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गीता अध्याय-16 श्लोक-17 / Gita Chapter-16 Verse-17
प्रसंग-
पंद्रहवें श्लोंक में भगवान् ने कहा था कि वे लोग 'यज्ञ करूँगा' ऐसा कहते हैं; अत: अगले श्लोक में उनके यज्ञ का स्वरूप बतलाया जाता है-
आत्मसंभाविता: स्तब्धा धनमानमदान्विता:
यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम् ।।17।।
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वे अपने-आपको ही श्रेष्ठ मानने वाले घमण्डी पुरुष धन और मान के मद से युक्त होकर केवल नाम मात्र के यज्ञों द्वारा पाखण्ड से शास्त्र विधि रहित यजन करते हैं ।।17।।
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Intoxicated by wealth and honour, those self-conceited and haughty men worship God through nominal sacrifices for ostentation without following the sacred rituals. (17)
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ते = वे ; आत्मसंभाविता: = अपने आपको ही श्रेष्ठ मानने वाले ; स्तब्धा: = घमण्डी पुरुष ; धनमानमदान्विता: = धन और मानके मदसे युक्त हुए ; अविधिपूर्वकम् = शास्त्रविधि से रहित ; नामयज्ञै: = केवल नाममा़त्र के यज्ञों द्वारा ; दम्भेन = पाखण्ड से ; यजन्ते = यजन करते हैं ;
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