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*[[प्रभाचन्द्र]]<balloon title="ई॰ 1053" style=color:blue>*</balloon> ने न्याय शास्त्र इन्हीं माणिक्यनन्दि से पढ़ा था तथा उनके 'परीक्षामुख' पर विशालकाय 'प्रमेयकमलमार्त्तण्ड' नाम की व्याख्या लिखी थी, जिसके अन्त में उन्होंने भी माणिक्यनन्दि को अपना गुरु बताया है।  
 
*[[प्रभाचन्द्र]]<balloon title="ई॰ 1053" style=color:blue>*</balloon> ने न्याय शास्त्र इन्हीं माणिक्यनन्दि से पढ़ा था तथा उनके 'परीक्षामुख' पर विशालकाय 'प्रमेयकमलमार्त्तण्ड' नाम की व्याख्या लिखी थी, जिसके अन्त में उन्होंने भी माणिक्यनन्दि को अपना गुरु बताया है।  
 
*माणिक्यनन्दि का 'परीक्षामुख' सूत्रबद्ध ग्रन्थ न्यायविद्या का प्रवेश द्वार है।  
 
*माणिक्यनन्दि का 'परीक्षामुख' सूत्रबद्ध ग्रन्थ न्यायविद्या का प्रवेश द्वार है।  
*खास कर [[अकलंकदेव]] के जटिल न्याय-ग्रन्थों में प्रवेश करने के लिए यह निश्चय ही द्वार है।  
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*ख़ास कर [[अकलंकदेव]] के जटिल न्याय-ग्रन्थों में प्रवेश करने के लिए यह निश्चय ही द्वार है।  
 
*तात्पर्य यह कि अकलंकदेव ने जो अपने कारिकात्मक न्यायविनिश्चयादि न्याय ग्रन्थों में दुरूह रूप में जैन न्याय को निबद्ध किया है, उसे गद्य-सूत्रबद्ध करने का श्रेय इन्हीं आचार्य माणिक्यनन्दि को है।  
 
*तात्पर्य यह कि अकलंकदेव ने जो अपने कारिकात्मक न्यायविनिश्चयादि न्याय ग्रन्थों में दुरूह रूप में जैन न्याय को निबद्ध किया है, उसे गद्य-सूत्रबद्ध करने का श्रेय इन्हीं आचार्य माणिक्यनन्दि को है।  
 
*इन्होंने जैन न्याय को इसमें बड़ी सरल एवं विषद भाषा में उसी प्रकार ग्रंथित किया है जिस प्रकार मालाकार माला में यथायोग्य स्थान पर प्रवाल, रत्न आदि को गूंथता है।  
 
*इन्होंने जैन न्याय को इसमें बड़ी सरल एवं विषद भाषा में उसी प्रकार ग्रंथित किया है जिस प्रकार मालाकार माला में यथायोग्य स्थान पर प्रवाल, रत्न आदि को गूंथता है।  

०३:०५, ७ अप्रैल २०१० का अवतरण

आचार्य माणिक्यनन्दि / Acharya Manikyanandi

  • ये नन्दिसंघ के प्रमुख आचार्य थे।
  • इनके गुरु रामनन्दि दादागुरु वृषभनन्दि और परदादागुरु पद्मनन्दि थे। इनके कई शिष्य हुए।
  • आद्य विद्या-शिष्य नयनन्दि थे, जिन्होंने 'सुदंसणचरिउ' एवं 'सयलविहिविहान' इन अपभ्रंश रचनाओं से अपने को उनका आद्य विद्या-शिष्य तथा उन्हें 'पंडितचूड़ामणि' एवं 'महापंडित' कहा है।
  • नयनन्दि<balloon title="वि0 सं0 1100, ई॰ 1043" style=color:blue>*</balloon> ने अपनी गुरु-शिष्य परम्परा उक्त दोनों ग्रन्थों की प्रशस्तियों में दी है।
  • इनके तथा अन्य प्रमाणों के अनुसार माणिक्यनन्दि का समय ई॰ 1028 अर्थात 11वीं शताब्दी सिद्ध है।
  • प्रभाचन्द्र<balloon title="ई॰ 1053" style=color:blue>*</balloon> ने न्याय शास्त्र इन्हीं माणिक्यनन्दि से पढ़ा था तथा उनके 'परीक्षामुख' पर विशालकाय 'प्रमेयकमलमार्त्तण्ड' नाम की व्याख्या लिखी थी, जिसके अन्त में उन्होंने भी माणिक्यनन्दि को अपना गुरु बताया है।
  • माणिक्यनन्दि का 'परीक्षामुख' सूत्रबद्ध ग्रन्थ न्यायविद्या का प्रवेश द्वार है।
  • ख़ास कर अकलंकदेव के जटिल न्याय-ग्रन्थों में प्रवेश करने के लिए यह निश्चय ही द्वार है।
  • तात्पर्य यह कि अकलंकदेव ने जो अपने कारिकात्मक न्यायविनिश्चयादि न्याय ग्रन्थों में दुरूह रूप में जैन न्याय को निबद्ध किया है, उसे गद्य-सूत्रबद्ध करने का श्रेय इन्हीं आचार्य माणिक्यनन्दि को है।
  • इन्होंने जैन न्याय को इसमें बड़ी सरल एवं विषद भाषा में उसी प्रकार ग्रंथित किया है जिस प्रकार मालाकार माला में यथायोग्य स्थान पर प्रवाल, रत्न आदि को गूंथता है।
  • इस पर प्रभाचन्द्र ने 'प्रमेयकमलमार्त्तण्ड', लघुअनन्तवीर्य ने 'प्रमेयरत्नमाला', अजितसेन ने 'न्यायमणिदीपिका', चारुकीर्ति नाम के एक या दो विद्वानों ने 'अर्थप्रकाशिका' और 'प्रमेयरत्नालंकार' नाम की टीकाएँ लिखी हैं।
  • इससे इस 'परीक्षामुख' का महत्त्व प्रकट है।