग-ज्ज्वल
द्धनञ्ज-याहुतीकृत-प्रचण्डपञ्च-सायके
धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्रचित्र-पत्रक
-प्रकल्प-नैकशिल्पिनि-त्रिलोचने-रतिर्मम … ७..

नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्
कुहू-निशी-थिनी-तमः प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः
निलिम्प-निर्झरी-धरस्त-नोतु कृत्ति-सिन्धुरः
कला-निधान-बन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः .. ८..

प्रफुल्ल-नीलपङ्कज-प्रपञ्च-कालिमप्रभा-
-वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचिप्रबद्ध-कन्धरम् .
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकछिदं तमंतक-च्छिदं भजे .. ९..

अखर्व सर्व-मङ्ग-लाकला-कदंबमञ्जरी
रस-प्रवाह-माधुरी विजृंभणा-मधुव्रतम्
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्तकान्तकं भजे .. 1०..

जयत्व-दभ्र-विभ्र-म-भ्रमद्भुजङ्ग-मश्वस-
द्विनिर्गमत्क्रम-स्फुरत्कराल-भाल-हव्यवाट्
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्ग-तुङ्ग-मङ्गल
ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः .. 11..

दृष-द्विचित्र-तल्पयोर्भुजङ्ग-मौक्ति-कस्रजोर्
-गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्वि-पक्षपक्षयोः
तृष्णार-विन्द-चक्षुषोः प्रजा-मही-महेन्द्रयोः
समप्रवृतिकः कदा सदाशिवं भजे .. 1२..

कदा निलिम्प-निर्झरीनिकुञ्ज-कोटरे वसन्
विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मञ्जलिं वहन् .
विमुक्त-लोल-लोचनो ललाम-भाललग्नकः
शिवेति मन्त्र-मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् .. 1३..

इदम् हि नित्य-मेव-मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धि-मेति-संततम्
हरे गुरौ सुभक्ति-माशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् .. 1४..

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः
शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः .. 1५..