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+ | '''औरंगज़ेब / [[:en:Aurangzeb|Aurangzeb]] (शासन काल 1658 से 1707)'''<br /> | ||
+ | औरंगजेब अपने सगे भाई−भतीजों की निर्ममता पूर्वक हत्या और अपने वृद्ध पिता ([[शाहजहाँ]]) को गद्दी से हटा कर सम्राट बना था। उसने शासन सँभालते ही [[अकबर]] के समय से प्रचलित नीति में परिवर्तन किया। उदारता और सहिष्णुता के स्थान पर उसने मज़हबी कट्टरता को अपनाया और वह मुग़ल साम्राज्य को एक कट्टर इस्लामी सल्तनत बनाने की पूरी् कोशिश करने लगा। औरंगजेब ने अपनी नई नीति को कार्यान्वित करने के लिए प्रशासन के पदों से उन कर्मचारियों को हटा दिया, जिनमें थोड़ी भी धार्मिक उदारता थी या जिन्हें हिन्दुओं से सहानुभूति थी। जिन राजाओं की वीरता और स्वामिभक्ति के कारण मुग़ल साम्राज्य इतना विस्तृत और समृद्धिशाली बना था, उन्हें वह सदा संदेह दृष्टि से देखा करता था। जिस समय वह सम्राट बना था, उस समय शासन और सेना में कितने ही बड़े−बड़े पदों पर राजपूत राजा नियुक्त थे। वह उनसे घृणा करता था और उनका अहित करने का कुचक्र रचता रहता था। अपनी हिन्दू विरोधी नीति की सफलता में उसे जिन राजाओं की ओर से बाधा जान पड़ती थी, उनमें आमेर नरेश मिर्जा राजा [[जयसिंह]] और जोधपुर के राजा [[यशवंतसिंह]] प्रमुख थे। उन दोनों का मुग़ल सम्राटों से पारिवारिक संबंध होने के कारण राज्य में बड़ा प्रभाव था। इसलिए औरंगजेब को प्रत्यक्ष रूप से उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही करने का साहस नहीं होता था ; किंतु वह उनका अहित करने की नित्य नई चालें चलता रहता था। औरंगजेब की ओर से मथुरा का फौजदार अब्दुलनवी नामक एक कट्टर मुसलमान था। सन 1669 में [[गोकुल सिंह]] जाट के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया। [[महावन]] परगना के सिहोरा गाँव में उसकी विद्रोहियों से मुठभेड़ हुई जिसमें [[अब्दुलनवी]] मारा गया और मु्ग़ल सेना बुरी तरह हार गई। | ||
==विद्रोहियों का दमन== | ==विद्रोहियों का दमन== | ||
− | औरंगजेब ने उन्हें दबाने के लिए कई बार सेना भेजी; किंतु उसे सफलता नहीं | + | औरंगजेब ने उन्हें दबाने के लिए कई बार सेना भेजी; किंतु उसे सफलता नहीं मिली। वह नवंबर, सन् 1669 में ख़ुद सेना सहित [[दिल्ली]] से [[मथुरा]] की ओर बढ़ा। उसने अपने एक सेनापति हसनअली को मथुरा का फौजदार नियुक्त कर आदेश दिया कि वह विद्रोहियों को कुचल दे और [[ब्रज]] के हिन्दुओं को बर्बाद कर दे। हसनअली ने शाही सेना के साथ [[गोकुल सिंह|गोकुला]] को उसने साथियों सहित घेर लिया और उन पर आक्रमण कर दिया। गोकुल की सेना शाही सेना की तुलना में बहुत कम थी; फिर भी उसने कड़ा मुक़ाबला किया। अंत में गोकुला की हार हुई। उस युद्ध में अनेक विद्रोही मारे गये, और बहुत से पकड़ लिये गये। गोकुला को बड़ी निर्दयतापूर्वक मारा गया ; और पकड़े हुए लोगों को मुसलमान बनाया गया। इस प्रकार उस विद्रोह का अंत हुआ। इस घटना के बाद औरंगजेब ने ब्रज में ऐसा दमन−चक्र चलाया कि यहाँ सुल्तानी काल से भी बुरी स्थिति हो गई। |
