ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
गीता अध्याय-16 श्लोक-22 / Gita Chapter-16 Verse-22
एतैर्विमुक्त: कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभिर्नर: ।
आचरत्यात्मन: श्रेयस्ततो याति परां गतिम् ।।22।।
|
हे अर्जुन ! इन तीनों नरक के द्वारों से मुक्त पुरूष अपने कल्याण का आचरण करता है, इससे वह परमगति को जाता है अर्थात् मुझको प्राप्त हो जाता है ।।22।।
|
Freed from these three gates of hell, man works his own salvation and thereby attains the supreme goal i.e., God. (22)
|
कौन्तेय = हे अर्जुन ; एतै: = इन ; त्रिभि: = तीनों ; तमोद्वारै: = नरक के द्वारों से ; विमुक्त: = मुक्त हुआ ; नर: = पुरूष ; आत्मन: = अपने ; श्रेय: = कल्याण का ; आचरति = आचरण करता है ; तत: = इससे (वह) ; पराम् = परम ; गतिम् = गति को ; याति = जाता हे अर्थात् मेरे को प्राप्त होता है ;
|
|
|
|
<sidebar>
- सुस्वागतम्
- mainpage|मुखपृष्ठ
- ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
- विशेष:Contact|संपर्क
- समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
- SEARCH
- LANGUAGES
__NORICHEDITOR__
- गीता अध्याय-Gita Chapters
- गीता 1:1|अध्याय [1] Chapter
- गीता 2:1|अध्याय [2] Chapter
- गीता 3:1|अध्याय [3] Chapter
- गीता 4:1|अध्याय [4] Chapter
- गीता 5:1|अध्याय [5] Chapter
- गीता 6:1|अध्याय [6] Chapter
- गीता 7:1|अध्याय [7] Chapter
- गीता 8:1|अध्याय [8] Chapter
- गीता 9:1|अध्याय [9] Chapter
- गीता 10:1|अध्याय [10] Chapter
- गीता 11:1|अध्याय [11] Chapter
- गीता 12:1|अध्याय [12] Chapter
- गीता 13:1|अध्याय [13] Chapter
- गीता 14:1|अध्याय [14] Chapter
- गीता 15:1|अध्याय [15] Chapter
- गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
- गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
- गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter
</sidebar>
|