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तत्रैव कोटितीर्थ तु देवानामपि दुर्ल्लभम् ।<br /> | तत्रैव कोटितीर्थ तु देवानामपि दुर्ल्लभम् ।<br /> | ||
तत्र स्नानेन दानेन मम लोके महीयते ।।<br /> | तत्र स्नानेन दानेन मम लोके महीयते ।।<br /> |
१३:५३, १४ फ़रवरी २०१० का अवतरण
कोटि तीर्थ / Koti Tirth
तत्रैव कोटितीर्थ तु देवानामपि दुर्ल्लभम् ।
तत्र स्नानेन दानेन मम लोके महीयते ।।
चक्रतीर्थं तु विख्यातं माथुरे मम मण्डले ।
यस्तत्र कुरूते स्नानं त्रिरात्रोपोषितो नर: ।
स्नानमात्रेण मनुजो मुख्यते ब्रह्महत्यया ।।
यहाँ स्नान करने से मनुष्य कोटि–कोटि गोदान का फल प्राप्त करता है । पास ही में गोकर्ण तीर्थ है । प्रसिद्ध गोकर्ण ने अपने भाई धुंधुकारी को श्रीमद्भागवत की कथा सुनाकर उसका प्रेमयोनि से उद्धार किया था । उन्हीं गोकर्ण की भगवद् आराधना का यह स्थल है ।
साँचा:यमुना के घाट