"गीता 18:48" के अवतरणों में अंतर

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०५:११, २९ नवम्बर २००९ का अवतरण


गीता अध्याय-18 श्लोक-48 / Gita Chapter-18 Verse-48

सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमति न त्यजेत् ।
सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृता: ।।48।।



अतएव हे कुन्ती पुत्र ! दोष युक्त होने पर भी सहज कर्म को नहीं त्यागना चाहिये, क्योंकि धूएँ से अग्नि की भाँति सभी कर्म किसी न किसी दोष से आवृत हैं ।।48।।

Therefore,Arjuna, one snould not abandon one's innate duty, even though-it may be tainted with blemish; for even as fire is enveloped in smoke, all undertakings are clouded with demerit (48)


कौन्तेय = हे कुन्तीपुत्री ; सदोषम् = दोषयुक्त ; अपि = भी ; त्यजेत् = त्यागना चाहिये ; हि = क्योंकि ; धूमेन = धूएंसे ; अग्नि: = अग्नि के ; एव = सद्य्श ; सहजम् = स्वाभाविक ; कर्म = कर्म को ; न = नहीं ; सर्वारम्भा: = सब ही कर्म (किसी न किसी) ; दोषेण = दोष से ; आवृता: = आवृत हैं ;



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

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