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*[[कन्नौज]] और स्थान्वीश्वर के प्रसिद्ध हिन्दू सम्राट [[हर्षवर्धन]] के समसायिक सभापण्डित होने के कारण इनका समय निर्विवाद है। 21वीं शती के आलंकारिक रुय्यक से लेकर आठवीं शती के वामन ने अपने-अपने ग्रन्थों में बाण तथा उनकी रचनाओं का उल्लेख किया है अत: अन्त: बाह्य साक्ष्यों के आधार पर बाणभट्ट का समय सप्त शती पूर्वार्ध तथा थोड़ा सा उत्तरार्ध सिद्ध होता है। *हर्षचरित-वर्णन के आधार पर बाण हर्षवर्धन (606-648 ई॰) के राज्य के उत्तरकाल में उनके सभाकवि सिद्ध होते हैं, क्योंकि उन्होंने हर्ष के प्रारंभिक दिग्विजय का उल्लेख नहीं किया है।  
 
*[[कन्नौज]] और स्थान्वीश्वर के प्रसिद्ध हिन्दू सम्राट [[हर्षवर्धन]] के समसायिक सभापण्डित होने के कारण इनका समय निर्विवाद है। 21वीं शती के आलंकारिक रुय्यक से लेकर आठवीं शती के वामन ने अपने-अपने ग्रन्थों में बाण तथा उनकी रचनाओं का उल्लेख किया है अत: अन्त: बाह्य साक्ष्यों के आधार पर बाणभट्ट का समय सप्त शती पूर्वार्ध तथा थोड़ा सा उत्तरार्ध सिद्ध होता है। *हर्षचरित-वर्णन के आधार पर बाण हर्षवर्धन (606-648 ई॰) के राज्य के उत्तरकाल में उनके सभाकवि सिद्ध होते हैं, क्योंकि उन्होंने हर्ष के प्रारंभिक दिग्विजय का उल्लेख नहीं किया है।  
 
*यद्यपि बाणभट्ट की लेखनी से अनेक ग्रन्थ रत्नों का लेखन हुआ है किन्तु बाण का महाकवित्व केवल '[[हर्षचरित]]' और '[[कादम्बरी]]' पर प्रधानतया आश्रित है। इन दोनों गद्य काव्यों के अतिरिक्त मुकुटताडितक, चण्डीशतक और [[पार्वती]]-परिणय भी बाण की रचनाओं में परिगणित हैं। इनमें 'पार्वतीपरिणय' को ए.बी. कीथ ने बाण की रचना न मानकर उसे वामनभट्टबाण (17 वीं शती) नामक किसी दाक्षिणात्य वत्सगोत्रीय ब्राह्मण की रचना माना है।
 
*यद्यपि बाणभट्ट की लेखनी से अनेक ग्रन्थ रत्नों का लेखन हुआ है किन्तु बाण का महाकवित्व केवल '[[हर्षचरित]]' और '[[कादम्बरी]]' पर प्रधानतया आश्रित है। इन दोनों गद्य काव्यों के अतिरिक्त मुकुटताडितक, चण्डीशतक और [[पार्वती]]-परिणय भी बाण की रचनाओं में परिगणित हैं। इनमें 'पार्वतीपरिणय' को ए.बी. कीथ ने बाण की रचना न मानकर उसे वामनभट्टबाण (17 वीं शती) नामक किसी दाक्षिणात्य वत्सगोत्रीय ब्राह्मण की रचना माना है।
==हर्षचरित==  
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==सम्बंधित लिंक==
*'हर्षचरित' बाणभट्ट का ऐतिहासिक महाकाव्य है। बाण ने इसे आख्यायिका कहा है।<balloon title="'करोम्याख्यायिम्भोधौ जिह्वाप्लवनचापलम्''" style=color:blue>*</balloon>। आठ उच्छवासों में विभक्त इस आख्यायिका में बाणभट्ट ने स्थाण्वीश्वर के महाराज हर्षवर्धन के जीवन-चरित का वर्णन किया है। आरंभिक तीन उच्छवासों में बाण ने अपने वंश तथा अपने जीवनवृत्त सविस्तार वर्णित किया है। हर्षचरित की वास्तविक कथा चतुर्थ उच्छवास से आरम्भ होती है। इसमें हर्षवर्धन के वंश प्रवर्तक पुष्पभूति से लेकर सम्राट हर्षवर्धन के ऊर्जस्व चरित्र का उदात्त वर्णन किया गया है।
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{{कवि}}
*'हर्षचरित' में ऐतिहासिक विषय पर गद्यकाव्य लिखने का प्रथम प्रयास है। इस ऐतिहासिक काव्य की भाषा पूर्णत: कवित्वमय है। 'हर्षचरित' शुष्क घटना प्रधान इतिहास नहीं, प्रत्युत विशुद्ध काव्यशैली में उपन्यस्त वर्णनप्रधान काव्य है। बाण ने ओज गुण और अलंकारों का सन्निवेश कर एक प्रौढ़ गद्यकाव्य का स्वरूप प्रदान किया है। इसमें वीररस ही प्रधान है। करुणरस का भी यथास्थान सन्निवेश किया गया है। 'हर्षचरित' तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियों, सांस्कृतिक परिवेशों और धार्मिक मान्यताओं पर प्रकाश डालता है। अत: ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह महनीय ग्रन्थरत्न काव्य सौन्दर्य, अद्भुत वर्णन चातुर्य के लिए अत्यन्त प्रसिद्ध कृति है।
 
