"गीता 14:13" के अवतरणों में अंतर

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हे [[अर्जुन]] ! तमोगुण के बढ़ने पर अन्त:करण और इन्द्रियों में अप्रकाश, कर्मव्य-कर्मों में अप्रवृत्ति और प्रमाद अर्थात् व्यर्थ चेष्टा और निद्रादि अन्त:करण की मोहिनी वृत्तियाँ- ये सब ही उत्पन्न होते हैं ।।13।।
  
 
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०७:५५, २४ नवम्बर २००९ का अवतरण


गीता अध्याय-14 श्लोक-13 / Gita Chapter-14 Verse-13

प्रसंग-


इस प्रकार बढ़े हुए रजोगुण के लक्षणों का वर्णन करके अब तमोगुण की वृद्धि के लक्षण बतलाये जाते हैं-


अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च प्रमादो मोह एव च ।
तमस्येतानि जायन्ते विवृद्धे कुरूनन्दन ।।13।।



हे अर्जुन ! तमोगुण के बढ़ने पर अन्त:करण और इन्द्रियों में अप्रकाश, कर्मव्य-कर्मों में अप्रवृत्ति और प्रमाद अर्थात् व्यर्थ चेष्टा और निद्रादि अन्त:करण की मोहिनी वृत्तियाँ- ये सब ही उत्पन्न होते हैं ।।13।।

With the growth of Tamas, Arjuna, obtuseness of the mind and senses, disinclination to perform one’s obligatory duties, frivolity and stupor-all these appear. (13)


कुरूनन्दन = हे अर्जुन ; तमसि = तमोगुण के ; विवृद्धे = बढनेपर (अन्त:करण और इन्द्रियों में) ; अप्रकाश: = अप्रकाश (एवं) ; अप्रवृत्ति: = कर्तव्यकर्मों में अप्रवृत्ति ; च = और ; प्रमाद: = प्रमाद अर्थात् व्यर्थ चेष्टा ; च = और ; मोह: = निद्रादि अन्त:करणकी मोहिनी वृत्तियां ; एतानि = यह सब ; एव = ही ; जायन्ते = उत्पन्न होते हैं



अध्याय चौदह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-14

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27

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