हेमू

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हेमू

हेमू के पिता राय पूरनमल राजस्थान के अलवर जिले से आकर रेवाड़ी के कुतुबपुर में बस गए थे । हेमू तब छोटे ही थे । बड़े होने पर वे भी पिता के व्यवसाय में जुट गए । वे शेरशाह सूरी की सेना को शौरा सप्लाई करते थे । शेरशाह उनके व्यक्तित्व से काफी प्रभावित था । उसने हेमू को अपनी सेना में उच्च पद दे दिया । इसके बाद हेमू ने 22 युद्ध जीते और दिल्ली सल्तनत का सम्राट बना । युद्ध में हेमू को बैरम खां की रणनीति पर छल से मारा गया । बैरम खाँ की सहायता से अकबर ने शेरशाह के वंशजों को नियंत्रित करने का बीड़ा उठाया । उसके हाथ से दिल्ली और आगरा भी निकल गए । बैरम खाँ पंजाब में उलझा हुआ था कि अफग़ानों की एक शाखा का मंत्री हेमू ( हेमचंद्र ) ने हमला कर दिया । हेमू राजवंशी न था लेकिन वह इतना प्रबल हो गया था कि उसने 'विक्रमादित्य' की उपाधि धारण की थी । हेमू ने शीघ्र ही ग्वालियर-आगरा पर अधिकार कर लिया । मुग़ल सेनापति उसे रोकने में असमर्थ रहे । शीघ्र ही उसका दिल्ली पर अधिकार हो गया । पश्चिम से बैरम खाँ के नेतृत्व में अकबर ने उसे रोका । पानीपत के प्रसिद्ध मैदान में हेमू की विशाल सेना के सामने मुग़ल सेना तुच्छ थी । स्वयं हेमू 'हवाई' नामक एक विशाल हाथी पर सवार हो सैन्य संचालन कर रहा था । मुग़ल सेना में दहशत थी । बैरम खाँ ने अकबर को सुरक्षित स्थान पर छोड़ा और वह स्वयं सेना लेकर आगे बढ़ा । हेमू ने अपने 1500 हाथियों को मध्य भाग में बढ़ाया । इससे मुगल सेना में गड़बड़ी फैल गई और ऐसा जान पड़ा कि हेमू की सेना मुग़लों को रौंद देगी, पर हेमू की एक आँख में तीर लगा जो उसके सिर को छेदकर दूसरी ओर निकल गया । हेमू के दल में भगदड़ मच गई । हेमू का महावत 'हवाई '(हाथी) को भगाकर ले जा रहा था, पर हेमू पकड़ा गया । वह अकबर के सामने लाया गया तो बैरम खाँ ने अकबर से कहा कि हजरत इसे मारकर 'गाजी' की उपाधि धारण करें, पर अकबर राज़ी नहीं हुआ, हेमू को और लोगों ने मार डाला ।