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जो कर्म शास्त्रविधि से नियत किया हुआ और कर्तापन के अभियान से रहित हो तथा फल न चाहने वाले पुरूष द्वारा बिना राग-द्वेष के किया गया हो- वह सात्त्विक कहा जाता है ।।23।।  
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जो कर्म शास्त्रविधि से नियत किया हुआ और कर्तापन के अभियान से रहित हो तथा फल न चाहने वाले पुरुष द्वारा बिना राग-द्वेष के किया गया हो, वह सात्त्विक कहा जाता है ।।23।।  
  
 
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That action which is ordained by the scriptures and is not accompanied by the sense of doership, and has been done without any partiality or prejudice by one who seeks no return, is called Sattvika. (23)
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That action which is ordained by the scriptures and is not accompanied by the sense of doership, and has been done without any partiality or prejudice by one who seeks no return, is called as action in the mode of goodness (Sattvika).(23)
 
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यत् = जो ; कर्म = कर्म ; नियतम् = शास्त्रविधि से नियत किया हुआ ; सग्डरहितम् = कर्तापन के अभिमानसे रहित ; अफलप्रेप्सुना = फलको न चाहने वाले पुरूष द्वारा ; अरागद्वेषत: = बिना रागद्वेष से ; कृतम् = किया हुआ है ; तत् = वह (कर्म तो) ; सात्त्वकिम् = सात्त्वकि ; उच्यते = कहा जाता है ;
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यत् = जो ; कर्म = कर्म ; नियतम् = शास्त्रविधि से नियत किया हुआ ; सग्डरहितम् = कर्तापन के अभिमानसे रहित ; अफलप्रेप्सुना = फलको न चाहने वाले पुरुष द्वारा ; अरागद्वेषत: = बिना रागद्वेष से ; कृतम् = किया हुआ है ; तत् = वह (कर्म तो) ; सात्त्वकिम् = सात्त्वकि ; उच्यते = कहा जाता है ;
 
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१२:२८, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण

गीता अध्याय-18 श्लोक-23 / Gita Chapter-18 Verse-23

प्रसंग-


अब सात्त्विक कर्म के लक्षण बतलाते हैं-


नियतं सग्ङरहितमरागद्वेषत: कृतम् ।
अफलप्रेप्सुना कर्म यतत्सात्त्विकमुच्यते ।।23।।



जो कर्म शास्त्रविधि से नियत किया हुआ और कर्तापन के अभियान से रहित हो तथा फल न चाहने वाले पुरुष द्वारा बिना राग-द्वेष के किया गया हो, वह सात्त्विक कहा जाता है ।।23।।

That action which is ordained by the scriptures and is not accompanied by the sense of doership, and has been done without any partiality or prejudice by one who seeks no return, is called as action in the mode of goodness (Sattvika).(23)


यत् = जो ; कर्म = कर्म ; नियतम् = शास्त्रविधि से नियत किया हुआ ; सग्डरहितम् = कर्तापन के अभिमानसे रहित ; अफलप्रेप्सुना = फलको न चाहने वाले पुरुष द्वारा ; अरागद्वेषत: = बिना रागद्वेष से ; कृतम् = किया हुआ है ; तत् = वह (कर्म तो) ; सात्त्वकिम् = सात्त्वकि ; उच्यते = कहा जाता है ;



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

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