==कादम्बरी==
 
'कादम्बरी' बाणभट्ट की अमर कृति है। यह उनकी ही नहीं समस्त संस्कृत वाङमय की अनूठी गद्य-रचना है। कादम्बरी की कथा एक जन्म से सम्बद्ध न होकर चन्द्रपीड तथा पुण्डीक के तीन जन्मों से सम्बद्ध है। कादम्बरी की कथा दो भागों में विभक्त है- पूर्वभाग तथा उत्तरभाग।
 
#पूर्वभाग बाणभट्ट की रचना है और
 
#उत्तरभाग उनके पुत्र भूषणभट्ट (पुलिन्द भट्ट) की।
 
*कादम्बरी 'कथा' है। बाण ने स्वयं प्रस्तावना के अन्त में-'धिया निवद्धेयमतिद्वयी कथा' कहकर इसे 'कथा' के रूप में स्पष्ट स्वीकार किया है। तीन जन्मों से सम्बद्ध कादम्बरी की कहानी रोचक शैली में लिखी गई है।
 
*बाण को कादम्बरी-कथा लिखने की प्रेरणा गुणाढ्य की 'बृहत्कथा' से प्राप्त हुई है। पैशाची भाषा में निबद्ध 'बृहत्कथा' का संस्कृत रूपान्तर 'कथा सरित्सागर' में आई हुई राजा सुमना की कथा और कादम्बरी की कथा में बहुत कुछ समानता मिलती है। अत: बाण ने कादम्बरी की मूल घटनाओं को बृहत्कथा से लिया हो और अपनी विलक्षण काव्य प्रतिभा से बृहत्कथा के निष्प्राण घटनाचक्रों और पात्रों में सजीवता लाकर उन्हें नवीन कलेवर दिया हो। कादम्बरी में बाण की सबसे अनूठी कल्पना जो प्रेम के अलौकिक स्वरूप और रहस्य का प्रतीक है- वह है नायिका द्वारा नायक की शरीर रक्षा करते हुए पुनर्मिलन की प्रतीक्षा करना। कादम्बरी कालिदास के आशाबन्ध और जननान्तर सौहृद के आदर्श की सजीव अवतारणा है।
 
*कविक्रान्त द्रष्टा होता है। उसका काव्य मानव जीवन के परम लक्ष्य की ओर संकेत करता है। काव्य आत्मा रस है। रस स्वरूप आनन्द है। आनन्द की अनुभूति ही काव्य का परम प्रयोजन है। *बाणभट्ट 'कादम्बरी' के नायक और नायिका के प्रारंभिक लौकिक प्रेम को शापवश जन्मान्तर में समाप्त कर पुन: अलौकिक विशुद्ध प्रेमप्राप्ति द्वारा मानव के लिए आदर्श प्रेम का दिव्य संदेश देते हैं।
 
 
 
 
 
 
[[en:Banbhatta]]
 
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०६:१०, ८ जुलाई २०१० के समय का अवतरण

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बाणभट्ट / Banbhatta

  • संस्कृत साहित्य में बाणभट्ट ही एक ऐसे महाकवि हैं जिनके जीवन चरित के विषय में पर्याप्त जानकारी मिलती है।
  • कन्नौज और स्थान्वीश्वर के प्रसिद्ध हिन्दू सम्राट हर्षवर्धन के समसायिक सभापण्डित होने के कारण इनका समय निर्विवाद है। 21वीं शती के आलंकारिक रुय्यक से लेकर आठवीं शती के वामन ने अपने-अपने ग्रन्थों में बाण तथा उनकी रचनाओं का उल्लेख किया है अत: अन्त: बाह्य साक्ष्यों के आधार पर बाणभट्ट का समय सप्त शती पूर्वार्ध तथा थोड़ा सा उत्तरार्ध सिद्ध होता है। *हर्षचरित-वर्णन के आधार पर बाण हर्षवर्धन (606-648 ई॰) के राज्य के उत्तरकाल में उनके सभाकवि सिद्ध होते हैं, क्योंकि उन्होंने हर्ष के प्रारंभिक दिग्विजय का उल्लेख नहीं किया है।
  • यद्यपि बाणभट्ट की लेखनी से अनेक ग्रन्थ रत्नों का लेखन हुआ है किन्तु बाण का महाकवित्व केवल 'हर्षचरित' और 'कादम्बरी' पर प्रधानतया आश्रित है। इन दोनों गद्य काव्यों के अतिरिक्त मुकुटताडितक, चण्डीशतक और पार्वती-परिणय भी बाण की रचनाओं में परिगणित हैं। इनमें 'पार्वतीपरिणय' को ए.बी. कीथ ने बाण की रचना न मानकर उसे वामनभट्टबाण (17 वीं शती) नामक किसी दाक्षिणात्य वत्सगोत्रीय ब्राह्मण की रचना माना है।

सम्बंधित लिंक

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