"गोपी नाथ जी मन्दिर" के अवतरणों में अंतर

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इस शृंखला में यह कुछ पहले का मन्दिर है । इसका र्निर्माण कछवाहा ठाकुरों की शेखावत शाखा के संस्थापक के पौत्र रायसिल ने कराया बताते हैं । अफ़गान आक्रमण को विफल करने में उसने इतनी महानता और विशेषता के साथ काम किया था कि [[अकबर]] ने उसे एक जागीर के साथ 1250 घुड़सवारों का मनसबदार बना दिया था । [[अकबर]] के अधीन [[राजा मानसिंह]] का भी उसने राणाप्रताप के विरुद्ध साथ दिया था और काबुल के अभियान में भी ख्याति अर्जित की थी । उसके निधन की तिथि अज्ञात है । जिस मन्दिर का उसने निर्माण कराया बताते हैं, वह पूर्व वर्णित [[मदनमोहन मन्दिर]] से शिल्प में मिलता जुलता है । यह काफी भग्नावस्था में था। गर्भगृह पूरा गिर चुका था, तीनों बुर्ज छत से आ लगे थे और दरवाज़ा भी प्राय: गिर चुका था । इसके सहारे छप्पर बन गये थे जिससे यह दिखाई भी नहीं देता था । [[ग्राउस]] ने यह छप्पर गिरवा दिये थे । सन् 1821 ई० में एक बंगाली कायस्थ ने नया मन्दिर बनवाया जिसका नाम नन्दकुमार घोष था । इसी ने मदनमोहन का नया मन्दिर भी बनवाया था । लगभग 3000 रू० का भेंट-चढ़ावा इसमें आता था और प्राभूत से 1200 रूपये आते थे ।
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इस शृंखला में यह कुछ पहले का मन्दिर है । इसका र्निर्माण कछवाहा ठाकुरों की शेखावत शाखा के संस्थापक के पौत्र रायसिल ने कराया बताते हैं । अफ़गान आक्रमण को विफल करने में उसने इतनी महानता और विशेषता के साथ काम किया था कि [[अकबर]] ने उसे एक जागीर के साथ 1250 घुड़सवारों का मनसबदार बना दिया था । [[अकबर]] के अधीन [[राजा मानसिंह]] का भी उसने राणाप्रताप के विरुद्ध साथ दिया था और काबुल के अभियान में भी ख्याति अर्जित की थी । उसके निधन की तिथि अज्ञात है । जिस मन्दिर का उसने निर्माण कराया बताते हैं, वह पूर्व वर्णित [[मदनमोहन]] मन्दिर से शिल्प में मिलता जुलता है । यह काफी भग्नावस्था में था। गर्भगृह पूरा गिर चुका था, तीनों बुर्ज छत से आ लगे थे और दरवाज़ा भी प्राय: गिर चुका था । इसके सहारे छप्पर बन गये थे जिससे यह दिखाई भी नहीं देता था । [[ग्राउस]] ने यह छप्पर गिरवा दिये थे । सन् 1821 ई० में एक बंगाली कायस्थ ने नया मन्दिर बनवाया जिसका नाम नन्दकुमार घोष था । इसी ने मदनमोहन का नया मन्दिर भी बनवाया था । लगभग 3000 रू० का भेंट-चढ़ावा इसमें आता था और प्राभूत से 1200 रूपये आते थे ।

१३:०६, १७ मई २००९ का अवतरण

गोपी नाथ जी मन्दिर

  • निर्माण काल - निश्‍िचत तिथि अज्ञात
  • निर्माता- कछवाहा ठाकुरों की शेखावत शाखा के संस्थापक के पौत्र रायसिल
  • निर्माण शैली - मदनमोहन मन्दिर से शिल्प में मिलता जुलता है ।

सन् 1821 ई० में एक बंगाली कायस्थ ने नया मन्दिर बनवाया जिसका नाम नन्दकुमार घोष था ।


इस शृंखला में यह कुछ पहले का मन्दिर है । इसका र्निर्माण कछवाहा ठाकुरों की शेखावत शाखा के संस्थापक के पौत्र रायसिल ने कराया बताते हैं । अफ़गान आक्रमण को विफल करने में उसने इतनी महानता और विशेषता के साथ काम किया था कि अकबर ने उसे एक जागीर के साथ 1250 घुड़सवारों का मनसबदार बना दिया था । अकबर के अधीन राजा मानसिंह का भी उसने राणाप्रताप के विरुद्ध साथ दिया था और काबुल के अभियान में भी ख्याति अर्जित की थी । उसके निधन की तिथि अज्ञात है । जिस मन्दिर का उसने निर्माण कराया बताते हैं, वह पूर्व वर्णित मदनमोहन मन्दिर से शिल्प में मिलता जुलता है । यह काफी भग्नावस्था में था। गर्भगृह पूरा गिर चुका था, तीनों बुर्ज छत से आ लगे थे और दरवाज़ा भी प्राय: गिर चुका था । इसके सहारे छप्पर बन गये थे जिससे यह दिखाई भी नहीं देता था । ग्राउस ने यह छप्पर गिरवा दिये थे । सन् 1821 ई० में एक बंगाली कायस्थ ने नया मन्दिर बनवाया जिसका नाम नन्दकुमार घोष था । इसी ने मदनमोहन का नया मन्दिर भी बनवाया था । लगभग 3000 रू० का भेंट-चढ़ावा इसमें आता था और प्राभूत से 1200 रूपये आते थे ।