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०९:३८, २४ अक्टूबर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-13 श्लोक-19 / Gita Chapter-13 Verse-19
प्रसंग-
अब उन सबका वर्णन करने के लिये भगवान् पुन: प्रकृति और पुरूष के नाम से प्रकरण आरम्भ करते हैं । इसमें पहले प्रकृति पुरूष की अनादिता का प्रतिपादन करते हुए समस्त गुण और विकारों को प्रकृति जन्य बतलाते हैं –
प्रकृतिं पुरूषं चैव विद्ध्यनादी उभावपि ।
विकारांश्च गुणांश्चैव विद्धि प्रकृतिसंभवान् ।।19।।
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प्रकृति और पुरूष, इन दोनों को ही तू अनादि जान । और राग-द्वेषादि विकारों को तथा त्रिगुणात्मक सम्पूर्ण पदार्थों को भी प्रकृति से ही उत्पत्र जान ।।19।।
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Prakrti and purusa, know both these as beginningless, and know all modifications such as likes and dislikes etc., and all objects constituted of the three gunas as born of prakrti. (19)
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प्रकृतिम् = प्रकृति अर्थात् त्रिगणमयी मेरी माया ; च = और ; पुरूषम् = जीवात्मा अर्थात् क्षेत्रज्ञ ; उभौ = इन दोनों को ; एव = ही (तूं) ; अनादी = अनादि ; विद्धि = जान ; च = और ; विकारान् = रागद्वेषादि विकारों को ; च = तथा ; गुणान् = त्रिगुणात्मक संपूर्ण पदार्थों को ; अपि = भी ; प्रकृतिसंभवान् = प्रकृति से ही उत्पन्न हुए ; विद्धि = जान ;
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