'''ब्रज के स्थानों का नाम परिवर्तन''' | '''ब्रज के स्थानों का नाम परिवर्तन''' | ||
− | औरंगज़ेब ने ब्रज संस्कृति को आघात पहुँचाने के लिये ब्रज के नामों को परिवर्तित | + | औरंगज़ेब ने ब्रज संस्कृति को आघात पहुँचाने के लिये ब्रज के नामों को परिवर्तित किया। [[मथुरा]], [[वृन्दावन]], [[पारसौली]] ([[गोवर्धन]]) को क्रमश: इस्लामाबाद, मेमिनाबाद और मुहम्मदपुर कहा गया था। वे सभी नाम अभी तक सरकारी कागजों में रहे आये हैं, जनता में कभी प्रचलित नहीं हुए। |
'''जज़िया कर''' | '''जज़िया कर''' | ||
− | [[ब्रज]] में आने वाले तीर्थ−यात्रियों पर भारी कर लगाया गया, मंदिर नष्ट किये लगे, जज़िया कर फिर से लगाया गया और हिन्दुओं को मुसलमान | + | [[ब्रज]] में आने वाले तीर्थ−यात्रियों पर भारी कर लगाया गया, मंदिर नष्ट किये लगे, जज़िया कर फिर से लगाया गया और हिन्दुओं को मुसलमान बनाया। उस समय के कवियों की रचनाओं में औरंगज़ेब के अत्याचारों का उल्लेख इस प्रकार है-<br /> |
− | *जब तें साह तख्त पर | + | *जब तें साह तख्त पर बैठे। तब तें हिन्दुन तें उर ऐंठे ॥<br /> |
− | महँगे कर तीरथन | + | महँगे कर तीरथन लगाये। देव-देवालै निदरि ढहाए ॥<br /> |
− | घर-घर बाँधि जेजिया | + | घर-घर बाँधि जेजिया लीन्हें। अपने मन भाये सब कीन्हे ॥<br /> ( लाल कृत 'छात्र प्रकाश' ) |
− | *देवल गिरावते फिरावते निसान अली, ऐसे डूबे राव-राने सबी गये लब की ॥<br /> (भूषण कवि ) तोड़े गये मंदिरों की जगह पर मस्ज़िद और सराय बनाई गईं तथा मकतब और कसाईखाने का कायम किये | + | *देवल गिरावते फिरावते निसान अली, ऐसे डूबे राव-राने सबी गये लब की ॥<br /> (भूषण कवि ) तोड़े गये मंदिरों की जगह पर मस्ज़िद और सराय बनाई गईं तथा मकतब और कसाईखाने का कायम किये गये। हिन्दुओं के दिल को दुखाने के लिए गो−वध करने की खुली टूट दे दी गई। |
''' धर्माचार्यों का निष्क्रमण''' | ''' धर्माचार्यों का निष्क्रमण''' | ||
− | जब ब्रज में इतना अत्याचार होने लगा, तब यहाँ के धर्मप्राण भक्तजन अपनी देव−मूर्तियाँ और धार्मिक पोथियों को लेकर भागने का विचार करने | + | जब ब्रज में इतना अत्याचार होने लगा, तब यहाँ के धर्मप्राण भक्तजन अपनी देव−मूर्तियाँ और धार्मिक पोथियों को लेकर भागने का विचार करने लगे। किंतु कहाँ जायें, यह उनके लिए बड़ी समस्या थी। वे तीर्थ स्थानों में रह कर अपना धर्म−कर्म करना चाहते थे ; किंतु यहाँ रहना उनके लिए असंभव हो गया था। महात्मा 'सूर किशोर' ने उस समय के भक्तों की मनोस्थिति को इस प्रकार व्यक्त किया है-<br /> |
