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<blockquote>यो वाप्यां धर्मराजस्य, मथुरायास्तु पश्चिमै । <br />
 
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स्थानं करोति तस्यां तु, ग्रहदोर्षनं लिप्यते ।।  ([[वराह पुराण]] अन्तर्गत मथुरा महात्म्य अ.–269–42)</blockquote>
 
स्थानं करोति तस्यां तु, ग्रहदोर्षनं लिप्यते ।।  ([[वराह पुराण]] अन्तर्गत मथुरा महात्म्य अ.–269–42)</blockquote>
अर्थात् जो लोग मथुरा के पश्चिम में स्थित धर्मराज की ईशवापी बावड़ी में स्नान करते हैं, उनके सारे ग्रह–दोष दूर हो जाते हैं एवं भगवत् भक्ति होती है । <br />
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अर्थात् जो लोग मथुरा के पश्चिम में स्थित धर्मराज की ईशवापी बावड़ी में स्नान करते हैं, उनके सारे ग्रह–दोष दूर हो जाते हैं एवं भगवत् भक्ति होती है।
 
 
 
<blockquote>सतयुग कौ इक तीरथ कहौ, वापी ज्ञानभक्तिकों लहों । <br />
 
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यामं जों स्नान करैजू, धोई पाप बहु पुन्य भरैजू ।। (कविवर हरिलाल ककोर की मथुरा परिक्रमा , पृष्ठ–9 विक्रमी 2800)</blockquote>
 
यामं जों स्नान करैजू, धोई पाप बहु पुन्य भरैजू ।। (कविवर हरिलाल ककोर की मथुरा परिक्रमा , पृष्ठ–9 विक्रमी 2800)</blockquote>
 
[[वायु पुराण]] के अनुसार धर्मराज [[युधिष्ठर]] ने इस बावड़ी का निर्माण कराया था । भगवान् श्रीकृष्ण और महाराज युधिष्ठिर का मन्त्रणा–स्थल होने के कारण भी यह स्थान महत्वपूर्ण है।<br />
 
[[वायु पुराण]] के अनुसार धर्मराज [[युधिष्ठर]] ने इस बावड़ी का निर्माण कराया था । भगवान् श्रीकृष्ण और महाराज युधिष्ठिर का मन्त्रणा–स्थल होने के कारण भी यह स्थान महत्वपूर्ण है।<br />
 
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सारे विश्व में शुद्ध भक्ति एवं कृष्ण नाम संकीर्तन का प्रचार करने वाले श्रीकृष्णाभिन्न शचीनन्दन गौरहरि के श्रीधाम मथुरा [[ब्रज]] में पधारने का भी वर्णन श्रीचैतन्य चरितामृत में विशेष रूप से किया गया है। वे मथुरा के [[विश्राम घाट]], [[यमुना]] में स्नान कर [[कटरा केशवदेव|श्रीकेशवदेव के मन्दिर]] में पधारे थे। उस समय भावावेश में उनको नृत्य और कीर्तन देखकर उनके दर्शनों के लिए हजारों लोगों की भीड़ उपस्थित हुई। उन्होंने ज्ञान बाबड़ी में स्नान और आचमन किया था। तत्पश्चात् बाबड़ी के निकटस्थ सानौढ़िया ब्राह्मण वैष्णव के घर पर ठहरने और वही प्रसाद पाने का उल्लेख भी चैतन्य चरितामृत में आता है। पौराणिक (ग्रन्थों) पुस्तकों में इस स्थान से राजा भर्तृहरि का सम्बन्ध होना भी पाया जाता है। यहीं राजा भर्तृहरि की समाधि भी स्थित थी, जो कुटिल काल की गति से कुछ परिवर्तित रूप में विद्यमान है।  
सारे विश्व में शुद्ध भक्ति एवं कृष्ण नाम संकीर्तन का प्रचार करने वाले श्रीकृष्णाभिन्न शचीनन्दन गौरहरि के श्रीधाम मथुरा [[ब्रज]] में पधारने का भी वर्णन श्रीचैतन्य चरितामृत में विशेष रूप से किया गया है। वे मथुरा में [[विश्राम घाट]] [[यमुना]] में स्नान कर [[कटरा केशवदेव|श्रीकेशवदेव के मन्दिर]] में पधारे थे। उस समय भावावेश में उनको नृत्य और कीर्तन देखकर उनके दर्शनों के लिए हजारों लोगों की भीड़ उपस्थित हुई। उन्होंने ज्ञान बाबड़ी में स्नान और आचमन किया था। तत्पश्चात् बाबड़ी के निकटस्थ सानौढ़िया ब्राह्मण वैष्णव के घर पर ठहरने और वही प्रसाद पाने का उल्लेख भी चैतन्य चरितामृत में आता है। पौराणिक (ग्रन्थों) पुस्तकों में इस स्थान से राजा भर्तृहरि का सम्बन्ध होना भी पाया जाता है। यहीं राजा भर्तृहरि की समाधि भी स्थित थी, जो कुटिल काल की गति से कुछ परिवर्तित रूप में विद्यमान है।  
 
