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वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्। | वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्। | ||
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स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्। | स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्। | ||
− | शख, चक्र, गदा, पदम, धरां | + | शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥ |
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्। | पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्। | ||
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥ | मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥ | ||
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− | नलिस्थितां नलनार्क्षी | + | नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥ |
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा। | परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा। | ||
परमशक्ति, परमभक्ति, सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥ | परमशक्ति, परमभक्ति, सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥ | ||
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भव सागर तारिणी सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥ | भव सागर तारिणी सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥ | ||
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी। | धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी। | ||
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*भगवती सिध्दिदात्री का ध्यान, स्तोत्र व कवच का पाठ करने से 'निर्वाण चक्र' जाग्रत हो जाता है। | *भगवती सिध्दिदात्री का ध्यान, स्तोत्र व कवच का पाठ करने से 'निर्वाण चक्र' जाग्रत हो जाता है। | ||
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१४:२४, १० अक्टूबर २०१३ के समय का अवतरण
दुर्गा की नवम शक्ति का नाम सिद्धी है। ये सिद्धीदात्री हैं। सभी प्रकार की सिध्दियों को देने वाली। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिया, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिध्दियां होती हैं। देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इन्हीं की कृपा से सिध्दियों को प्राप्त किया था। इन्हीं की अनुकम्पा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वह संसार में अर्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। माता सिद्धीदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी नीचे वाली भुजा में चक्र,ऊपर वाली भुजा में गदा और बांयी तरफ नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमलपुष्प है। नवरात्रि पूजन के नवें दिन इनकी पूजा की जाती है।
ध्यान
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
स्तोत्र पाठ
कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भव सागर तारिणी सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
कवच
ओंकारपातु शीर्षो मां ऐं बीजं मां ह्रदयो।
हीं बीजं सदापातु नभो, गुहो च पादयो॥
ललाट कर्णो श्रीं बीजपातु क्लीं बीजं मां नेत्र घ्राणो।
कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै मां सर्व वदनो॥
- भगवती सिध्दिदात्री का ध्यान, स्तोत्र व कवच का पाठ करने से 'निर्वाण चक्र' जाग्रत हो जाता है।
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