− | *जहँ तीरथ तहँ जमन-बास, पुनि जीविका न | + | *जहँ तीरथ तहँ जमन-बास, पुनि जीविका न लहियै। असन-बसन जहँ मिलै, तहाँ सतसंगन पैयै ॥<br /> |
− | राह चोर-बटमार कुटिल, निरधन दुख | + | राह चोर-बटमार कुटिल, निरधन दुख देहीं। सहबासिन सन बैर, दूर कहुँ बसै सनेही ॥<br /> |
− | कहैं 'सूर किसोर' मिलैं नहीं, जथा जोग चाही | + | कहैं 'सूर किसोर' मिलैं नहीं, जथा जोग चाही जहाँ। कलिकाल ग्रसेउ अति प्रबल हिय, हाय राम ! रहियै कहाँ ?<br /> (मिथिला माहात्म्य, छ्न्द- 1 ) |
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− | उस समय कुछ प्रभावशाली हिन्दू राज्यों की स्थिति औरंगजेब के मज़हबी तानाशाही से मुक्त थी ; अत: ब्रज के अनेक धर्माचार्य एवं भक्तजन अपने परिकर के साथ वहाँ जा कर बसने | + | उस समय कुछ प्रभावशाली हिन्दू राज्यों की स्थिति औरंगजेब के मज़हबी तानाशाही से मुक्त थी ; अत: ब्रज के अनेक धर्माचार्य एवं भक्तजन अपने परिकर के साथ वहाँ जा कर बसने लगे। उस अभूतपूर्व धार्मिक निष्क्रमण के फलस्वरूप ब्रज में गोवर्धन और गोकुल जैसे समृद्धिशाली धर्मस्थान उजड़ गये, और वृन्दावन शोभाहीन हो गया था। औरंगजेब के शासन में ब्रज की जैसी बर्बादी हुई, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। |
'''जज़िया कर का पुन:प्रचलन''' | '''जज़िया कर का पुन:प्रचलन''' | ||
− | जो लोग मुसलमान नहीं होना चाहते थे, उनसे मुस्लिम शासन में जज़िया नाम से कर वसूल किया जाता | + | जो लोग मुसलमान नहीं होना चाहते थे, उनसे मुस्लिम शासन में जज़िया नाम से कर वसूल किया जाता था। यह कर [[अकबर]] के शासन में हटा दिया गया था। तब से लेकर औरंगजेब के शासन के आरंभिक काल तक वह बंद रहा। जब मिर्जा राजा जयसिंह के बाद महाराज यशवंत सिंह का भी देहांत हो गया, तब औरंगजेब ने निरंकुश होकर सन 1679 में फिर से इस कर को लगाया। इस अपमानपूर्ण कर का हिन्दुओं द्वारा विरोध किया गया। मेवाड़ के वृद्ध राणा राजसिंह ने इसके विरोध में औरंगजेब को उपालंभ देते हुए एक पत्र लिखा था, जिसका उल्लेख टॉड कृत राजस्थान नामक ग्रंथ में हुआ है। |
'''मथुरा की दुर्दशा''' | '''मथुरा की दुर्दशा''' | ||
