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१२:३१, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-18 श्लोक-64 / Gita Chapter-18 Verse-64
प्रसंग-
सबके हृदय की बात जानने वाले अन्तर्यामी भगवान् स्वयं ही <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> पर दया करके उसे समस्त गीता के उपदेश का सार बतलाने का विचार करके कहने लगे-
सर्वगुह्रातमं भूय: श्रृणु मे परमं वच: ।
इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम् ।।64।।
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सम्पूर्ण गोपनीयों से अति गोपनीय मेरे परम रहस्य युक्त वचन को तू फिर भी सुन तू मेरा अतिशय प्रिय है, इससे यह परम हितकारक वचन मैं तुझसे कहूँगा ।।64।।
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Hear, again, My supremely secret word, the most esoteric of all truths. You are extremely dear to Me; therefore, I shall offer you this salutary advice. (64)
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सर्वगुह्मतमम् = संपूर्ण गोपनीयों से भी अति गोपनीय ; मे = मेरे ; परमम् = परम ; वच: = बचनको (तूं) ; भूय: = फिर (भी) ; श्रृणु = सुन (क्योंकि तूं) ; मे = मेरा ; द्य्ढम् = अतिशय ; इष्ट: = प्रिय ; असि = है ; तत: = इससे ; इति = यह ; हितम् = परमहितकारक वचन (मैं) ; ते = तेरे लिये ; वक्ष्यामि = कहूंगा
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