 
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[[Category:कोश]]
 
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१२:५८, १६ फ़रवरी २०१० का अवतरण

ज्ञान वापी / Gyan Vapi

मथुरा की पंचकोसी परिक्रमा मार्ग में भूतेश्वर महादेव और कटरा केशवदेव (श्रीकृष्ण जन्मस्थान) के मध्य में भूगर्भ में छिपा हुआ एक महत्वपूर्ण पौराणिक तीर्थ है– ज्ञान वापी या ज्ञानबाउड़ी । इस तीर्थ के सम्बन्ध में ऐसा उल्लेख है–

यो वाप्यां धर्मराजस्य, मथुरायास्तु पश्चिमै ।
स्थानं करोति तस्यां तु, ग्रहदोर्षनं लिप्यते ।। (वराह पुराण अन्तर्गत मथुरा महात्म्य अ.–269–42)

अर्थात् जो लोग मथुरा के पश्चिम में स्थित धर्मराज की ईशवापी बावड़ी में स्नान करते हैं, उनके सारे ग्रह–दोष दूर हो जाते हैं एवं भगवत् भक्ति होती है।

सतयुग कौ इक तीरथ कहौ, वापी ज्ञानभक्तिकों लहों ।
यामं जों स्नान करैजू, धोई पाप बहु पुन्य भरैजू ।। (कविवर हरिलाल ककोर की मथुरा परिक्रमा , पृष्ठ–9 विक्रमी 2800)

वायु पुराण के अनुसार धर्मराज युधिष्ठर ने इस बावड़ी का निर्माण कराया था । भगवान् श्रीकृष्ण और महाराज युधिष्ठिर का मन्त्रणा–स्थल होने के कारण भी यह स्थान महत्वपूर्ण है।
सारे विश्व में शुद्ध भक्ति एवं कृष्ण नाम संकीर्तन का प्रचार करने वाले श्रीकृष्णाभिन्न शचीनन्दन गौरहरि के श्रीधाम मथुरा ब्रज में पधारने का भी वर्णन श्रीचैतन्य चरितामृत में विशेष रूप से किया गया है। वे मथुरा के विश्राम घाट, यमुना में स्नान कर श्रीकेशवदेव के मन्दिर में पधारे थे। उस समय भावावेश में उनको नृत्य और कीर्तन देखकर उनके दर्शनों के लिए हजारों लोगों की भीड़ उपस्थित हुई। उन्होंने ज्ञान बाबड़ी में स्नान और आचमन किया था। तत्पश्चात् बाबड़ी के निकटस्थ सानौढ़िया ब्राह्मण वैष्णव के घर पर ठहरने और वही प्रसाद पाने का उल्लेख भी चैतन्य चरितामृत में आता है। पौराणिक (ग्रन्थों) पुस्तकों में इस स्थान से राजा भर्तृहरि का सम्बन्ध होना भी पाया जाता है। यहीं राजा भर्तृहरि की समाधि भी स्थित थी, जो कुटिल काल की गति से कुछ परिवर्तित रूप में विद्यमान है।