− | औरंगजेब के अत्याचारों से मथुरा की जनता अपने पैतृक आवासों को छोड़ कर निकटवर्ती हिन्दू राजाओं के राज्यों में जाकर बसने लगी | + | औरंगजेब के अत्याचारों से मथुरा की जनता अपने पैतृक आवासों को छोड़ कर निकटवर्ती हिन्दू राजाओं के राज्यों में जाकर बसने लगी थी। जो रह गये थे, वे बड़ी कठिन परिस्थिति में अपने जीवन बिता रहे थे। उस समय में मथुरा का कोई महत्व नहीं था। उसकी धार्मिक के साथ ही साथ उसकी भौतिक समृद्धि भी समाप्त हो गई थी। प्रशासन की दृष्टि से उस समय में मथुरा से अधिक [[महावन]], सहार और [[सादाबाद]] का महत्व था, वहाँ मुसलमानों की संख्या भी अपेक्षाकृत अधिक थी। |
'''औरंगज़ेब की मृत्यु''' | '''औरंगज़ेब की मृत्यु''' | ||
− | औरंगज़ेब के अन्तिम समय में दक्षिण में मराठों का ज़ोर बहुत बढ़ गया | + | औरंगज़ेब के अन्तिम समय में दक्षिण में मराठों का ज़ोर बहुत बढ़ गया था। उन्हें दबाने में शाही सेना को सफलता नहीं मिल रही थी। इसलिए सन 1683 में औरंगज़ेब स्वयं सेना लेकर दक्षिण गया। वह राजधानी से दूर रहता हुआ अपने शासन−काल के लगभग अंतिम 25 वर्ष तक उसी अभियान में रहा। 50 वर्ष तक शासन करने के बाद उसकी मृत्यु दक्षिण के अहमदनगर में 3 मार्च सन 1707 ई॰ में हो गई थी। उसकी नीति ने इतने विरोधी पैदा कर दिये, जिस कारण मुग़ल साम्राज्य का अंत ही हो गया। वतर्मान काल के विद्वानों ने औरंगज़ेब की नीति की आलोचना करते हुए उसके दुष्परिणामों का उल्लेख किया है। |
*प्रो0 कादरी ने लिखा है- '[[बाबर]] ने मुग़ल राज्य के भवन के लिए मैदान साफ किया, [[हुमायूँ]] ने उसकी नीव डाली, [[अकबर]] ने उस पर सुंदर भवन खड़ा किया, [[जहाँगीर]] ने उसे सजाया−सँवारा, [[शाहजहाँ]] ने उसमें निवास कर आंनद किया; किंतु औरंगज़ेब ने उसे विध्वंस कर दिया था।' | *प्रो0 कादरी ने लिखा है- '[[बाबर]] ने मुग़ल राज्य के भवन के लिए मैदान साफ किया, [[हुमायूँ]] ने उसकी नीव डाली, [[अकबर]] ने उस पर सुंदर भवन खड़ा किया, [[जहाँगीर]] ने उसे सजाया−सँवारा, [[शाहजहाँ]] ने उसमें निवास कर आंनद किया; किंतु औरंगज़ेब ने उसे विध्वंस कर दिया था।' | ||
− | *डा. रामधारीसिंह का कथन है− 'बाबर से लेकर शाहजहाँ तक | + | *डा. रामधारीसिंह का कथन है− 'बाबर से लेकर शाहजहाँ तक मुग़लों ने भारत की जिस सामाजिक [[संस्कृति]] को पाल−पोस कर खड़ा किया था, उसे औरंगजेब ने एक ही झटके से तोड़ डाला और साथ ही साम्राज्य की कमर भी तोड़ दी। वह हिन्दुओं का ही नहीं सूफियों का भी दुश्मन था और सरमद जैसे संत को उसने सूली पर चढ़ा दिया।' |
− | औरंगजेब के पुत्रों में बड़े का नाम मुअज़्ज़म और छोटे का नाम आज़ाम | + | औरंगजेब के पुत्रों में बड़े का नाम मुअज़्ज़म और छोटे का नाम आज़ाम था। मुअज़्ज़म औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद मुग़ल सम्राट हुआ। |
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औरंगज़ेब
| |
