गीता 5:22

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गीता अध्याय-5 श्लोक-22 / Gita Chapter-5 Verse-22

प्रसंग-


विषय भोगों को काम-क्रोधादि के निमित्त से दुख के हेतु बतलाकर अब मनुष्य शरीर का महत्व दिखलाते हुए भगवान् काम-क्रोधादि दुर्जय शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर लेने वाले पुरुष की प्रशंसा करते हैं-


ये हि संस्पर्शजा भोगा दु:खयोनय एव ते ।
आद्यन्तवन्त: कौन्तेय न तेषु रमते बुध: ।।22।।



जो ये इन्द्रिय तथा विषयों के संयोग से उत्पन्न होने वाले सब भोग हैं, वे यद्यपि विषयी पुरुषों को सुख रूप भासते हैं तो भी दु:ख के ही हेतु हैं और आदि अन्त वाले अर्थात् अनित्य हैं । इसलिये हे <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! बुद्धिमान् विवेकी पुरुष उनमें नहीं रमता ।।22।।

The pleasures which are born of sense-contacts are verily a source of suffering only (though appearing as enjoyable to worldly-minded pepole). They have a beginning and an end(they come and go). Arjuna, it is for this reason that a wise man does not indulge in them. (22)


संस्पर्शजा: = इन्द्रिय तथा विषयों के संयोग से उत्पन्न होने वाले; भोगा: = सब भोग हैं: ते = वे (यद्यपि विषयी पुरुषों को सुख रूप भासते हैं तोभी); हि =नि:सन्देह; दु;खयोनय: = दु:ख के ही हेतु हैं (और); आद्यन्तवन्त: = आदि अन्त वाले अर्थात् अनित्य हैं (इसलिये); कौन्तेय = हे अर्जुन: बुध: = बुद्विमान् विवेकी पुरुष; तेषु = उनमें; न = नहीं; रमते = रमता



अध्याय पाँच श्लोक संख्या
Verses- Chapter-5

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8, 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 ,28 | 29

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