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०८:०५, २६ सितम्बर २००९ का अवतरण
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अध्याय एक श्लोक संख्या Verses- Chapter-1 |
1 | 2 | 3 | 4, 5, 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17, 18 | 19 | 20, 21 | 22 | 23 | 24, 25 | 26 | 27 | 28, 29 | 30 | 31 | 32 | 33, 34 | 35 | 36 | 37 | 38, 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 |
प्रसंग- धृतराष्द्र के पूछने पर संजय कहते हैं- धर्मक्षेत्रे कुरूक्षेत्रे समवेता युयुत्सव: । मामका: पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ।।1:1।। |
धृतराष्द्र बोले- हे संजय ! धर्मभूमि कुरूक्षेत्र में एकत्रित, युद्ध की इच्छा वाले मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया ? ।।1:1।। |
Dhratrastra said: Sanjaya, gathered on the sacred soil of kuruksetra, eager to fight, what did my children and the children of pandu do? |
समवेता: = इकट्ठे हुए; युयुत्सव: = युद्ध की इच्छा रखने वाले; मामका: = मेरे; च = और; पाण्डवा: = पाण्डु के पुत्रों ने; किम् = क्या; अकुर्वत = किया |