पूरा नाम | अब्दुल मुज़फ़्फ़र मुइनुद्दीन मुहम्मद औरंगज़ेब बहादुर आलमगीर पादशाह गाज़ी |
अन्य नाम | औरंगज़ेब आलमगीर |
जन्म | 4 नवम्बर, सन 1618 ई. |
जन्म भूमि | दोहद (उज्जैन) |
पिता/माता | शाहजहाँ, मुमताज महल |
पति/पत्नी | रबिया दुर्रानी |
संतान | पुत्री- जेबुन्निसा, पुत्र- सुल्तान मुहम्मद, शाहजादा मुअज्ज़म, आज़म, शहजादा अकबर, कामबख्श |
उपाधि | औरंगज़ेब |
शासन | 31 जुलाई, सन 1658 ई. से 3 मार्च, सन 1707 ई. तक |
राज्याभिषेक | 15 जून, सन 1659 ई. में लाल क़िला, दिल्ली |
निर्माण | लाहौर की बादशाही मस्जिद 1674 ई. में, बीबी का मक़बरा, औरंगाबाद [१], मोती मस्जिद [२] |
मृत्यु तिथि | 3 मार्च, सन 1707 ई. |
मृत्यु स्थान | अहमदनगर के पास |
मक़्बरा | खुलदाबाद |
औरंगज़ेब / Aurangzeb (शासन काल 1658 से 1707)
औरंगजेब अपने सगे भाई−भतीजों की निर्ममता पूर्वक हत्या और अपने वृद्ध पिता (शाहजहाँ) को गद्दी से हटा कर सम्राट बना था। उसने शासन सँभालते ही अकबर के समय से प्रचलित नीति में परिवर्तन किया। उदारता और सहिष्णुता के स्थान पर उसने मज़हबी कट्टरता को अपनाया और वह मुग़ल साम्राज्य को एक कट्टर इस्लामी सल्तनत बनाने की पूरी् कोशिश करने लगा। औरंगजेब ने अपनी नई नीति को कार्यान्वित करने के लिए प्रशासन के पदों से उन कर्मचारियों को हटा दिया, जिनमें थोड़ी भी धार्मिक उदारता थी या जिन्हें हिन्दुओं से सहानुभूति थी। जिन राजाओं की वीरता और स्वामिभक्ति के कारण मुग़ल साम्राज्य इतना विस्तृत और समृद्धिशाली बना था, उन्हें वह सदा संदेह दृष्टि से देखा करता था। जिस समय वह सम्राट बना था, उस समय शासन और सेना में कितने ही बड़े−बड़े पदों पर राजपूत राजा नियुक्त थे। वह उनसे घृणा करता था और उनका अहित करने का कुचक्र रचता रहता था। अपनी हिन्दू विरोधी नीति की सफलता में उसे जिन राजाओं की ओर से बाधा जान पड़ती थी, उनमें आमेर नरेश मिर्जा राजा जयसिंह और जोधपुर के राजा यशवंतसिंह प्रमुख थे। उन दोनों का मुग़ल सम्राटों से पारिवारिक संबंध होने के कारण राज्य में बड़ा प्रभाव था। इसलिए औरंगजेब को प्रत्यक्ष रूप से उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही करने का साहस नहीं होता था ; किंतु वह उनका अहित करने की नित्य नई चालें चलता रहता था। औरंगजेब की ओर से मथुरा का फौजदार अब्दुलनवी नामक एक कट्टर मुसलमान था। सन 1669 में गोकुल सिंह जाट के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया। महावन परगना के सिहोरा गाँव में उसकी विद्रोहियों से मुठभेड़ हुई जिसमें अब्दुलनवी मारा गया और मु्ग़ल सेना बुरी तरह हार गई।
विद्रोहियों का दमन
