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==शिशुपाल / Shishupal==
 
==शिशुपाल / Shishupal==
शिशुपाल [[महाभारत]] कालीन [[चेदि]] राज्य का स्वामी था । महाभारत में चेदि जनपद के निवासियों के लिए आदि पर्व <ref>आदि पर्व के तिरसठवें अध्याय, छंद संख्या १०-१२</ref> में लिखा है-'चेदि के जनपद धर्मशील, संतोषी ओर साधु हैं । यहाँ हास-परिहास में भी कोई झूठ नहीं बोलता, फिर अन्य अवसरों पर तो बोल ही कैसे सकता है । पुत्र सदा गुरुजनों के हित में लगे रहते हैं, पिता अपने जीते-जी उनका बँटवारा नहीं करते । यहाँ के लोग बैलों को भार ढोने में लगाते और दीनों एवं अनाथों का पोषण करते हैं । सब वर्णों के लोग सदा अपने-अपने धर्म में स्थित रहते हैं' । स्पष्ट है कि शिशुपाल की राज्य व्यवस्था अच्छी थी और चेदि जनपद के लोग सदाचार को महत्त्व देते थे ।
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शिशुपाल [[महाभारत]] कालीन [[चेदि]] राज्य का स्वामी था । महाभारत में चेदि जनपद के निवासियों के लिए आदि पर्व<balloon title="आदि पर्व के तिरसठवें अध्याय, छंद संख्या १०-१२" style="color:blue">*</balloon> में लिखा है-'चेदि के जनपद धर्मशील, संतोषी ओर साधु हैं । यहाँ हास-परिहास में भी कोई झूठ नहीं बोलता, फिर अन्य अवसरों पर तो बोल ही कैसे सकता है । पुत्र सदा गुरुजनों के हित में लगे रहते हैं, पिता अपने जीते-जी उनका बँटवारा नहीं करते । यहाँ के लोग बैलों को भार ढोने में लगाते और दीनों एवं अनाथों का पोषण करते हैं । सब वर्णों के लोग सदा अपने-अपने धर्म में स्थित रहते हैं' । स्पष्ट है कि शिशुपाल की राज्य व्यवस्था अच्छी थी और चेदि जनपद के लोग सदाचार को महत्त्व देते थे ।
 
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१३:३६, ८ दिसम्बर २००९ का अवतरण


शिशुपाल / Shishupal

शिशुपाल महाभारत कालीन चेदि राज्य का स्वामी था । महाभारत में चेदि जनपद के निवासियों के लिए आदि पर्व<balloon title="आदि पर्व के तिरसठवें अध्याय, छंद संख्या १०-१२" style="color:blue">*</balloon> में लिखा है-'चेदि के जनपद धर्मशील, संतोषी ओर साधु हैं । यहाँ हास-परिहास में भी कोई झूठ नहीं बोलता, फिर अन्य अवसरों पर तो बोल ही कैसे सकता है । पुत्र सदा गुरुजनों के हित में लगे रहते हैं, पिता अपने जीते-जी उनका बँटवारा नहीं करते । यहाँ के लोग बैलों को भार ढोने में लगाते और दीनों एवं अनाथों का पोषण करते हैं । सब वर्णों के लोग सदा अपने-अपने धर्म में स्थित रहते हैं' । स्पष्ट है कि शिशुपाल की राज्य व्यवस्था अच्छी थी और चेदि जनपद के लोग सदाचार को महत्त्व देते थे ।

परिचय

महाभारत में वर्णन है कि विदर्भराज के

  1. रुक्म,
  2. रुक्मरथ,
  3. रुक्मबाहु,
  4. रुक्मकेस तथा
  5. रुक्ममाली नामक पाँच पुत्र और एक पुत्री
  6. रुक्मणी थी । रुक्मणी सर्वगुण सम्पन्न तथा अति सुन्दरी थी । उसके माता-पिता उसका विवाह कृष्ण के साथ करना चाहते थे किन्तु रुक्म (रुक्मणी का बड़ा भाई) चाहता था कि उसकी बहन का विवाह चेदिराज शिशुपाल के साथ हो । अतः उसने रुक्मणी का टीका शिशुपाल के यहाँ भिजवा दिया । रुक्मणी कृष्ण पर आसक्त थी इसलिये उसने कृष्ण को एक ब्राह्मण के हाथों संदेशा भेजा । कृष्ण ने संदेश लाने वाले ब्राह्मण से कहा, 'हे ब्राह्मण देवता! जैसा रुक्मणी मुझसे प्रेम करती हैं वैसे ही मैं भी उन्हीं से प्रेम करता हूँ । मैं जानता हूँ कि रुक्मणी के माता-पिता रुक्मणी का विवाह मुझसे ही करना चाहते हैं परन्तु उनका बड़ा भाई रुक्म मुझ से शत्रुता रखने के कारण उन्हें ऐसा करने से रोक रहा है । तुम जाकर राजकुमारी रुक्मणी से कह दो कि मैं अवश्य ही उनको ब्याह कर लाऊँगा ।'कृष्ण ने रुक्मणी से विवाह किया पर चेदिराज शिशुपाल ने इसे अपमान समझा और वह कृष्ण को अपना दुश्मन समझने लगा ।

शिशुपाल का वध

युधिष्ठिर ने जब राजसूय यज्ञ की तैयारी की तब सभी प्रमुख राजाओं को यज्ञ में आने का निमंत्रण दिया गया जिसमें चेदिराज शिशुपाल भी था । देवपूजा के समय कृष्ण का सम्मान देखकर वह जल गया और उनको गालियाँ देने लगा । उसके इन कटु वचनों की निन्दा करते हुये श्री कृष्ण के अनेक भक्त सभा छोड़ कर चले गये क्योंकि वे श्री कृष्ण की निन्दा नहीं सुन सकते थे । अर्जुन और भीमसेन अनेक राजाओं के साथ उसे मारने के लिये उद्यत हो गये किन्तु श्री कृष्ण ने उन सभी को रोक दिया । जब शिशुपाल श्री कृष्ण को एक सौ गाली दे चुका तब श्री कृष्ण ने गरज कर कहा, 'बस शिशुपाल! अब मेरे विषय में तेरे मुख से एक भी अपशब्द निकला तो तेरे प्राण नहीं बचेंगे । मैंने तेरे एक सौ अपशब्दों को क्षमा करने की प्रतिज्ञा की थी इसीलिये अब तक तेरे प्राण बचे रहे ।'श्री कृष्ण के इन वचनों को सुन कर सभा में उपस्थित शिशुपाल के सारे समर्थक भय से थर्रा गये किन्तु शिशुपाल का विनाश समीप था, अतः उसने काल के वश होकर अपनी तलवार निकालते हुये श्री कृष्ण को फिर से गाली दी । शिशुपाल के मुख से अपशब्द के निकलते ही श्री कृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र चला दिया और पलक झपकते ही शिशुपाल का सिर कट कर गिर गया ।