"गीता 18:74" के अवतरणों में अंतर

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हिइस प्रकार धृतराष्द्र के प्रश्नानुसार भगवान् [[श्रीकृष्ण]] और [[अर्जुन]] के संवादरूप गीताशास्त्र का वर्णन करके अब उसका उपसंहार करते हुए सज्जय दो श्लोकों में [[धृतराष्ट्र]] के सामने गीता का महत्व प्रकट करते हैं-
  
 
'''सञ्जय उवाच'''
 
'''सञ्जय उवाच'''

०८:१४, १४ अक्टूबर २००९ का अवतरण


गीता अध्याय-18 श्लोक-74 / Gita Chapter-18 Verse-74

प्रसंग-


हिइस प्रकार धृतराष्द्र के प्रश्नानुसार भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवादरूप गीताशास्त्र का वर्णन करके अब उसका उपसंहार करते हुए सज्जय दो श्लोकों में धृतराष्ट्र के सामने गीता का महत्व प्रकट करते हैं-

सञ्जय उवाच


इत्यहं वासुदेवस्य पार्थस्य च महात्मन: ।
संवादमिममश्रौषमद्भुतं रोमहर्षणम् ।।74।।



सञ्जय बोले-


इस प्रकार मैंने श्रीवासुदेव के और महात्मा अर्जुन के इस अद्भुत रहस्ययुक्त, रोमाञ्चकारक संवाद को सुना ।।74।।

Sanjaya said-


Thus I heard the mysterious and thrilling conversation between Sri Krsna and the high-souled arjuna, son of kunti. (74)


इति = इस प्रकार; अहम् = मैंने; वासुदेवस्य = श्रीवासुदेव के; च = और; महात्मन: = महात्मा; पार्थस्य = अर्जुन के; इमम् = इस; अद्भुतम् = अद्भुत रहस्ययुक्त; रोमहर्षणम् = रोमाच्चकारक; संवादम् = संवाद को; अश्रौषम् = सुना


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अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

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