गोकुल सिंह

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गोकुलराम

गोकुलराम ( लोग उसे गोकला नाम से जानते हैं ) के जीवन के बारे में बस यही पता चलता है कि सन् 1660-70 के दशक में वह तिलपत नामक इलाके का प्रभावशाली ज़मींदार था । तिलपत के ज़मींदार ने मुग़ल सत्ता को इस समय चुनौती दी । गोकुलराम में संगठन की बहुत क्षमता थी और वह बहुत साहसी और दृढ़प्रतिज्ञ था ।


उपेन्द्रनाथ शर्मा का कथन है कि "उसका जन्म सिनसिनी में हुआ था और वह सूरजमल का पूर्वज था । वह जाट, गूजर और अहीर किसानों का नेता बन गया और उसने कहा कि वे मुग़लों को मालगुज़ारी देना बन्द कर दें । शाही परगने में एक नामालूम-से जमींदार के विद्रोह को सहन नहीं किया जा सकता था । औरंगज़ेब ने एक शक्तिशाली सेना भेजी, पहली तो रदंदाज़ख़ाँ के अधीन और दूसरी हसनअली ख़ाँ के अधीन । वे एक-दूसरे के बाद मथुरा के फ़ौजदार नियुक्त किए गए । गोकुलराम से समझौते की बातचीत चलाई गई । यदि वह उस लूट को लौटा दे जो उसने जमा कर ली है, तो उसे क्षमा कर दिया जाएगा । भविष्य में सदाचरण का आश्वासन भी माँगा गया । परन्तु गोकुला राज़ी न हुआ । स्थिति बिगड़ती गई । स्वयं सम्राट औरंगज़ेब ने 28 नबम्बर, 1669 को दिल्ली से उपद्रवग्रस्त क्षेत्र के लिए प्रस्थान किया । वह मक्खी को मारने के लिए भारी घन का प्रयोग करने की तरह था । 4 दिसम्बर को हसनअली ख़ाँ ने ब्रह्मदेव सिसौदिया की सहायता से गोकुला और उसके समर्थकों के गाँवों पर आक्रमण किया, जो अद्भुत साहस और उत्साह के साथ लड़े । अन्त में वे हार गए इस लड़ाई में उनके 300 साथी मारे गए । औरंगज़ेब ने उदारता और मानवता के अपने एक दुर्लभ उदाहरण के रूप में "200 घुड़सवारों को अलग इस काम पर लगा दिया कि वे गाँववालों की फ़सलों की रक्षा करें और सैनिकों को गाँववालों पर अत्याचार करने या किसी भी बच्चे को बन्दी बनाने से रोकें ।" (उपेन्द्रनाथ शर्मा, 'ए न्यू हिस्ट्री ऑफ़ द जाट्स,' खंड एक, पृ.397) औरंगज़ेब ने हसनअली ख़ाँ को मथुरा का फ़ौजदार बना दिया ।


गोकुला और उसके साथियों को दबाने के लिए मुगल सेना में वृद्धि की गई । गोकुला ने जाट, अहीर और गूजर किसानों की 20,000 की सेना से हसन अली ख़ाँ और रज़ीउद्दीन भागलपुरी के नेतृत्व में आई मुग़ल सेना का मुकाबला किया । गोकुला और उसके चाचा उदयसिंह वीरता के साथ लड़े, परन्तु मुग़ल तोपख़ाने का वह मुकाबला नहीं कर सके । तीन दिन के घमासान युध्द के बाद गोकुला की हार हुई । इस युध्द में 4,000 मुग़ल सैनिक और 5,000 जाट मारे गए । गोकुला और उसके परिवार के सदस्य बन्दी कर लिये ।


सर जदुनाथ और उपेन्द्रनाथ शर्मा का कहना है कि " गोकला और उदयसिंह को आगरा लाया गया ; जब उन्होंने मुसलमान बनने से इंकार कर दिया, तो आगरा की कोतवाली के सामने उसकी बोटी-बोटी काटकर फेंक दी गई । गोकला के पुत्र और पुत्री को मुसलमान बना दिया गया ।" "वे जवाहर ख़ाँ नाज़िर को सौंप दिए गए; लड़की की शादी गुलामशाह कुली से कर दी गई और लड़के को क़ुरान पढ़ाया गया । उसका क़ुरान-पाठ सम्राट को बहुत अच्छा लगता था।" (के.आर.कानूनगो, 'हिस्ट्री ऑफ़ द जाट्स,' पृ.39) कानूनगो का विचार है – "किसान लम्बे अरसे तक धीरतापूर्वक, बिना घबराए डटकर शौर्य प्रदर्शित करते हुए, जो सदा से उनकी चारित्रिक विशेषता रही है, लड़ते रहे । जब प्रतिरोध के लायक़ नहीं रहे, तब उनमें से बहुतों ने अपनी स्त्रियों को मार डाला और अपने प्राणों का खूब महँगा सौदा करने के लिए वे मुग़लों पर टूट पड़े ।.....गोकला का रक्त व्यर्थ नहीं बहा; उसने जाटों के हृदय में स्वतन्त्रता के नए अंकुर में पानी दिया ।"