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उत्तरकाण्ड में [[राम]] के राज्याभिषेक के अनन्तर कौशिकादि महर्षियों का आगमन, महर्षियों के द्वारा राम को [[रावण]] के पितामह, पिता तथा रावण का जन्मादि वृत्तान्त सुनाना, सुमाली तथा माल्यवान् के वृत्तान्त, रावण, [[कुम्भकर्ण]], [[विभीषण]] आदि का जन्म-वर्णन, रावणादि सभी भाइयों को [[ब्रह्मा]] से वरदान-प्राप्ति, रावण-पराक्रम-वर्णन के प्रसंग में कुबेरादि [[देवता|देवताओं]] का घर्षण, रावण सम्बन्धित अनेक कथाएँ, [[सीता]] के पूर्वजन्म रूप वेदवती का वृत्तान्त, वेदवती को रावण को शाप, सहस्त्रबाहु अर्जुन के द्वारा नर्मदा अवरोध तथा रावण का बन्धन, रावण का [[बालि]] से युद्ध और बालि की काँख में रावण का बन्धन, सीता-परित्याग, सीता का वाल्मीकि आश्रम में निवास, [[निमि]], [[नहुष]], [[ययाति]]के चरित, शत्रुघ्न द्वारा [[लवणासुर]] वध, [[शम्बूक]] वध तथा ब्राह्मण पुत्र को जीवन प्राप्ति, भार्गव चरित, वृत्रासुर वध प्रसंग, किंपुरुषोत्पत्ति कथा, राम का अश्वमेध यज्ञ, वाल्मीकि के साथ राम के पुत्र [[लव कुश]] का [[रामायण]] गाते हुए [[अश्वमेध यज्ञ]] में प्रवेश, राम की आज्ञा से वाल्मीकि के साथ आयी सीता का राम से मिलन, सीता का रसातल में प्रवेश, [[भरत]], [[लक्ष्मण]] तथा [[शत्रुघ्न]] के पुत्रों का पराक्रम वर्णन, [[दुर्वासा]]-राम संवाद, राम का सशरीर स्वर्गगमन, राम के भ्राताओं का स्वर्गगमन, तथा [[देवता|देवताओं]] का राम का पूजन विशेष आदि वर्णित है। इस काण्ड में 111 सर्ग तथा 3,432 श्लोक प्राप्त होते हैं। बृहद्धर्मपुराण के अनुसार इस काण्ड का पाठ आनन्दात्मक कार्यों, यात्रा आदि में किया जाता है।<ref>य: पठेच्छृणुयाद् वापि काण्डमभ्युदयोत्तरम्।<br />
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उत्तरकाण्ड में [[राम]] के राज्याभिषेक के अनन्तर कौशिकादि महर्षियों का आगमन, महर्षियों के द्वारा राम को [[रावण]] के पितामह, पिता तथा रावण का जन्मादि वृत्तान्त सुनाना, सुमाली तथा माल्यवान के वृत्तान्त, रावण, [[कुम्भकर्ण]], [[विभीषण]] आदि का जन्म-वर्णन, रावणादि सभी भाइयों को [[ब्रह्मा]] से वरदान-प्राप्ति, रावण-पराक्रम-वर्णन के प्रसंग में कुबेरादि [[देवता|देवताओं]] का घर्षण, रावण सम्बन्धित अनेक कथाएँ, [[सीता]] के पूर्वजन्म रूप वेदवती का वृत्तान्त, वेदवती को रावण को शाप, सहस्त्रबाहु अर्जुन के द्वारा नर्मदा अवरोध तथा रावण का बन्धन, रावण का [[बालि]] से युद्ध और बालि की काँख में रावण का बन्धन, सीता-परित्याग, सीता का वाल्मीकि आश्रम में निवास, [[निमि]], [[नहुष]], [[ययाति]] के चरित, शत्रुघ्न द्वारा [[लवणासुर]] वध, [[शम्बूक]] वध तथा ब्राह्मण पुत्र को जीवन प्राप्ति, भार्गव चरित, वृत्रासुर वध प्रसंग, किंपुरुषोत्पत्ति कथा, राम का अश्वमेध यज्ञ, वाल्मीकि के साथ राम के पुत्र [[लव कुश]] का [[रामायण]] गाते हुए [[अश्वमेध यज्ञ]] में प्रवेश, राम की आज्ञा से वाल्मीकि के साथ आयी सीता का राम से मिलन, सीता का रसातल में प्रवेश, [[भरत]], [[लक्ष्मण]] तथा [[शत्रुघ्न]] के पुत्रों का पराक्रम वर्णन, [[दुर्वासा]]-राम संवाद, राम का सशरीर स्वर्गगमन, राम के भ्राताओं का स्वर्गगमन, तथा [[देवता|देवताओं]] का राम का पूजन विशेष आदि वर्णित है। इस काण्ड में 111 सर्ग तथा 3,432 श्लोक प्राप्त होते हैं। बृहद्धर्मपुराण के अनुसार इस काण्ड का पाठ आनन्दात्मक कार्यों, यात्रा आदि में किया जाता है।<ref>य: पठेच्छृणुयाद् वापि काण्डमभ्युदयोत्तरम्।<br />
 
