ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
गीता अध्याय-5 श्लोक-23 / Gita Chapter-5 Verse-23
प्रसंग-
उपर्युक्त प्रकार से बाह्रा विषय भोगों को क्षणिक और दु:खों का कारण समझकर तथा आसक्ति का त्याग करके जो काम-क्रोध पर विजय प्राप्त कर चुका है, अब ऐसे सांख्ययोगी की अन्तिम स्थिति का फल सहित वर्णन किया
शक्नोतीहैव य: सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् ।
कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्त: स सुखी नर: ।।23।।
|
जो साधक इस मनुष्य शरीर में, शरीर का नाश होने से पहले ही काम-क्रोध से उत्पन्न होने वाले वेग को सहन करने में समर्थ हो जाता है, वही पुरूष योगी है और वही सुखी है ।।23।।
|
He alone who is able to stand, in this very life before casting off this body, the urges of lust and anger is Yogi; and he alone is a happy man.(23)
|
य: =जो मनुष्य; शरीर विमोक्षणात् = शरीर के नाश होने से; प्राक् = पहिले; काम क्रोधोभ्दवम् = काम और क्रोध से उत्पन्न हुए; वेगम् =वेग को; सोढुम् = सहन करने में; शक्रोति = समर्थ है अर्थात् काम क्रोध को जिसने सदा के लिये जीत लिया है; स: = वह; नर: = मनुष्य; इह = इस लोक में; युक्त: = योगी है; स: = वही; सुखी = सुखी है।
|
|
|
|
<sidebar>
- सुस्वागतम्
- mainpage|मुखपृष्ठ
- ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
- विशेष:Contact|संपर्क
- समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
- SEARCH
- LANGUAGES
__NORICHEDITOR__
- गीता अध्याय-Gita Chapters
- गीता 1:1|अध्याय [1] Chapter
- गीता 2:1|अध्याय [2] Chapter
- गीता 3:1|अध्याय [3] Chapter
- गीता 4:1|अध्याय [4] Chapter
- गीता 5:1|अध्याय [5] Chapter
- गीता 6:1|अध्याय [6] Chapter
- गीता 7:1|अध्याय [7] Chapter
- गीता 8:1|अध्याय [8] Chapter
- गीता 9:1|अध्याय [9] Chapter
- गीता 10:1|अध्याय [10] Chapter
- गीता 11:1|अध्याय [11] Chapter
- गीता 12:1|अध्याय [12] Chapter
- गीता 13:1|अध्याय [13] Chapter
- गीता 14:1|अध्याय [14] Chapter
- गीता 15:1|अध्याय [15] Chapter
- गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
- गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
- गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter
</sidebar>
|