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चौंसठ कलाऐं
शिव की शक्ति का एक रुप है। शिव द्वारा विश्व की क्रमिक सृष्टि अथवा विकास की प्रक्रिया का ही नाम कला है। सभी कलाओं में शक्ति की अभिव्यक्ति है। शैव तंत्रौ में चौंसठ कलाओं का उल्लेख पाया जाता है। उनकी सूची निम्नांकित हैः
- गीत
- वाद्य
- नृत्य
- नाट्य
- आलेख्य
- विशेषकच्छेद्य
- तण्डुलकुसुमबलिविकार
- पुष्पास्तरण
- दशन-वसनांगराग
- मणिभूमिका कर्म
- शयनरचना
- उदकवाद्यम्
- पानकरसरागासवयोजन
- सूचीवापकर्म
- सूत्रक्रीड़ा
- प्रहेलिका
- प्रतिमाला
- दुर्वचकयोग
- पुस्तकवाचन
- नाटिकाख्यायिकादर्शन
- काव्यसमस्यापूरण
- पट्टिका-वेत्र-बाण-विकल्प
- तर्कु-कर्म
- तक्षण
- वास्तुविद्या
- रुप्यान्तरपरीक्षा
- धातुवाद
- मणिरागज्ञान
- आकरज्ञान
- वृक्षायुर्वेदयोग
- मेष-कुक्कुट-लावक-युध्द
- शुकसारिकाप्रलापन
- उदकघात
- चित्रायोग
- माल्यग्रथनविकल्प
- शेखरापीडयोजन
- नेपथ्यायोग
- कर्णपत्रभंग
- गन्धयुक्ति
- भूषणयोजन
- ऐन्द्रजाल
- कौचुमारयोग
- हस्तलाघव
- चित्रशाक-पूप-भक्ष्य-विकल्पक्रिया
- केशमार्जनकौशल
- अक्षरमुष्टिकाकथन
- म्लेच्छित-कविकर्म
- देशभाषाज्ञान
- पुष्पशकटिकाःनिमित्र-ज्ञान
- यन्त्रमातृका
- धारणमातृका
- सम्पाठय
- मानसीकाव्यक्रिया
- क्रियाविकल्प
- छलितकयोग
- अभिधानकोषछन्दोज्ञान
- वस्त्रगोपन
- द्यूतविशेष
- आकर्षक्रीड़ा
- बालकक्रीड़न
- वैनायिकीविद्याज्ञान
- वैजयिकीविद्याज्ञान
- वैतालिकीविद्याज्ञान
- उत्सादन