ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
गीता अध्याय-14 श्लोक-24 / Gita Chapter-14 Verse-24
समदु:खसुख: स्वस्थ: समलोष्टाश्मकाञ्चन: ।
तुल्यप्रियाप्रियो धीरस्तुल्यनिन्दात्मसंस्तुति: ।।24।।
|
जो निरन्तर आत्मभाव में स्थित, दु:ख-सु ख को समान समझने वाला, मिट्टी, पत्थर और स्वर्ण में समान भाव वाला, ज्ञानी, प्रिय तथा अप्रिय को एक सा मानने वाला और अपनी निन्दा-स्तुति में भी समान भाव वाला है ।।24।।
|
He who is ever established in the Self, takes woe and joy alike, regards a clod of earth, a stone and a piece of gold as equal in value, is possessed of wisdom, perceives the pleasant as well as the unpleasant in the same spirit, and views censure and praise alike. (24)
|
स्वस्थ: = निरन्तर आत्मभाव में स्थित हुआ ; समदु:खसुख: = दु:ख सुख को समान समझनेवाला है (तथा) ; समलोष्टाश्म काच्चन: = मिट्टी पत्थर और सुवर्ण में समान भाव वाला (और) ; धीर: = धैर्यवान् है (तथा) ; तुल्य प्रियाप्रिय: = जो प्रिय और अप्रिय को बराबर समझता है (और) ; तुल्य निन्दात्मसंस्तुति: अपनी निन्दा स्तुति में भी समान भाववाला है
|
|
|
|
<sidebar>
- सुस्वागतम्
- mainpage|मुखपृष्ठ
- ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
- विशेष:Contact|संपर्क
- समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
- SEARCH
- LANGUAGES
__NORICHEDITOR__
- गीता अध्याय-Gita Chapters
- गीता 1:1|अध्याय [1] Chapter
- गीता 2:1|अध्याय [2] Chapter
- गीता 3:1|अध्याय [3] Chapter
- गीता 4:1|अध्याय [4] Chapter
- गीता 5:1|अध्याय [5] Chapter
- गीता 6:1|अध्याय [6] Chapter
- गीता 7:1|अध्याय [7] Chapter
- गीता 8:1|अध्याय [8] Chapter
- गीता 9:1|अध्याय [9] Chapter
- गीता 10:1|अध्याय [10] Chapter
- गीता 11:1|अध्याय [11] Chapter
- गीता 12:1|अध्याय [12] Chapter
- गीता 13:1|अध्याय [13] Chapter
- गीता 14:1|अध्याय [14] Chapter
- गीता 15:1|अध्याय [15] Chapter
- गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
- गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
- गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter
</sidebar>
|