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गीता अध्याय-1 श्लोक-31 / Gita Chapter-1 Verse-31
प्रसंग-
<balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ने यह कहा कि स्वजनों को मारने से किसी प्रकार का भी हित होने की सम्भावना नहीं है, अब फिर वे उसी की पुष्टि करते हैं-
निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव ।
न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे ।।31।।
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हे <balloon title="मधुसूदन, केशव, वासुदेव, माधव, जनार्दन भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है ।" style="color:green">केशव</balloon> ! मैं लक्षणों को भी विपरीत ही देख रहा हूँ तथा युद्ध में स्वजन-समुदाय को मारकर कल्याण भी नहीं देखता ।।31।।
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Kesava, I see such omens of evil, nor do I see any good in killing my kinsmen in battle.(31)
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निमित्तानि = लक्षणों को; च = भी; विपरीतानि = विपरीत; पश्यामि =देखता हूं; आहवे; युद्व में; स्वजनम् = अपने कुल को; हत्वा = मारकर; श्रेय: = कल्याण; च = भी; अनुपश्यामि = देखता;
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