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हि = क्योंकि ( वह पुरूष) ; सर्वत्र  = सब में ; समवस्थितम् = सभभाव से स्थित हुए ; ईश्र्वरम् = परमेश्र्वर को ; समम् = समान ; पश्यन् = देखता हुआ ; आत्मना ; अपने द्वारा ; आत्मानम् = आपको ; न हिनस्ति = नष्ट नहीं करता है ; तत: = इससे (वह) ; पराम् = परम ; गतिम् = गति को ; याति = प्राप्त होता है ;
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हि = क्योंकि ( वह पुरुष) ; सर्वत्र  = सब में ; समवस्थितम् = सभभाव से स्थित हुए ; ईश्र्वरम् = परमेश्र्वर को ; समम् = समान ; पश्यन् = देखता हुआ ; आत्मना ; अपने द्वारा ; आत्मानम् = आपको ; न हिनस्ति = नष्ट नहीं करता है ; तत: = इससे (वह) ; पराम् = परम ; गतिम् = गति को ; याति = प्राप्त होता है ;
 
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१२:०४, १४ फ़रवरी २०१० का अवतरण

गीता अध्याय-13 श्लोक-28 / Gita Chapter-13 Verse-28

प्रसंग-


उपर्युक्त श्लोक में यह कहा गया है कि उस परमेश्वर को जो सब भूतों में नाशरहित और समभाव से स्थित देखता है, वही ठीक देखता है; इस कथन की सार्थकता दिखलाते हुए उसका फल परमगति की प्राप्ति बतलाते हैं-


समं पश्यन्हि सर्वत्र समवस्थितमीश्वरम् ।
न हिनस्त्यात्मनात्मानं ततो याति परां गतिम् ।।28।।



क्योंकि जो पुरुष सब में समभाव से स्थित परमेश्वर को समान देखता हुआ अपने द्वारा अपने को नष्ट नहीं करता, इससे वह परम गति को प्राप्त होता है ।।28।।

For, he who kills not himself by himself be seeing the supreme lord, equally present in all, as one, thereby reaches the supreme state. (28)


हि = क्योंकि ( वह पुरुष) ; सर्वत्र = सब में ; समवस्थितम् = सभभाव से स्थित हुए ; ईश्र्वरम् = परमेश्र्वर को ; समम् = समान ; पश्यन् = देखता हुआ ; आत्मना ; अपने द्वारा ; आत्मानम् = आपको ; न हिनस्ति = नष्ट नहीं करता है ; तत: = इससे (वह) ; पराम् = परम ; गतिम् = गति को ; याति = प्राप्त होता है ;



अध्याय तेरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-13

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

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