औरंगजेब ने उन्हें दबाने के लिए कई बार सेना भेजी; किंतु उसे सफलता नहीं मिली। वह नवंबर, सन् 1669 में ख़ुद सेना सहित दिल्ली से मथुरा की ओर बढ़ा। उसने अपने एक सेनापति हसनअली को मथुरा का फौजदार नियुक्त कर आदेश दिया कि वह विद्रोहियों को कुचल दे और ब्रज के हिन्दुओं को बर्बाद कर दे। हसनअली ने शाही सेना के साथ गोकुला को उसने साथियों सहित घेर लिया और उन पर आक्रमण कर दिया। गोकुल की सेना शाही सेना की तुलना में बहुत कम थी; फिर भी उसने कड़ा मुक़ाबला किया। अंत में गोकुला की हार हुई। उस युद्ध में अनेक विद्रोही मारे गये, और बहुत से पकड़ लिये गये। गोकुला को बड़ी निर्दयतापूर्वक मारा गया ; और पकड़े हुए लोगों को मुसलमान बनाया गया। इस प्रकार उस विद्रोह का अंत हुआ। इस घटना के बाद औरंगजेब ने ब्रज में ऐसा दमन−चक्र चलाया कि यहाँ सुल्तानी काल से भी बुरी स्थिति हो गई।
ब्रज के स्थानों का नाम परिवर्तन
औरंगज़ेब ने ब्रज संस्कृति को आघात पहुँचाने के लिये ब्रज के नामों को परिवर्तित किया। मथुरा, वृन्दावन, पारसौली (गोवर्धन) को क्रमश: इस्लामाबाद, मेमिनाबाद और मुहम्मदपुर कहा गया था। वे सभी नाम अभी तक सरकारी कागजों में रहे आये हैं, जनता में कभी प्रचलित नहीं हुए।
जज़िया कर
ब्रज में आने वाले तीर्थ−यात्रियों पर भारी कर लगाया गया, मंदिर नष्ट किये लगे, जज़िया कर फिर से लगाया गया और हिन्दुओं को मुसलमान बनाया। उस समय के कवियों की रचनाओं में औरंगज़ेब के अत्याचारों का उल्लेख इस प्रकार है-
- जब तें साह तख्त पर बैठे। तब तें हिन्दुन तें उर ऐंठे ॥
महँगे कर तीरथन लगाये। देव-देवालै निदरि ढहाए ॥
घर-घर बाँधि जेजिया लीन्हें। अपने मन भाये सब कीन्हे ॥
( लाल कृत 'छात्र प्रकाश' )
- देवल गिरावते फिरावते निसान अली, ऐसे डूबे राव-राने सबी गये लब की ॥
(भूषण कवि ) तोड़े गये मंदिरों की जगह पर मस्ज़िद और सराय बनाई गईं तथा मकतब और कसाईखाने का कायम किये गये। हिन्दुओं के दिल को दुखाने के लिए गो−वध करने की खुली टूट दे दी गई।
धर्माचार्यों का निष्क्रमण
जब ब्रज में इतना अत्याचार होने लगा, तब यहाँ के धर्मप्राण भक्तजन अपनी देव−मूर्तियाँ और धार्मिक पोथियों को लेकर भागने का विचार करने लगे। किंतु कहाँ जायें, यह उनके लिए बड़ी समस्या थी। वे तीर्थ स्थानों में रह कर अपना धर्म−कर्म करना चाहते थे ; किंतु यहाँ रहना उनके लिए असंभव हो गया था। महात्मा 'सूर किशोर' ने उस समय के भक्तों की मनोस्थिति को इस प्रकार व्यक्त किया है-
- जहँ तीरथ तहँ जमन-बास, पुनि जीविका न लहियै। असन-बसन जहँ मिलै, तहाँ सतसंगन पैयै ॥
राह चोर-बटमार कुटिल, निरधन दुख देहीं। सहबासिन सन बैर, दूर कहुँ बसै सनेही ॥
कहैं 'सूर किसोर' मिलैं नहीं, जथा जोग चाही जहाँ। कलिकाल ग्रसेउ अति प्रबल हिय, हाय राम ! रहियै कहाँ ?