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०७:१०, २९ अगस्त २०१० के समय का अवतरण

उत्तर काण्ड / Uttar Kand

उत्तरकाण्ड में राम के राज्याभिषेक के अनन्तर कौशिकादि महर्षियों का आगमन, महर्षियों के द्वारा राम को रावण के पितामह, पिता तथा रावण का जन्मादि वृत्तान्त सुनाना, सुमाली तथा माल्यवान के वृत्तान्त, रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण आदि का जन्म-वर्णन, रावणादि सभी भाइयों को ब्रह्मा से वरदान-प्राप्ति, रावण-पराक्रम-वर्णन के प्रसंग में कुबेरादि देवताओं का घर्षण, रावण सम्बन्धित अनेक कथाएँ, सीता के पूर्वजन्म रूप वेदवती का वृत्तान्त, वेदवती को रावण को शाप, सहस्त्रबाहु अर्जुन के द्वारा नर्मदा अवरोध तथा रावण का बन्धन, रावण का बालि से युद्ध और बालि की काँख में रावण का बन्धन, सीता-परित्याग, सीता का वाल्मीकि आश्रम में निवास, निमि, नहुष, ययाति के चरित, शत्रुघ्न द्वारा लवणासुर वध, शम्बूक वध तथा ब्राह्मण पुत्र को जीवन प्राप्ति, भार्गव चरित, वृत्रासुर वध प्रसंग, किंपुरुषोत्पत्ति कथा, राम का अश्वमेध यज्ञ, वाल्मीकि के साथ राम के पुत्र लव कुश का रामायण गाते हुए अश्वमेध यज्ञ में प्रवेश, राम की आज्ञा से वाल्मीकि के साथ आयी सीता का राम से मिलन, सीता का रसातल में प्रवेश, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न के पुत्रों का पराक्रम वर्णन, दुर्वासा-राम संवाद, राम का सशरीर स्वर्गगमन, राम के भ्राताओं का स्वर्गगमन, तथा देवताओं का राम का पूजन विशेष आदि वर्णित है। इस काण्ड में 111 सर्ग तथा 3,432 श्लोक प्राप्त होते हैं। बृहद्धर्मपुराण के अनुसार इस काण्ड का पाठ आनन्दात्मक कार्यों, यात्रा आदि में किया जाता है।[१]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. य: पठेच्छृणुयाद् वापि काण्डमभ्युदयोत्तरम्।
    आनन्दकार्ये यात्रायां स जयी परतोऽत्र वा॥(बृहद्धर्मपुराण 26…14)