सूर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
Sushma (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०७:५०, १२ मई २००९ का अवतरण
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

सूरदास

हिन्दी साहित्य में भक्तिकाल में कृष्ण-भक्ति के भक्त कवियों में महाकवि सूरदास का नाम अग्रणी है । उनका जन्म 1478 ईस्वी में मथुरा आगरा मार्ग पर स्थित रुनकता नामक गांव में हुआ था । कुछ लोगों का कहना है कि सूरदास जी का जन्म सीही नामक ग्राम में एक गरीब सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था । बाद में वह आगरा और मथुरा के बीच गऊघाट पर आकर रहने लगे थे ।सूरदास जी के पिता श्री रामदास गायक थे । सूरदास जी के जन्मांध होने के विषय में भी मतभेद हैं । आगरा के समीप गऊघाट पर उनकी भेंट श्री वल्लभाचार्य से हुई और वे उनके शिष्य बन गए । वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षा दे कर कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया । सूरदास जी अष्टछाप कवियों में एक थे । सूरदास जी की मृत्यु गोवर्धन के पास पारसौली ग्राम में 1583 ईस्वी में हुई सूरदास की जन्मतिथि एवं जन्मस्थान के विषय में विद्वानों में मतभेद है । " साहित्य लहरी' सूरदास जी की रचना मानी जाती है । 'साहित्य लहरी' के रचना-काल के सम्बन्ध में निम्न पद मिलता है -

मुनि पुनि के रस लेख । दसन गौरीनन्द को लिखि सुवल संवत् पेख ।।

रचनाएं-

सूरदास जी द्वारा लिखित पाँच ग्रन्थ बताए जाते हैं -

सूरसागर
सूरसारावली
साहित्य-लहरी
नल-दमयन्ती
ब्याहलो

मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै ।

जैसे उड़ि जहाज की पंछी, फिरि जहाज पै आवै ॥

कमल-नैन को छाँड़ि महातम, और देव को ध्यावै ।

परम गंग को छाँड़ि पियासो, दुरमति कूप खनावै ॥

जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यो, क्यों करील-फल भावै।

'सूरदास' प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै ॥