(मिथिला माहात्म्य, छ्न्द- 1 )
उस समय कुछ प्रभावशाली हिन्दू राज्यों की स्थिति औरंगजेब के मज़हबी तानाशाही से मुक्त थी ; अत: ब्रज के अनेक धर्माचार्य एवं भक्तजन अपने परिकर के साथ वहाँ जा कर बसने लगे। उस अभूतपूर्व धार्मिक निष्क्रमण के फलस्वरूप ब्रज में गोवर्धन और गोकुल जैसे समृद्धिशाली धर्मस्थान उजड़ गये, और वृन्दावन शोभाहीन हो गया था। औरंगजेब के शासन में ब्रज की जैसी बर्बादी हुई, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है।
जज़िया कर का पुन:प्रचलन
जो लोग मुसलमान नहीं होना चाहते थे, उनसे मुस्लिम शासन में जज़िया नाम से कर वसूल किया जाता था। यह कर अकबर के शासन में हटा दिया गया था। तब से लेकर औरंगजेब के शासन के आरंभिक काल तक वह बंद रहा। जब मिर्जा राजा जयसिंह के बाद महाराज यशवंत सिंह का भी देहांत हो गया, तब औरंगजेब ने निरंकुश होकर सन 1679 में फिर से इस कर को लगाया। इस अपमानपूर्ण कर का हिन्दुओं द्वारा विरोध किया गया। मेवाड़ के वृद्ध राणा राजसिंह ने इसके विरोध में औरंगजेब को उपालंभ देते हुए एक पत्र लिखा था, जिसका उल्लेख टॉड कृत राजस्थान नामक ग्रंथ में हुआ है।
मथुरा की दुर्दशा
औरंगजेब के अत्याचारों से मथुरा की जनता अपने पैतृक आवासों को छोड़ कर निकटवर्ती हिन्दू राजाओं के राज्यों में जाकर बसने लगी थी। जो रह गये थे, वे बड़ी कठिन परिस्थिति में अपने जीवन बिता रहे थे। उस समय में मथुरा का कोई महत्व नहीं था। उसकी धार्मिक के साथ ही साथ उसकी भौतिक समृद्धि भी समाप्त हो गई थी। प्रशासन की दृष्टि से उस समय में मथुरा से अधिक महावन, सहार और सादाबाद का महत्व था, वहाँ मुसलमानों की संख्या भी अपेक्षाकृत अधिक थी।
औरंगज़ेब की मृत्यु
औरंगज़ेब के अन्तिम समय में दक्षिण में मराठों का ज़ोर बहुत बढ़ गया था। उन्हें दबाने में शाही सेना को सफलता नहीं मिल रही थी। इसलिए सन 1683 में औरंगज़ेब स्वयं सेना लेकर दक्षिण गया। वह राजधानी से दूर रहता हुआ अपने शासन−काल के लगभग अंतिम 25 वर्ष तक उसी अभियान में रहा। 50 वर्ष तक शासन करने के बाद उसकी मृत्यु दक्षिण के अहमदनगर में 3 मार्च सन 1707 ई॰ में हो गई थी। उसकी नीति ने इतने विरोधी पैदा कर दिये, जिस कारण मुग़ल साम्राज्य का अंत ही हो गया। वतर्मान काल के विद्वानों ने औरंगज़ेब की नीति की आलोचना करते हुए उसके दुष्परिणामों का उल्लेख किया है।
- प्रो0 कादरी ने लिखा है- 'बाबर ने मुग़ल राज्य के भवन के लिए मैदान साफ किया, हुमायूँ ने उसकी नीव डाली, अकबर ने उस पर सुंदर भवन खड़ा किया, जहाँगीर ने उसे सजाया−सँवारा, शाहजहाँ ने उसमें निवास कर आंनद किया; किंतु औरंगज़ेब ने उसे विध्वंस कर दिया था।'
- डा. रामधारीसिंह का कथन है− 'बाबर से लेकर शाहजहाँ तक मुग़लों ने भारत की जिस सामाजिक संस्कृति को पाल−पोस कर खड़ा किया था, उसे औरंगजेब ने एक ही झटके से तोड़ डाला और साथ ही साम्राज्य की कमर भी तोड़ दी। वह हिन्दुओं का ही नहीं सूफियों का भी दुश्मन था और सरमद जैसे संत को उसने सूली पर चढ़ा दिया।'
औरंगजेब के पुत्रों में बड़े का नाम मुअज़्ज़म और छोटे का नाम आज़ाम था। मुअज़्ज़म औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद मुग़ल सम्राट हुआ।
सम्बंधित लिंक
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