शेरशाह

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शेरशाह सूरी

मथुरा शेरशाह सूरी मार्ग पर ही स्थित है । जो शेरशाह ने बनवाया था । यह मार्ग उस समय 'सड़क-ए-आज़म' कहलाता था । बंगाल से पेशावर तक की यह सड़क 500 कोस ( शुद्ध= 'क्रोश') या 2500 किलो मीटर लम्बी थी । शेरशाह सूरी का नाम फरीद खाँ था । वह वैजवाड़ा (होशियारपुर 1472 ई. ) में अपने पिता हसन की अफगान पत्‍नी से उत्पन्न था । उसका पिता हसन बिहार के सासाराम का जमींदार था । 1539 ई. में चौसा के युद्ध में हुमायूँ को हरा शेर खाँ ने शेरशाह की उपाधि ली । 1540 ई. में शेरशाह ने हुमायूँ को दोबारा हराकर राजसिंहासन पर बैठा । शेरशाह का १० जून, १५४० को आगरा में विधिवत्‌ राज्याभिषेक हुआ । उसके बाद १५४० ई. में लाहौर पर अधिकार कर लिया । बाद में ख्वास खाँ और हैबत खाँ ने पूरे पंजाब पर अधिकार कर लिया । फलतः शेरशाह ने भारत में पुनः द्वितीय अफगान साम्राज्य की स्थापना की । इतिहास में इसे सूरवंश के नाम से जाना जाता है । सिंहासन पर बैठते समय शेरशाह ६८ वर्ष का हो चुका था और ५ वर्ष तक शासन सम्भालने के बाद मई १५४५ ई. में उसकी मृत्यु हो गई ।