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०५:५२, १७ नवम्बर २००९ का अवतरण
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गीता अध्याय-5 श्लोक-26 / Gita Chapter-5 Verse-26
प्रसंग-
कर्मयोग और सांख्ययोग – दोनों साधनों द्वारा परमात्मा की प्राप्ति और परमात्मा को प्राप्त महापुरूषों के लक्षण कहे गये । उक्त दोनों ही प्रकार के साधकों के लिये वैराग्यपूर्वक मन-इन्द्रियों को वश में करके ध्यान योग का साधन करना उपयोगी है; अत: अब संक्षेप में फलसहित ध्यान योग का वर्णन करते हैं-
कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम् ।
अभितो ब्रह्रानिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम् ।।26।।
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काम-क्रोध से रहित, जीते हुए चित्तवाले, परब्रह्रा परमात्मा का साक्षात्कार किये हुए ज्ञानी पुरूषों के लिये सब ओर से शान्त परब्रह्रा परमात्मा ही परिपूर्ण हैं ।।26।।
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To those wise men who are free from lust and anger, who have subdued their mind and have realized God, Brahma, the abode of eternal peace, is present all round..(26)
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कामक्रोध = काम क्रोध से रहित; यतचेतसाम् = जीते हुए चित्त वाले; विदितात्मनाम् = परब्रह्म परमात्मा का साक्षात्कार किये हुए; यतीनाम् = ज्ञानी पुरूषों के लिये; अभित: = अब ओर से; ब्रह्म निर्वाणम् = शान्त परब्रह्म परमात्मा ही; वर्तते = प्राप्त है।
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