"गीता 1:31" के अवतरणों में अंतर
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− | ==गीता अध्याय- | + | ==गीता अध्याय-1 श्लोक-31 / Gita Chapter-1 Verse-31== |
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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− | + | अर्जुन ने यह कहा कि स्वजनों को मारने से किसी प्रकार का भी हित होने की सम्भावना नहीं है, अब फिर वे उसी की पुष्टि करते हैं- | |
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<div align="center"> | <div align="center"> | ||
− | ''' | + | '''निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव ।''' |
+ | '''न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे ।।31।।''' | ||
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− | + | हे केशव ! मैं लक्षणों को भी विपरीत ही देख रहा हूँ तथा युद्ध में स्वजन-समुदाय को मानकर कल्याण भी नहीं देखता ।।31।। | |
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| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
− | + | And , kesava, I see such omens of evil, nor do I see any good in killing my kinsmen in battle.(31) | |
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− | + | निमित्तानि = लक्षणों को; च = भी; विपरीतानि = विपरीत; पश्यामि =देखता हूं; आहवे; युद्व में; स्वजनम् = अपने कुल को; हत्वा = मारकर; श्रेय: = कल्याण; च = भी; अनुपश्यामि = देखता; | |
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− | <div align="center" style="font-size:120%;">'''<= पीछे Prev | | + | <div align="center" style="font-size:120%;">'''[[गीता 1:30<= पीछे Prev]] | [[गीता 1:32आगे Next =>]]'''</div> |
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०७:४६, ८ अक्टूबर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-1 श्लोक-31 / Gita Chapter-1 Verse-31
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अध्याय एक श्लोक संख्या Verses- Chapter-1 |
1 | 2 | 3 | 4, 5, 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17, 18 | 19 | 20, 21 | 22 | 23 | 24, 25 | 26 | 27 | 28, 29 | 30 | 31 | 32 | 33, 34 | 35 | 36 | 37 | 38, 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 |
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