"गीता 18:29" के अवतरणों में अंतर

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==गीता अध्याय-18  श्लोक-28 / Gita Chapter-18 Verse-28==  
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==गीता अध्याय-18  श्लोक-29 / Gita Chapter-18 Verse-29==  
 
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'''प्रसंग-'''
 
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अब तामस कर्ता के लक्षण बतलाते हैं-
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इस प्रकार तत्वज्ञान में सहायक सात्त्विक भावकों ग्रहण कराने के लिये और उसके विरोधी राजस-तामस भावों का त्याग कराने के लिये कर्म-प्रेरणा और कर्मसंग्रह में से ज्ञान, कर्म और कर्ता के सात्त्विक आदि तीन-तीन भेद क्रम से बतलाकर अब बुद्धि और धृति सात्त्विक, राजस, और तामस- इस प्रकार त्रिविध भेद क्रमश: बतलाने की प्रस्तावना करते हैं-
 
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'''अयुक्त: प्राकृत: स्तब्ध: शठो नैष्कृतकोऽलस: ।'''<br />
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'''बुद्धेर्भेदं धृतेश्चैव गुणतस्त्रिविधं शृणु ।'''
'''विषादी दीर्घसूत्री च कर्ता तामस उच्यते ।।28।।'''
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'''प्रोच्यमानमशेषेणपृथक्त्वेन धनंजय ।।29।।'''
 
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जो कर्ता अयुक्त, शिक्षा से रहित, घमंडी, धूर्त और दूसरों की जीविका का नाश करने वाला तथा शोक करने वाला, आलसी और दीर्घसूत्री है- वह तामस कहा जाता है ।।28।।
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हे धनंजय ! अब तू बुद्धि का और धृति का भी गुणों के अनुसार तीन प्रकार का भेद मेरे द्वारा सम्पूर्णता से विभागपूर्वक कहा जाने वाला सुन ।।29।। 
  
 
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Lacking piety and self-control, uncultured, arrogant, deceitful, inclined to rob others of their livelihood, slothful, down-hearted and procrastinating, such a doer is called Tamasika. (28)  
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Now hear, arjuna, the threefold division, based on the predominance of each Guna, of Buddhi and Dhrti also, which is being told by Me in full one by one. (29)  
  
 
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अयुक्त: = विक्षेपयुक्त चित्तवाला ; प्राकृत: = शिक्षा से रहित ; शठ: = धूर्त (और) ; नैष्कृतकि: = दूसरे की जाजीविकाका नाशक (एव) ; विषादी = शोक करने के स्वभाववाला ; अलस: = आलसी ; = और ; दीर्घसूत्री = दीर्घसूत्री है (वह) ; कर्ता =कर्ता ; तामस: = तामस ; उच्यते = कहा जाता है ;
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धनंजय = हे अर्जुन (तूं) ; बुद्धे: = बुद्धिका ; = और ; धृते: = धारणशक्ति का ; एव = भी ; गुणत: = गुणों के कारण ; त्रिविघम् = तीन प्रकार का ; भेदम् = भेद ; अशेषेण = संपूर्णता से ; पृथक्त्वेन = विभागपूर्वक ; मया = मेरे से ; प्रोच्यमानम् = कहा हुआ ; श्रृणु = सुन ;
 
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०७:२०, १४ अक्टूबर २००९ का अवतरण


गीता अध्याय-18 श्लोक-29 / Gita Chapter-18 Verse-29

प्रसंग-


इस प्रकार तत्वज्ञान में सहायक सात्त्विक भावकों ग्रहण कराने के लिये और उसके विरोधी राजस-तामस भावों का त्याग कराने के लिये कर्म-प्रेरणा और कर्मसंग्रह में से ज्ञान, कर्म और कर्ता के सात्त्विक आदि तीन-तीन भेद क्रम से बतलाकर अब बुद्धि और धृति सात्त्विक, राजस, और तामस- इस प्रकार त्रिविध भेद क्रमश: बतलाने की प्रस्तावना करते हैं-


बुद्धेर्भेदं धृतेश्चैव गुणतस्त्रिविधं शृणु । प्रोच्यमानमशेषेणपृथक्त्वेन धनंजय ।।29।।



हे धनंजय ! अब तू बुद्धि का और धृति का भी गुणों के अनुसार तीन प्रकार का भेद मेरे द्वारा सम्पूर्णता से विभागपूर्वक कहा जाने वाला सुन ।।29।।

Now hear, arjuna, the threefold division, based on the predominance of each Guna, of Buddhi and Dhrti also, which is being told by Me in full one by one. (29)


धनंजय = हे अर्जुन (तूं) ; बुद्धे: = बुद्धिका ; च = और ; धृते: = धारणशक्ति का ; एव = भी ; गुणत: = गुणों के कारण ; त्रिविघम् = तीन प्रकार का ; भेदम् = भेद ; अशेषेण = संपूर्णता से ; पृथक्त्वेन = विभागपूर्वक ; मया = मेरे से ; प्रोच्यमानम् = कहा हुआ ; श्रृणु = सुन ;


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अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

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