वृन्दावन
वृदांवन गोवर्धनं यमुनापुलिनानि च, वीक्ष्यासीदुत्तमाप्री==वृन्दावन / Vrindavan / Brindaban==
वृंदावन मथुरा से १२ किलोमीटर की दूरी पर उत्तर-पश्चिम में यमुना तट पर स्थित है । यह कृष्ण की लीलास्थली है । हरिवंश पुराण, श्रीमद्भागवत, विष्णुपुराण आदि में वृंदावन की महिमा का वर्णन किया गया है । कालिदास ने इसका उल्लेख रघुवंश में इंदुमती-स्वयंवर के प्रसंग में शूरसेनाधिपति सुषेण का परिचय देते हुए किया है -
'संभाव्य भर्तारममुंयुवानंमृदुप्रवालोत्तरपुष्पशय्ये,
वृंदावने चैत्ररथादनूनं निर्विशयतां संदरि यौवनश्री ' [१]
इससे कालिदास के समय में वृंदावन के मनोहारी उद्यानों की स्थिति का ज्ञान होता है । श्रीमद्भागवत के अनुसार गोकुल से कंस के अत्याचार से बचने के लिए नंदजी कुटुंबियों और सजातीयों के साथ वृंदावन निवास के लिए आये थे -
'वनं वृंदावनं नाम पशव्यं नवकाननं गोपगोपीगवां सेव्य पुण्याद्रितृणवीरूधम्।
तत्तत्राद्यैव यास्याम: शकटान्युड्क्तमाचिरम् , गोधनान्यग्रतो यान्तु भवतां यदि रोचते।
वृंदावन सम्प्रविष्य सर्वकालसुखावहम्, तत्र चकु: व्रजावासं शकटैरर्धचन्द्रवत् ।
वृदांवन गोवर्धनं यमुनापुलिनानि च, वीक्ष्यासीदुत्तमाप्रीती राममाधवयोर्नृप'[२]
विष्णुपुराणसन्दर्भ त्रुटि: <ref>
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टैग नहीं मिलावृंदावन में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन भी है -
' यथा एकदा तु विना रामं कृष्णो वृंदावन ययु: [३] आदि ।
कहते है कि वर्तमान वृंदावन असली या प्राचीन वृंदावन नहीं है । श्रीमद्भागवत <ref> श्रीमद्भागवत10,36 <ref>के वर्णन तथा अन्य उल्लेखों से जान पड़ता है कि प्राचीन वृंदावन गोवर्धन के निकट था । गोवर्धन-धारण की प्रसिद्ध कथा की स्थली वृंदावन पारासौली ( परम रासस्थली ) के निकट था । अष्टछाप कवि महाकवि सूरदास इसी ग्राम में दीर्घकाल तक रहे थे । सूरदास जी ने वृन्दावन रज की महिमा के वशीभूत होकर गाया है-
हम ना भई वृन्दावन रेणु,
तिन चरनन डोलत नंद नन्दन नित प्रति चरावत धेनु।
हम ते धन्य परम ये द्रुम वन बाल बच्छ अरु धेनु।
सूर सकल खेलत हँस बोलत संग मध्य पीवत धेनु॥
वृन्दावन मथुरा क्षेत्र में एक स्थान है जो भगवान कृष्ण की लीला से जुडा हुआ है । ब्रज के केन्द्र में स्थित वृन्दावन में सैंकड़ो मन्दिर है । जिनमें से अनेक ऐतिहासिक धरोहर भी है । यहाँ सैंकड़ो आश्रम और कई गौशालाऐं है । गोढ़ीय वैष्णव, वैष्णव और हिन्दूओं के धार्मिक क्रिया-कलापों के लिए वृन्दावन विश्वभर में प्रसिध्द है । देश से पर्यटक और तीर्थ यात्री यहाँ आते है । सूरदास, स्वामी हरिदास, चैतन्य महाप्रभु के नाम वृन्दावन से हमेशा के लिए जुड़े हुए है ।