"गीता 7:1" के अवतरणों में अंतर
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− | अब भगवान् अपने गुण, प्रभाव के सहित समग्र स्वरूप का तथा विविध प्रकारों से युक्त भक्तियोग का वर्णन करने के लिये सातवें अध्याय का आरम्भ करते हैं और सबसे पहले दो श्लोकों में अर्जुन को उसे सावधानी के साथ सुनने के लिये प्रेरणा करके ज्ञान-विज्ञान के कहने की प्रतिज्ञा करते हैं- | + | अब भगवान् अपने गुण, प्रभाव के सहित समग्र स्वरूप का तथा विविध प्रकारों से युक्त भक्तियोग का वर्णन करने के लिये सातवें अध्याय का आरम्भ करते हैं और सबसे पहले दो श्लोकों में [[अर्जुन]] को उसे सावधानी के साथ सुनने के लिये प्रेरणा करके ज्ञान-विज्ञान के कहने की प्रतिज्ञा करते हैं- |
'परमात्मा के निर्गुण निराकार तत्व के प्रभाव, माहात्म्य आदि के रहस्यसहित पूर्णरूप से जान लेने का नाम 'ज्ञान' और सगुण निराकार एवं साकार तत्व के लीला, रहस्य महत्व, गुण और प्रभाव आदि के पूर्ण ज्ञान का नाम 'विज्ञान' है । इस ज्ञान और विज्ञान के सहित भगवान् के स्वरूप को जानना ही समग्र भगवान् को जानना हैं । इस अध्याय में इसी समग्र भगवान् के स्वरूप का, उसके जानने वाले अधिकारियों का और साधनों का वर्णन है- इसीलिये इस अध्याय का नाम 'ज्ञान विज्ञान' रखा गया है । | 'परमात्मा के निर्गुण निराकार तत्व के प्रभाव, माहात्म्य आदि के रहस्यसहित पूर्णरूप से जान लेने का नाम 'ज्ञान' और सगुण निराकार एवं साकार तत्व के लीला, रहस्य महत्व, गुण और प्रभाव आदि के पूर्ण ज्ञान का नाम 'विज्ञान' है । इस ज्ञान और विज्ञान के सहित भगवान् के स्वरूप को जानना ही समग्र भगवान् को जानना हैं । इस अध्याय में इसी समग्र भगवान् के स्वरूप का, उसके जानने वाले अधिकारियों का और साधनों का वर्णन है- इसीलिये इस अध्याय का नाम 'ज्ञान विज्ञान' रखा गया है । | ||
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− | हे पार्थ ! अनन्य प्रेम से मुझ में आसक्त चित्त तथा अनन्य भाव से मेरे परायण होकर योग में लगा हुआ तू जिस प्रकार से सम्पूर्ण विभूति, बल, ऐश्वर्यादि गुणों से युक्त, सबके आत्मरूप मुझको संशयरहित जानेगा, उसको सुन ।।1।। | + | हे [[अर्जुन|पार्थ]] ! अनन्य प्रेम से मुझ में आसक्त चित्त तथा अनन्य भाव से मेरे परायण होकर योग में लगा हुआ तू जिस प्रकार से सम्पूर्ण विभूति, बल, ऐश्वर्यादि गुणों से युक्त, सबके आत्मरूप मुझको संशयरहित जानेगा, उसको सुन ।।1।। |
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११:२७, १७ नवम्बर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-7 श्लोक-1 / Gita Chapter-7 Verse-1
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